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क्या चीज़ है नैनो-टेक्नॉलॉजी( What is Nanotechnology In Hindi)
आजकल नैनो-टेक्नॉलॉजी हरेक की ज़बान पर है। किसी भी विषय पर आयोजित होने वाले सम्मेलनों की संख्या से इस बात का संकेत मिल जाता है कि विज्ञान का कोई नया क्षेत्र सामने आ रहा है या फलने-फूलने लगा है। इसी प्रकार से सरकारी एजेंसियां भी इन नए विषयों/क्षेत्रों के लिए फण्ड देना शुरू कर देती हैं। Posted on 29 Nov, 2023 02:47 PM

प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री और नोबल विजेता रिचर्ड फाइनमैन ने कहा था- "जहां तक मैं समझता हूं, भौतिकी के सिद्धांत चीज़ों के साथ परमाणु-दर-परमाणु फेरबदल की संभावना के खिलाफ कुछ नहीं कहते। वास्तव में यह (फेरबदल) किसी नियम का उल्लंघन नहीं है। सिद्धांतन ऐसा किया जा सकता है मगर व्यवहार में ऐसा हो नहीं पाया है क्योंकि हमारा अपना डीलडौल इतना विशाल है।अन्ततः हम रासायनिक संश्लेषण भी कर पाएंगे। कोई रसायनज्ञ आकर

नैनो-टेक्नॉलॉजी
पीड़कनाशी - कितने सुरक्षित (Food and Pesticides)
कृषि के विकासक्रम में, उत्पादन को पर्याप्त बढ़ाने हेतु फसलों की रक्षा के लिए पीड़कनाशी अब एक महत्वपूर्ण साधन बन गए हैं। फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट, फफूंद, कृमि इत्यादि को मारने वाली दवाओं के पूरे समूह को पीड़कनाशी (Pesticides) कहा जाता है। भारत में 140 से भी अधिक पीड़कनाशी उपयोग में हैं और उनका इस्तेमाल कुल 90,000 टन प्रति वर्ष के आसपास होता है। Posted on 29 Nov, 2023 01:39 PM

खाद्य पदार्थों के उत्पादन बढ़ाने, उन्हें लम्बे समय तक सुरक्षित रखने, ताज़ा रखने की कोशिश में कई तरह के रसायनों तथा पीड़कनाशियों का इस्तेमाल का इस्तेमाल किया जाता है। ब्रोमोफॉस, डी.डी.टी., क्लोरडेन, मैलाथियोंन, पैराथियॉन जैसे पीड़कनाशियों की लम्बी फेहरिस्त है। ताज़ा अनुसंधान बताते हैं कि इन खाद्य पदार्थों के ज़रिए पीड़कनाशियों का शरीर में प्रवेश खतरनाक है। एक अध्ययन...

आपदाओं की गाज
रिपोर्ट की प्रस्तावना में एफएओं के महानिर्देशक क्यू डोंगयु ने लिखा है कि कृषि आपदाओं के प्रति बेहद संवेदनशील है, क्योंकि  वह प्रकृति और जलवायु पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। बार- बार आने वाली आपदाएं बाब सुरक्षा और कृषि प्रणालियों को स्थिरता को नुकसान पहुंचा सकती उनके मुताबिक रिपोर्ट में एफएओं की विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए इन जोखिमों को संबोधित करने और कृषि प्रथाओं और नीतियों में आपदा जोखिम प्रबंधन को शामिल करने के तरीके सुझाए गए हैं। छोटे किसान जो अपनी फसलों के लिए बारिश पर निर्भर रहते है, वो आपदा आने पर मुश्किल में पड़ जाते है। देखा जाए तो कृषि खाद्य प्रणालियों की सबसे कमजोर कड़ी है। जो इन आपदाओं का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतते हैं। ऐसे में किसानों को सिखाना की वो अपने खेतों को आपदाओं से कैसे बचा सकते हैं। उनकी फसलों को बचाने में मदद कर सकता है। साथ ही यह उन्हें कहीं ज्यादा सशक्त बनाएगा। इन नए तरीकों का उपयोग, पुराने तरीकों की तुलना में 2.2 गुना ज्यादा फायदा पहुंचा सकता है Posted on 27 Nov, 2023 04:35 PM

मध्यप्रदेश हर साल बेमौसम बारिश के कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। बारिश के कारण फसलें चौपट हो रही हैं। इससे किसानों का हर साल हजारों करोड़ का नुकसान हो रहा है। लेकिन आपदाओं की गाज केवल मप्र ही नहीं बल्कि दुनियाभर के किसानों पर गिर रही है। पिछले तीन दशकों में किसानों को आपदाओं के चलते करीब 316.4 लाख करोड़ रुपए (380,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान उठाना पड़ा है। मतलब कि इन आपदाओं के कारण

आपदाओं की गाज
परमाणु बिजली घर और सेहत
हमने सितम्बर 1991 में फैसला किया कि राजस्थान में कोटा के पास स्थित रावतभाटा परमाणु संयंत्र के प्रभावों का एक सर्वेक्षण किया जाए। रावतभाटा का परमाणु बिजली घर देश का पहला ऐसा संयंत्र था भारत में ही निर्मित कैन्डू किस्म का संयंत्र । कण्डू यानी कनाडियन ड्यूटीरियम- यूरेनियम आधारित संयंत्र । चूंकि भारतीय परमाणु कार्यक्रम कैन्डू परमाणु भट्टी पर आधारित था, इसलिए यही रिएक्टर देश में प्रोटोटाइप बना रावतभाटा स्थल का चयन 1961 में हुआ था और यूनिट 1 पर काम 1964 में कनाडा के सहयोग से शुरू हुआ। Posted on 27 Nov, 2023 03:41 PM

परमाणु प्रतिष्ठान दुनिया भर में यह आकलन करने में लापरवाही बरतता है कि उसके क्रियाकलापों का पर्यावरण व सेहत पर क्या असर होता है। उचित आकलन तो छोड़िए, कई देशों में तो इस बाबत आंकड़े भी इकट्ठे नहीं किए जाते और इस तरह के आंकड़े लोगों को बताना तो कहीं नहीं किया जाता है। भारत में भी बरसों तक परमाणु सम्बंधी बहस निरर्थक ही थी क्योंकि दोनों ही पक्षों के पास परमाणु गतिविधि के प्रभाव सम्बंधी पर्याप्त आंकड

परमाणु बिजली घर और सेहत
जंगल नामा
दुनियाभर में किए गए मिसाइल, परमाणु परीक्षणों और सॅटेलाइट अभियानों से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है और यह क्रम लगातार जारी है। जल, जंगल, जमीन पर जिस तरह से तबाही का आलम उससे आने वाले समय में विनाश तय माना जा रहा है। Posted on 25 Nov, 2023 04:25 PM

देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली हो या फिर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल हर जगह प्रदूषण बढ़ रहा  है।  इसकी सबसे बड़ी वजह है पेड़ों की अंधाधुंध कटाई। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, विश्व में वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष अनुमानित 35,00,000 लोगों की मौतें हो जाती हैं, जिसमें पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की 2,37,000 से अधिक मौतें शामिल हैं। भारत में वायु प्रदूषण के कारण कुल 16.7 लाख लोगों की मौत हुई, जिसमें 9

जंगल नामा
कटिबंधीय कृषि में नाइट्रस ऑक्साइड
उर्वरक आधारित खेती मानवजनित नाइट्रस ऑक्साइड का सबसे बड़ा स्रोत है। सन 1980 से 1994 के बीच विश्व कृषि में नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन 15 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। उष्णकटिबंधीय देशों में अनुकूल नमी, तापमान तथा काफी मात्रा में नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का उपयोग बड़ी मात्रा में नाइट्स ऑक्साइड के उत्सर्जन का कारण होता है। Posted on 25 Nov, 2023 04:09 PM

इस बात के कई सारे प्रमाण मौजूद हैं कि खेती में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से वायुमंडल में बड़ी मात्रा में नाइट्रस ऑक्साइड छोड़ी जा रही है। नाइट्रस ऑक्साइड की चर्चा हमारे सरोकार का विषय इसलिए बनी क्योंकि यह एक ग्रीनहाउस गैस है और मानवजनित ग्रीनहाउस प्रभाव का 6% है। समताप मंडल (स्ट्रेटोस्फियर) की ओजोन परत को क्षीण करने में इसका प्रमुख हाथ है।

कटिबंधीय कृषि में नाइट्रस ऑक्साइड
बांध बनाम लोग
नर्मदा घाटी में बांध के एक विकल्प के बतौर प्रस्तुत लघु पनबिजली परियोजना के उद्घाटन के साथ ही बांध विरोधी अभियान और सुदृढ़ हुआ है। भूमि के अधिकारों का संघर्ष भी साथ- साथ जारी है। जंगल में रहने वाले आदिवासियों को 'अतिक्रमणकर्ता' समझा जाता रहा है। जबकि उनके भूमि के वास्तविक स्वामित्व को स्वीकार किए जाने की ज़रूरत है।' Posted on 25 Nov, 2023 03:55 PM

1999 की शुरुआत में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 88 मीटर करने के बाद नर्मदा घाटी में लगातार दूसरे वर्ष सूखा पड़ा है। लेकिन बावजूद इसके अपने पूर्वजों की जमीन को अपने कब्जे में रखने के लिए नर्मदा घाटी में आदिवासियों का संघर्ष जारी है। लेकिन बांध विरोधी अभियान को उसकी असली सफलता तो बिना शोरगुल के मिली जब लोगों ने अपने जीवन पर केवल अपना नियंत्रण बनाए रखने हेतु नए कदम उठाए।

बांध बनाम लोग
तीन गुणा बढ़ जाएगी भूजल में गिरावट की दर
भारत दुनिया के अन्य देशों की तुलना में पहले ही कहीं ज्यादा तेजी से अपने भूजल का दोहन कर रहा है। आंकड़ों से पता चला है कि भारत में हर साल 230 क्यूबिक किलोमीटर भूजल का उपयोग किया जा रहा है, जो कि भूजल के वैश्विक उपयोग का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। देश में इसकी सबसे ज्यादा खपत कृषि के लिए की जा रही है। देश में गेहूं, चावल और मक्का जैसी प्रमुख फसलों की सिंचाई के लिए भारत बड़े पैमाने पर भूजल पर निर्भर है। Posted on 25 Nov, 2023 03:42 PM

भूजल-आपदा

दुनियाभर में बढ़ता तापमान अपने साथ अनगिनत समस्याएं भी ला रहा है, जिनकी जद से भारत भी बाहर नहीं है। ऐसी ही एक समस्या देश में गहराता जल संकट है जो जलवायु में आते बदलावों के साथ और गंभीर रूप ले रहा है। इस बारे में अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते तापमान और गर्म जलवायु के चलते भारत आने वाले दशकों में अपने भूजल का कहीं ज

भूजल आपदा-कल का भविष्य
कैसे साफ हो गंगा ? गंगा थक चुकी मैला ढोते ढोते
नमामि गंगे के तहत बड़े बजट की घोषणा दरअसल गंगा एक्शन प्लान की विफलता के बाद लाया गया था, जिससे जनता में गंगा की सफाई की उम्मीद जगाई गई थी। विफल रहे गंगा एक्शन प्लान को 14 जनवरी, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शुरू किया था इसके दो चरण कई वर्षों तक चले और नतीजा कुछ नहीं निकला। इसके बाद 2009 में राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण बनाया गया। गंगा एक्शन प्लान से लेकर 2017 तक इन तीनों कदमों के तहत 6788.78 करोड़ रुपए सरकार की ओर से जारी किए गए। Posted on 25 Nov, 2023 03:04 PM

गंगा में 60 फीसदी सीवेज की निकासी जारी है, वह भी तब जब राष्ट्रीय नदी के बिगड़े रंग-रूप को बदलने के लिए 30 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का बजट बनाया गया था। स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय गंगा परिषद के गठन को करीब छह वर्ष बीतने वाले हैं और अभी तक सिर्फ एक बार ही बैठक की जा सकी है।

पावन गंगा मानवीय गतिविधियों से प्रदूषित
आओ ! नदियों को बचाएं
आइए! एक बार ऐसे समय की कल्पना करें जब भारत देश में एक भी नदी न हो। सदानीरा नदियों के बिना हमारा भारत कैसा लगेगा! ऐसा विचार मस्तिष्क में आते ही मन सिहर उठता है। इस भयावह आपदा के आने से, न केवल भारतीय संस्कृति, अपितु देश की अर्थव्यवस्था भी छिन्न-भिन्न हो जाएगी। आज घोर प्रदूषण के कारण नदियों का अमृत जल 'प्राण हारी विष' बन गया है। Posted on 25 Nov, 2023 01:58 PM

मानव सभ्यता का विकास नदियों के तट पर हुआ। नदियों को मानव ने जल स्रोत और जीवनोपयोगी साधन जुटाने का माध्यम बनाया। सिंधु घाटी की सभ्यता, नील नदी घाटी सभ्यता से लेकर अद्यतन मानव और जीव जंतुओं का जीवन का आधार भी नदियाँ ही हैं। यह परिवहन और कृषि कार्य के लिए भी अत्यंत उपयोगी हैं।

 प्रदूषण ने नदियों के अमृत जल को विष में परिवर्तित कर दिया
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