भारत

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आंकड़ों के आईने में पानी
Posted on 23 May, 2014 12:32 PM
भारत के अनेक इलाकों का जल संकट, यदि एक ओर समाज की तकलीफों का
water
जल, जंगल और जमीन पर स्थानीय लोगों का अधिकार होना चाहिए : भवानी शंकर थपलियाल
Posted on 19 May, 2014 03:14 PM भवानी शंकर थपलियाल का भुवन पाठक द्वारा लिया गया साक्षात्कार।

आप अपना परिचय दीजिए।
मैं, गढ़वाल के श्रीनगर में रहता हूं और पिछले 12-14 साल से सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत हूं। मैं कई प्रकाशनों तथा कई स्वयंसेवी संगठनों में साथियों के सहयोग से कार्य कर रहा हूं।
हे गंगे
Posted on 19 May, 2014 02:51 PM

गंगाबार बार मैं आता रहता
गंग तुम्हारे तट पर
बहती रहतीं रुकीं नहीं तुम
कलकल करतीं सस्वर
शिव अलकों में उमड़ घुमड़तीं
मुक्ति मार्ग की दानी

Maa Ganga
नदी संस्कृति में निहित गंगा निर्देश
Posted on 19 May, 2014 12:15 PM नदियों को मां का संवैधानिक दर्जा प्राप्त होते ही नदी जीवन समृद्धि के सारे अधिकार स्वतः प्राप्त हो जाएंगे। नदियों से लेने-देने की सीमा स्वतः परिभाषित हो जाएगी। हम कह सकेंगे कि नदी मां से किसी भी संतान को उतना और तब तक ही लेने का हक है, जितना कि एक शिशु को अपनी मां से दूध। दुनिया के किसी भी संविधान की निगाह में मां बिक्री की वस्तु नहीं हैं। अतः नदियों को बेचना संविधान का उल्लंघन होगा। नदी भूमि-जल आदि की बिक्री पर कानूनी रोक स्वतः लागू हो जाएगी। “मैं आया नहीं हूं, मुझे गंगा मां ने बुलाया है।’’ “मां गंगा जैसा निर्देश देगी, मैं वैसा करुंगा।’’ क्रमशः अपनी उम्मीदवारी नामांकन से पहले और जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बनारस में दिए उक्त दो बयानों से गंगा की शुभेच्छु संतानों को बहुत उम्मीदें बंधी होगी। नदियों हेतु एक अलग मंत्रालय बनाने की खबर से एक वर्ग की उम्मीदें और बढ़ी हैं, तो दूसरा वर्ग इसे नदी जोड़ के एजेंडे की पूर्ति की हठधर्मिता का कदम मानकर चिंतित भी है। मैं समझता हूं कि ढांचागत व्यवस्था से पहले जरूरत नीतिगत स्पष्टता की है। समग्र नदी नीति बने बगैर योजना, कार्यक्रम, कानून, ढांचे.. सभी कुछ पहले की तरह फिर कर्ज बढ़ाने और संघर्ष लाने वाले साबित होंगे।

शुभ के लिए लाभ ही भारतीयता


अतः जरूरी है कि सरकार पहले नदी पुनर्जीवन नीति, बांध निर्माण नीति और कचरा प्रबंधन नीति पारित करने संबंधी लंबित मांगों की पूर्ति की स्पष्ट पहल करे, तब ढांचागत व्यवस्था के बारे में सोचे।
Ganga river
पानी एक, परिदृश्य तीन
Posted on 17 May, 2014 02:49 PM

परिदृश्य-एक
उतरता पानी : बैठती धरती

polluted river
फिर भी क्यूं बेपानी हम
Posted on 17 May, 2014 02:22 PM

देश के एक बड़े समुदाय को अभी भी यह समझने की जरूरत है कि हमारी परंपरागत छोटी-छोटी स्वावलंबी जल स

water
नदी जोड़ का विकल्प : छोटी जल संरचनाएं
Posted on 17 May, 2014 09:31 AM नदियों में जल की मात्रा और गुणवत्ता हासिल करने के लिए फिर छोटी संरच
water map
लोकतंत्र और हमारा पर्यावरण
Posted on 16 May, 2014 02:50 PM पर्यावरण अभी भी इस देश में मुद्दा इसलिए नहीं है क्योंकि हमारा पर्यावरण के प्रति जो दृष्टिकोण है, वह ही हमारा अपना नहीं है। जब हम पर्यावरण की बात करते हैं तो हमें आर्थिक नीतियों के बारे में सबसे पहले बात करनी होगी। हमें यह देखना होगा कि हम कैसी आर्थिक नीति पर काम कर रहे हैं। अगर हमारी आर्थिक नीतियां ऐसी हैं जो पर्यावरण को अंततः क्षति पहुंचाती हैं तो फिर बिना उन्हें बदले पर्यावरण संरक्षण की बात का कोई खास मतलब नहीं रह जाता है। हमारा लोकतंत्र और हमारा पर्यावरण- दोनों ही ऐसे विषय हैं, जिनके बारे में एक साथ सोचने का वक्त आ गया है क्योंकि दोनों के सामने एक ही प्रकार की चुनौती है।

हमारा संसदीय लोकतंत्र इंग्लैंड के लोकतंत्र की नकल है जो किसी भी प्रकार से वास्तविक मुद्दों को राष्ट्रीय बनने से रोकता है। मसलन, जर्मनी में न केवल ग्रीन पार्टी की स्थापना होती है बल्कि वह गठबंधन के जरिए सत्ता में भी पहुंच जाती है। वहीं बगल के ब्रिटेन में ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता। ब्रिटेन में पिछले चुनावों में ग्रीन पार्टी को ठीक-ठाक वोट मिले थे। लेकिन आज भी ब्रिटेन में उसे कोई महत्त्व नहीं मिलता है। ग्रीन पार्टी की जरूरत तो ब्रिटेन में महसूस की जाती है लेकिन वहां की चुनाव-प्रणाली ऐसी है जो उसे सत्ता तक पहुंचने से रोकती है। जाहिर सी बात है मुद्दे संसद तक सफर कर सकें, यह ब्रिटेन की संसदीय-प्रणाली में अनिवार्य नहीं है।
गांधी कायम हैं
Posted on 16 May, 2014 02:41 PM हिंसा का जवाब हिंसा नहीं है- इस सचाई को अभी कुछ ही पहले पहचान चुका कोकराझार और बक्सा क्षेत्र का समाज फिर उसी हिंसा का शिकार हुआ है। यहां आज सब समुदाय अल्पसंख्यक से बन गए हैं। चुनाव की राजनीति ने अविश्वास की जड़ों को और सींचा है। ऐसे में शांति, सद्भाव व अहिंसा का पौधा कैसे पनपेगा- इसी की तलाश में लगे कामों का लेखा-जोखा।
Mohandas Karamchand Gandhi
हाथ से छूटा पारस
Posted on 16 May, 2014 02:30 PM

जो गांधी के साथ के थे- उनके अनुयायी ही नहीं बल्कि उस कोटि के लोग जिनसे गांधी सलाह-मशविरा करते थ

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