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आर्सेनिक : खामोश कातिल (Arsenic : Silent Killer)
Posted on 06 Aug, 2015 03:33 PM

समस्या


वर्ष 2000 से पहले आर्सेनिक के मामले बांग्लादेश, भारत और चीन से ही सामने आते थे। मगर पिछले दशक के शुरुआती सालों में आर्सेनिक प्रदूषण का फैलाव दूसरे एशियाई मुल्कों जैसे मंगोलिया, नेपाल, कम्बोडिया, म्यांमार, अफगानिस्तान, कोरिया, पाकिस्तान आदि में भी दिखने लगा है। साथ ही बांग्लादेश, भारत और चीन में भी आर्सेनिक की अधिक मात्रा के मामले कई और नए इलाकों में भी सामने आने लगे हैं। महज कुछ दशक पहले तक आर्सेनिक का जिक्र पानी के मुद्दों में अमूमन नहीं होता था। लेकिन पिछले कुछ दशकों से आर्सेनिक प्रदूषण के मामले चर्चा के केन्द्र में आ गए हैं। दुनिया भर में 20 से भी ज्यादा मुल्कों के भूजल में आर्सेनिक होने के मामले सामने आये हैं (बोरडोलोई, 2012)। खासतौर पर हमारे दक्षिण एशियाई देशों में लगातार पेयजल में आर्सेनिक के मामले प्रकाश में आ रहे हैं और बड़ी संख्या में लोगों के इससे पीड़ित होने का पता चल रहा है और अब इसे वृहद जनस्वास्थ्य समस्या के रूप में देखा जाने लगा है।

हालांकि भूजल में आर्सेनिक की उपस्थिति भूगर्भ में होने की वजह से होता है। पर कई और वजहें भी हैं भूजल में आर्सेनिक की सान्द्रता बढ़ने की। इनमें से कुछ प्राकृतिक वजहें हैं, जैसे, आर्सेनिक चट्टानों के टूटने और सेडिमेंटरी डिपोजीशन (रेजा एट एल., 2010), मानवजनित वजहें जैसे धात्विक खनन, खेती में आर्सेनिकयुक्त उर्वरकों का इस्तेमाल (स्मेडली एट एल., 1996), फर्नीचर आदि के आर्सेनिकयुक्त प्रीजरवेटिव्स और कीटनाशकों के इस्तेमाल (एफएक्यू, 2011)
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Posted on 04 Aug, 2015 11:08 AM आजादी के समय देश में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष जल उपलब्धता 5000 घन मीटर थी जो न्यूनतम जरूरत की ढाई गुनी थी। तब अन्तरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर हम भी जल सम्पन्न देशों की सूची में थे। नब्बे का दशक आते-आते जनसंख्या इतनी बढ़ गई कि प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष जल की आवश्यकता के लिहाज से हम सीमान्त स्थिति में पहुँच गए। जल प्रबन्धन के लगभग सारे लक्ष्य हासिल करने के बावजूद खेत तक सिंचाई का पानी पहुँचाने की हमारी हैसियत जवाब देती जा रही थी। जल संकट सामान्य अनुभव है। तीस साल पहले हमने इस संकट की तीव्रता महसूस की थी और बेहतर जल प्रबधन के लिये गम्भीरता से काम करना शुरू किया था। हालांकि आजादी मिलने के फौरन बाद ही जब पहली योजना बनाने का काम शुरू हुआ तब सिंचाई प्रणाली को और ज्यादा विस्तार देने की बात हमारे नेताओं ने समझ ली थी। तभी बाँध परियोजनाओं पर तेजी से काम शुरू कर लिया गया। हालांकि सन् 1950 का वह समय ऐसा था कि देश की आबादी 36 करोड़ थी।

देश के पास प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष जल उपलब्धता पाँच हजार घनमीटर थी। यानी अन्तरराष्ट्रीय मानदंडों के मुताबिक हर व्यक्ति की जरूरत से ढाई गुना पानी उपलब्ध था। लेकिन इस पानी का इस्तेमाल करने लायक हम नहीं थे। ज्यादातर खेती वर्षा आधारित थी। खेती के उपकरणों का इस्तेमाल ना के बराबर था। जैसे-तैसे जरूरत भर का अनाज पैदा करने की कोशिश शुरू हुई। उसी का नतीजा था कि ब्रिटिश सरकार की बनाई सिंचाई व्यवस्था को तेजी से विस्तार देने का काम शुरू किया गया।
देवनदी गंगा का आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व
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‘‘गंगे च यमुने चैव गोदावरी च सरस्वती,
नर्मदे, सिन्धु, कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरु।।”

पर्यावरण एवं जल संरक्षण के लिये मानसून पूर्व करें श्रमदान
Posted on 04 Aug, 2015 09:30 AM

अपना तालाब अभियान के पहल पर ‘इत सूखत जल सोत सब, बूँद चली पाताल। पानी मोले आबरू, उठो बुन्देली ला

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Posted on 04 Aug, 2015 09:08 AM अमरकंटक से कपिलधारा तक नर्मदा सीधे-सपाट मैदान में से होकर बहती है।
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