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पहिले छावै तीन घरा
Posted on 25 Mar, 2010 10:31 AM
पहिले छावै तीन घरा।
सार भुसौला औ बड़हरा।।


भावार्थ- वर्षा होने के पहले पशुओं के रहने, भूसा रखने, और कंडे रखने वाला घर छा लेना चाहिए।

पाहिनि खड़ाऊँ खेतु निरावै
Posted on 25 Mar, 2010 10:30 AM
पाहिनि खड़ाऊँ खेतु निरावै, ओढ़ि रजाई झोंकैं।

घाघ कहै ई तीनों भकुआ, बेमतलब की भौंकैं।।


भावार्थ- घाघ का मानना है कि खड़ाऊँ पहन कर खेत की निराई करने वाला और रजाई ओढ़-कर भाड़ झोंकने वाला, निरुद्देश्य बोलने वाला, ये तीनों ही मूर्ख हैं।

परहथ बनिज, सँदेसे खेती
Posted on 25 Mar, 2010 10:28 AM
परहथ बनिज, सँदेसे खेती, बिन बर देखे ब्याहै बेटी।
द्वार पराये गाड़ै थाती, ये चारों मिलि पीटैं छाती।।


शब्दार्थ- परहथ-दूसरे के हाथ या भरोसे। थाती-धन। बनिज-व्यापार।
पूत ना माने आपने डाँट
Posted on 25 Mar, 2010 10:25 AM
पूत ना माने आपने डाँट, भाई लड़ै चहै नित बाँट।
तिरिया कलही करकस होइ, नियरा बसल दुष्ट सब कोइ
मालिक नाहिंन करै विचार, घाघ कहै ई विपत्ति अपार।।

ना अति बरखा ना अति धूप
Posted on 25 Mar, 2010 10:23 AM
ना अति बरखा ना अति धूप।
ना अति बकता ना अति चूप।।


भावार्थ- अत्यधिक वर्षा अच्छी नहीं होती, बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं होती, इसी प्रकारच अत्यधिक बोलना और अत्यन्त चुप रहना भी अच्छा नहीं होता।

नीचन से ब्योहार बिसाहा
Posted on 25 Mar, 2010 10:21 AM
नीचन से ब्योहार बिसाहा, हँसि के मांगे दम्मा,
आलस नींद निगोड़ी घेरे, घघ्घा तीनि निकम्मा।


भावार्थ- जो लोग बुरे लोगों से मित्रता करते है, हँसकर अपना पैसा माँगते हैं और जिन्हें आलस्य या नींद हर समय घेरे रहती है, ये तीनों निकम्मे यानी बेकार होते हैं।

निहपछ राजा मन हो हाथ
Posted on 25 Mar, 2010 10:19 AM
निहपछ राजा मन हो हाथ, साधु परोसी नीमन साथ।
हुकुमी पूत धिया सतवार, तिरिया भाई रखे विचार।।
कहै घाघ हम करत विचार, बड़े भाग से दे करतार।।


शब्दार्थ- निहपछ-निष्पक्ष। नीमन-अच्छा। धिया-पुत्री। सतवार-अच्छे स्वभाव। तिरिया-पत्नी।
नारि करकसा कटहा घोर
Posted on 25 Mar, 2010 10:11 AM
नारि करकसा कटहा घोर, हाकिम होइके खाइ अँकोर।
कपटी मित्र पुत्र हो चोर, घग्घा इनको गहिरे बोर।।


शब्दार्थ- करकसा-झगड़ालू, प्रपंची। घोर-घोड़ा। कटहा-काट खाने वाला। अँकोर-घूसखोर।
नसकट पनहीं बतकट जोय जो पहिलौंठी बिटिया होय
Posted on 25 Mar, 2010 10:06 AM
नसकट पनहीं बतकट जोय जो पहिलौंठी बिटिया होय।
पातर खेत बौरहा भाय, घाघ कहै दुख कहां समाय।।


शब्दार्थ- पनहीं-जूता। जोय-पत्नी। पहिलौंठी-पहले पहल। बौरहा-सनकी, पागल।
धौले भले हैं कपड़े
Posted on 25 Mar, 2010 10:04 AM
धौले भले हैं कपड़े, धौले भले न बार।
आछी काली कामरी, काली भली न नार।।


भावार्थ- वस्त्र सफेद अच्छे लगते हैं पर सफेद बाल नहीं, कम्बल काला अच्छा लगता है पर काली नारी नहीं।

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