Posted on 21 Feb, 2017 12:28 PM भरतपुर की पारम्परिक जल संचय प्रणालियों से सीख लेना तो दूर, आज के अधिकारी पुराने समय की जलापूर्ति व्यवस्थाओं का रख-रखाव करने में भी विफल रहे हैं। केवल नलकूप पानी के स्रोत बनकर रह गए हैं।
Posted on 21 Feb, 2017 12:08 PM अकाल की राजनीति में उलझे एक आदर्शवादी प्रशासनिक अधिकारी के संघर्ष पर केन्द्रित यूआर अनंतमूर्ति का उपन्यास ‘बारा’ आज भी बेहद प्रासंगिक है
Posted on 20 Feb, 2017 04:32 PM दुनिया भर में कोरल रीफ (प्रवाल-भित्ति या मूँगे की चट्टानों) को जैसा नुकसान आजकल पहुँच रहा है, इतना गम्भीर खतरा कभी नहीं देखा गया। इससे इनका अस्तित्व ही संकट में पड़ गया है। पृथ्वी की यह बहुमूल्य धरोहर क्यों विनाश के कगार पर है और इसे लेकर हमें क्यों चिन्तित होना चाहिए?
20 सितंबरः दिल्ली उच्च न्यायालय ने केन्द्र और दिल्ली सरकार को यह निर्देश दिया कि वे ऐसे प्रभावी कदम उठाएँ, जिससे कि दिल्ली का कोई भी अस्पताल डेंगू रोगियों के उपचार या प्रवेश से इनकार नहीं कर सके।
Posted on 19 Feb, 2017 12:25 PM टोंग्या एक ऐसी चाल है जिसका अंग्रेजों ने बर्मा (आधुनिक म्यांमार) में खूब इस्तेमाल किया। इस पद्धति का पहली बार प्रयोग वहाँ 19वीं शताब्दी के मध्य में किया गया था। म्यांमार की भाषा में ‘टोंग’ का अर्थ टीला और ‘या’ का अर्थ खेती होता है। साम्राज्यवादियों ने इस पद्धति का विकास इसलिये किया, ताकि वनों को व्यावसायिक मूल्य वाले वृक्षों से पाटा जा सके। मानव श्रम के लिये उन्होंने ऐसे गैर-ईसाई लोगों को अप
Posted on 19 Feb, 2017 12:16 PM आदिवासी परम्पराओं को आधुनिक समाज पुरातनपंथी, अवैज्ञानिक और बीते समय की बात कहता रहा है। लेकिन, असल में जनजातीय समाज की परम्पराओं, गीतों, त्योहारों, भोजन, वस्त्र, जीवनशैली का गम्भीरता से अध्ययन करें तो हम पाएँगे कि उनकी प्रत्येक परम्परा प्रकृति को उसके मूल रूप में अक्षुण्ण रखने का एक प्रयास है