Posted on 14 Mar, 2014 01:26 PMप्रकृति में जल-चक्र और जल-संतुलन विनोद बिहारी लाल पानी आज विश्व की विकरालतम समस्याओं में से है। हर वर्ष बाढ़ और सूखे से हजारों जान
Posted on 11 Mar, 2014 09:51 AMधरती जानती है धरती वह सब भी जानती है जो हम नहीं जानते। युगों-युगों से तपी है यह धरती लगातार तपस्यारत है, तप रही है। किसी भी संत, महात्मा, ऋषि, ब्रह्मर्षि, फकीर, तीर्थकर, बोधिसत्व अवतार, पैगम्बर या मसीहा से अधिक तपी है धरती और अभी तक अंतर्धान नहीं हुई है शायद असली अवतार, पैगम्बर या मसीहा धरती ही है।
Posted on 11 Mar, 2014 09:50 AMमैं नदी हूं, मेरी लंबी कहानी है कभी मेरी तो कभी तेरी जुबानी है। खेतों खलिहानों रही बहती-घूमती किसी को प्यासा देख होती परेशानी है। पहाड़ों से उतर आयीं तुम्हारी पुकार पर लेकिन जो हो रहा, देख कर हैरानी है बस्तियां, सभ्यताएं मेरे गोद में बसीं ये देखो ये गांव, ये राजधानी है। मेरे अंदर जो बह रहा है जीवन द्रव वह मेरा रक्त है, तुम कहते हो पानी है।
Posted on 11 Mar, 2014 09:47 AMसहजन के पेड़ कटे सहजन के पेड़। जीवन की गठरी में, थे जो अरमान ले उड़े अचानक ही आंधी-तूफान पेड़ जो कि रहबर थे, गिरे कटे रोज
Posted on 09 Mar, 2014 03:36 PMकभी इस घर के पीछे एक नदी बहती थी, आज सूख गई है वह धारा जो प्रलयंकर वेग से बहकर एक नया प्रकम्पन उत्पन्न करती थी। दूर-दूर तक बहा ले जाती थी करीबी झोपड़ियां मवेशी और दरवाजे सोये नन्हें-नन्हें बच्चों को रात में। बहा ले जाती थी बड़े-बड़े पेड़ दूर-दूर मीलों तक। बदल देती थी आसपास के खेतों की मिट्टी। शरण लेते थे लोग