Posted on 29 Jun, 2010 11:02 AMचिड़िया हमारे पर्यावरण की थर्मामीटर जैसी हैं। उनकी सेहत ,उनकी खुशी बताती हैकि जिस माहौल में हमरह रहे हैं , वह कैसा है।प्रदूषित हवा से होनेवाली तेजाबी बारिश काअसर हमारी जिंदगी मेंदेर से जाहिर होता है ,लेकिन इससे चिड़ियों केअंडे पतले पड़ने लगते हैंऔर उनकी आबादी घटने लगती है। मोबाइल फोन से निकलनेवाली तरंगें इंसान पर क्या प्रभाव छोड़ती हैं , इस पर रिसर्चअभी चल ही रही है। लेकिन गौरैया , श्यामा औ
Posted on 26 Jun, 2010 04:20 PM देश छोटा-सा है, आबादी भी हम जैसे देशों की तुलना में बहुत ही कम है। लेकिन दूध, डेयरी और मांस का उत्पादन बहुत ही ज्यादा है। इसलिए पशुओं की संख्या भी खूब है। यहां एक व्यक्ति पर आठ पशुओं का औसत आता है। और इस कारण पशुओं का गोबर भी खूब है। हमारे देश में वरदान माना गया गोबर यहां के पर्यावरण के लिए अभिशाप बन चुका है। यहां इसे ‘राष्ट्रीय’ समस्या माना जा रहा है।अपरिग्रह, जरूरत से ज्यादा चीजों का संग्रह न करने की ठीक सीख सभी पर लागू होती है। सभी पर यानी सभी समय, सभी जगह, सभी देशों में और सभी चीजों पर। ऐसा नहीं कि साधारण चीजों पर ही यह लागू होती हो। अमृत भी जरूरत से ज्यादा किसी काम का नहीं। गोबर को हमारे यहां अमृत जैसा ही तो माना गया है। पर यही गोबर यूरोप के एक देश नीदरलैंड में जरूरत से ज्यादा हो गया तो उसने वहां कैसी तबाही मचाई- इसे बता रहे हैं श्री राजीव वोरा। चीजों के संग्रह, बेतहाशा आमदनी-खर्च पर टिका आज का अर्थशास्त्र हर कभी हर कहीं गिर रहा है। दो बरस पहले अमेरिका में गिरा तो इस समय यह यूरोप में ग्रीस को हिला गया है। कई देशों पर यह संकट छा रहा है। कुछ बरस पहले नीदरलैंड ने अपने अर्थशास्त्र में छिपे अनर्थ को समझने के लिए भारत, इंडोनेसिया, ब्राजील और तंजानिया से चार मित्रो को बुलाकर लगभग पूरा देश घुमाया था, अपने समाज के विभिन्न पदों, क्षेत्रों
Posted on 26 Jun, 2010 09:55 AM वन्य जीवों पर फिल्म बनाने वाले भारतीय फिल्मकार माइक पांडे मानते हैं कि पृथ्वी पर मौजूद प्रत्येक प्राणी को जीवन चक्र में अपना किरदार निभाना होता है। उनका विश्वास है कि पर्यावरण की हिफाजत के लिए सबसे जरूरी है लोगों को शिक्षित करना। वह इस बात को मानते हैं कि लोगों को जब यह समझाया जाता है कि किस तरह वनस्पतियां और जानवर इंसान के लिए जरूरी हैं तो वे इनके संरक्षण के लिए कदम बढ़ाते हैं।
Posted on 25 Jun, 2010 04:25 PMपर्वतीय विकास और रोजगार-सुविधा के नाम से पिछले 10 वर्षों में उत्तराखण्ड में औद्यौगिकरण के कई नये उपायों को प्रारम्भ किया गया है। यूं तो रोजगार देने के हर प्रयास का स्वागत पहाड़ की जनता भी करती है और वहां के सरकारी, अर्द्धसरकारी व सामाजिक संस्थान भी करते हैं, क्योंकि पहाड़ की ‘युवा-पलायन’ की समस्या का हल इन उद्योगों के जरिये होगा तथा पहाड़ के under employment को पूरक-रोजगार भी इन उद्योगों से मिलेग
Posted on 25 Jun, 2010 02:55 PMधरती में पाई जाने वाली ”जैव विविधता” अनमोल सम्पदा है। इस सम्पदा के बारे में अधिकांश लोग परिचित नहीं हैं। जैव विविधता में प्रकृति का अनुपम सौंदर्य समाया हुआ है। वहीं जैव विविधता को संरक्षित कर हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाए हुए हैं। जैव विविधता का आर्थिक महत्व भी है, जो आज हो रहे जलवायु परिवर्तन, औद्योगिक विकास के कारण खत्म हो रही है।
जैव विविधता वर्ष 2010
जैविक विविधता से आशय जगत में विविध प्रकार के लोगों के साथ, इस जीव परिमंडल में भी भौगोलिक रचना के अनुसार अलग-अलग नैसर्गिक भूरचना, वर्षा, तापमान एवं जलवायु के कारण जैव विविधता, वनस्पति एवं प्राणी सृष्टि में प्राप्य है। मानवता के लिए अनिवार्य वर्ष 2010 को दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण