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सावन घोड़ी भादौं गाय
Posted on 25 Mar, 2010 12:07 PM
सावन घोड़ी भादौं गाय। माघ मास जो भैंस बिआय।।
कहैं घाघ यह साँची बात। आप मरै कि मालिकै खाय।।


भावार्थ- घाघ कहते हैं कि यदि घोड़ी सावन में और गाय भादों में और भैंस माघ के महीने में बच्चा देती है तो या तो वह स्वयं मर जायेगी या अपने मालिक को खा जायेगी।

लरिका ठाकुर बूढ़ दिवान
Posted on 25 Mar, 2010 12:05 PM
लरिका ठाकुर बूढ़ दिवान।
ममिला बिगरै साँझ बिहान।।


भावार्थ- यदि ठाकुर (राजा, जमींदार) बच्चा हो और उसका मंत्री बुड्ढा हो तो दोनों में कभी मेंल नहीं खा सकता और सुबह शाम में किसी वक्त झगड़ा हो सकता है।

राँड़ मेंहरिया अन्ना भैंसा
Posted on 25 Mar, 2010 12:02 PM
राँड़ मेंहरिया अन्ना भैंसा।
जब बिचलै तब होवै कैसा।।


भावार्थ- विधवा स्त्री और बिना स्वामी का स्वच्छंद भैंसा यदि बहक जायें तो अनर्थ ही होगा।

माँ ते पूत पिता ते घोड़ा
Posted on 25 Mar, 2010 12:01 PM
माँ ते पूत पिता ते घोड़ा।
बहुत न होय तो थोड़म थोड़ा।


भावार्थ- माँ का गुण पुत्र में और पिता का गुण घोड़े में अधिक नहीं तो थोड़ा जरूर होता है।

मुये चाम से चाम कटावैं
Posted on 25 Mar, 2010 11:59 AM
मुये चाम से चाम कटावैं, सकरी भुंइ मां सोवै।
घाघ कहैं ये तीनौ भकुवा, उढ़रि गये पर रोवै।।


शब्दार्थ- मुये-मरे हुए। चाम-चमड़ा। सकरी-कम जगह। भकुआ-बेवकूफ। ओढ़री-बहकाकर लाई गयी स्त्री।
माघ पूस की बादरी
Posted on 25 Mar, 2010 11:56 AM
माघ पूस की बादरी, औ कुँवारा घाम।
ये दोनों जो कोइ सहै, करै पराया काम।।


भावार्थ- माघ और पूस महीने की बदली और क्वार की धूप को जो सहन कर ले, वही दूसरे का काम कर सकता है क्योंकि माघ और पूस में ठंडी बहुत होती है और क्वार में धूप अधिक तेज होती है।

भेदिहा सेवक सुन्दरि नारि
Posted on 25 Mar, 2010 11:54 AM
भेदिहा सेवक सुन्दरि नारि,
जीरन पट कुराज दुख चारि।।


भावार्थ- दूसरों को घर का भेद बताने वाला नौकर, रूपवती स्त्री, फटा कपड़ा और दुष्ट राजा ये चारों दुःख के कारण हैं।

बाढ़ै पूत पिता के धर्मे
Posted on 25 Mar, 2010 11:52 AM
बाढ़ै पूत पिता के धर्मे।
खेती उपजै अपने कर्मे।।


भावार्थ- घाघ का मानना है कि पुत्र पिता के धर्म से फलता-फूलता है और खेती अपने कर्म से अच्छी होती है।

बिना माघ घिव खिचड़ी खाय
Posted on 25 Mar, 2010 11:50 AM
बिना माघ घिव खिचड़ी खाय, बिन गौने ससुरारी जाय।
बिन बरखा के पहिरे पउवा, कहै घाघ ये तीनों कउवा।।


शब्दार्थ- पउवा-कठनहीं, हवाई चप्पल की तरह काठ की बनी खड़ाऊँ जिसमें रस्सी की बद्धी लगी होती है।
बाछा बैल
Posted on 25 Mar, 2010 11:48 AM
बाछा बैल, बहुरिया जोय,
ना घर रहै न खेती होय।


भावार्थ- जो किसान नये बछड़ो को बैल बनाकर खेती करता है और जिसकी पत्नी नई-नवेली हो, तो न तो उस किसान की खेती अच्छी हो पाती है और न ही वह घर संभल पाता है।

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