भारत

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नदियों की उपेक्षा
Posted on 06 Aug, 2009 08:00 AM
इसलिए जब हम व्यवस्था को बदलने की बात करते हैं तो इसका तात्पर्य उस दासत्व से आजादी भी है। स्वतंत्रता की यह लड़ाई उससे भी बड़ी और कठिन है जो हम ने गांधीजी के नेतृत्व में लड़ी थी। तब जो गलती हुई थी वह अब नहीं होनी चाहिए।
यमुना हैं सूर्यपुत्री
Posted on 01 Aug, 2009 09:02 PM
अक्षर यात्रा की कक्षा में य वर्ण पर चर्चा जारी रखते हुए आचार्य पाटल ने कहा- 'मार्कण्डेयपुराण' की कथा के अनुसार विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा के गर्भ से उत्पन्न सूर्य की पुत्री को यमुना कहते हैं। एक शिष्य ने पूछा- गुरूजी, अपने देश में तो पवित्र नदी का नाम यमुना है। फिर सूर्य पुत्री को यमुना क्यों कहा गया।
सरस्वती कहाँ है
Posted on 28 Jul, 2009 06:55 PM
वैदिक कवि इतना अभिभूत है कि वह उसे नदीतमा कहकर ही नहीं रूक जाता, उसे माताओं में सबसे श्रेष्ठ और देवियों में सबसे बड़ी देवी कह उ
पानी की उपलब्धता का अधिकार
Posted on 26 Jul, 2009 07:28 PM
जल प्रबंधन की समृध्द व उपयोगी प्राचीन परंपराओं वाला देश भयावह व प्राणलेवा जल संकट से जूझ रहा है। दरअसल हमारे नीति नियंताओं ने जीवनदायी जल के अनावश्यक दोहन और उसके बाजारीकरण होते जाने की कभी परवाह ही नहीं की। नतीजतन जिस जल पर मानव मात्र का मूलभूत अधिकार है इस परिप्रेक्ष्य में लोकतांत्रिक तरीके से विधायिका व कार्यपालिका की सोच ही विकसित नहीं हुई।
विज्ञान के पास जलसंकट का समाधान है?
Posted on 21 Jul, 2009 03:53 PM
वास्तव में भारत के हर गांव और हर शहर की अपनी पारंपरिक जल संचयन तकनीक थी। लेकिन आधुनिक विज्ञान ने इस तरह के पारंपरिक ज्ञान को तिरस्कार की दृष्टि से देखा और हम आज इसकी कीमत चुका रहे हैं।उच्चतम न्यायालय के मुताबिक ‘हां है’। न्यायालय ने अपने हालिया निर्देशों में बार-बार कहा है कि आर्यभट्ट और रामानुजन के देश में पानी की समस्या का समाधान करने के लिए वैज्ञानिक आगे आएं। मगर रंजन के पांडा मानते हैं कि यह विज्ञान ही है जिसने इतनी समस्याएं खडी की हैं, ऐसे में हमें जल प्रबंधन के पारंपरिक और सांस्कृतिक समाधानों को मजबूत बनाने के प्रयास भी करने चाहिए। इस साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति तत्काल गठित करने की सिफारिश की जो भारत में जल संकट के वैज्ञानिक समाधान की तलाश करे।
26 अप्रैल 2009 को एक अन्य मामले में फैसला सुनाते हुए उसने सरकार पर भारी प्रहार किया और उसे इस मुद्दे पर निश्चित लक्ष्य और तय समय सीमा के साथ काम करने का निर्देश दिया।
Gender-water-Equity Training
Posted on 17 Jul, 2009 10:03 AM

जेंडर वाटर एंड इक्विटी ट्रेनिंग

राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक परिदृष्य में तेजी से होने वाले बदलावों के चलते पानी राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय विवाद का मुद्दा बन गया है। उदारीकरण और भूमंडलीकरण की प्रक्रिया, बढ़ती गरीबी, असमानता, जलवायु परिवर्तन आदि सभी एक दूसरे से जुड़े हुए मुद्दे है इसलिए ऐसे में लैंगिक संबंधों पानी और समानता को समझना निहायत ही जरूरी हो गया है।
150 दिन की होगी रोजगार गारंटी
Posted on 16 Jul, 2009 10:27 PM
जयपुर, जागरण संवाद केंद्र : केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री डॉ.सीपी जोशी का कहना है कि अफसर नरेगा के स्कोप बढ़ाने को लेकर कसरत कर रहे हैं। डॉ.जोशी ने दैनिक जागरण के साथ विशेष बातचीत में कहा कि नरेगा का फायदा जरूरतमंदों तक सहीं ढंग से मिले इसके लिए इसमें 50 दिन की संख्या और बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है। इससे नरेगा में श्रम दिवसों की संख्या 150 दिन हो जाएगी।

प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण कोई रामबाण इलाज नहीं है…
Posted on 16 Jul, 2009 02:05 PM
गरीबीउन्मूलन के कार्यक्रम उसी समय सफ़ल सिद्ध हो सकते हैं, जब ऐसे कार्यक्रम उन्हें सतत आजीविका चलाने लायक बनासकें, ताकि गरीब सरकारी मदद पर आश्रित ही न रहें। इस कार्यके लिये मजबूत जन-संस्थान, सटीक तकनीक, मानव संसाधन का हुनर विकास, बाज़ार की सहायता तथा एक पर्याप्त निवेश सभी साथ में होना चाहिये।डायरेक्ट कैश ट्रांसफ़र (DCT) नामक शब्द आजकल विकास समूहों के भीतर काफ़ी चर्चा में है। इकोनोमिस्ट अरविन्द सुब्रह्मणियन ने भारत में गरीबी दूर करने के तौर तरीकों के बारे में अपनी पुस्तक “फ़र्स्ट बेस्ट ऑप्शन” मे DCT के बारे में लिखा है (द हिन्दू, अगस्त 24, 2008)। हाल ही में प्रकाशित “इकॉनॉमिक एण्ड पोलिटिकल वीकली (अप्रैल 12, 2008)” के अंक में सुब्रह्मणियन के विचारों से देवेश कपूर और पार्थ मुखोपाध्याय (KMS) ने भी अन्य कई मुद्दों पर विस्तार से सहमति जताई है। KMS कहते हैं, खाद्य, उर्वरक और ईंधन इन तीन प्रमुख वस्तुओं पर भारत के केन्द्रीय बजट में केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में ही लगभग 2,00,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जाती है। वे पूछते हैं कि – क्या भारत के गरीबों के विकास और उसके उन्मूलन के लक्ष्यों को केन्द्रीय तन्त्र के माध्यम से इतनी विशाल धनराशि खर्च करके भी पाया जा सका है? क्या यह एक अच्छा तरीका कहा जा सकता है? मैं कहूँगा, निश्चित ही है, बजाय इसके कि मुँह में पानी लाने लायक एक करोड़ की राशि प्रत्येक ग्राम पंचायत के खाते में सीधे डाल दी जाये।

सरोजिनी नायडू पुरस्कार के लिए आवेदन आमंत्रित
Posted on 14 Jul, 2009 01:41 PM
द हंगर प्रोजेक्ट पंचायतीराज में महिलाओं की भूमिका पर सर्व श्रेष्ठ लेखन के लिए 2009 सरोजिनी नायडू पुरस्कार की घोषणा करता है। आपसे निवेदन है कि आपके क्षेत्र के पत्रकार बन्धुओं एवं अन्य मीडिया साथियों को उपरोक्त दी हुई जानकारी के बारे में अवगत करायें।

आज पंचायत की महिला जनप्रतिनिधियों द्वारा शासन के कामकाज में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ ही पानी, शराब के व्यसन, शिक्षा, स्वास्थ्य, घेरलू हिंसा, जेण्डर असमानता व अन्याय जैसे उन मुद्दों के प्रति राज्य को संवेदनशील बना रही है। `खामोश क्रांति` को एक आवाज़ की जरूरत है( इन महिलाओं के संघर्षों तथा सफलताओं को घरों, नागरिक समाज समूहों, शहरी अभिजात्य वर्ग, पेशेवरों, शिक्षाविदों तथा नीति निर्माताओं के दिलो-दिमाग तक पहुंचाने के लिए एक व्यवस्थित प्रयास जरूरी है।

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