बिहार

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पूर्वी कोसी तटबन्ध का बहुअरवा कटाव (1980)
Posted on 17 Aug, 2012 11:30 AM

1984 में एक एन्क्वायरी हुई थी। तब तक रिटायर्ड लाइन वगैरह सब बन चुकी थी। सारा काम खत्म हो चुका

भटनियाँ अप्रोच बांध का टूटना (1971)
Posted on 14 Aug, 2012 11:16 AM

कोढ़ली की रिटायर्ड लाइन बनने के बाद भटनियाँ के नजदीक कोसी की गोबरगढ़ा धार से एक उप-धारा निकली

जमालपुर जल-समाधि (1968)
Posted on 14 Aug, 2012 10:23 AM

तटबन्धों के अन्दर की सारी फसल मारी गई और बड़ी तादाद में घर गिरे। कोसी और कमला की सहायक धाराओं

दरार जो नहीं पड़ी-कुनौली (1967)
Posted on 13 Aug, 2012 02:53 PM एक बार जब डलवा में तटबन्ध की दरार को पाट दिया गया तब पश्चिमी तटबन्ध पर नदी के हमले डलवा से थोड़ा नीचे भारत-नेपाल सीमा पर कुनौली के पास शुरू हुये। यहाँ कोई दुर्घटना नहीं हुई और परेशानी भी बहुत ज्यादा नहीं हुई क्योंकि कुनौली भारत में अवस्थित है। इस तरह नेपाल प्रकरण से लोग बचे हुये थे। खर्च और दरार पड़ने का दबाव जरूर अपनी जगह पर था।
तटबन्ध का अलाइनमेन्ट-तकनीक नहीं, जनमत संग्रह
Posted on 13 Aug, 2012 09:56 AM इस तरह से रंगमंच पर अब सारे पात्रा इकट्ठे थे। एक तरफ वह लोग थे जो चाहते थे कि पश्चिमी तटबन्ध को पूरब की ओर ठेल दिया जाय। दूसरी ओर वह थे जो पूरबी तटबन्ध को पश्चिम की ओर ठेलने की मांग कर रहे थे। अगर यह दोनों मांगें मान ली जाती हैं तो बीच में नदी के पानी के बहाव के लिए जगह बहुत कम बचती है और इसलिए तटबन्धों के बीच में रहने वाले लोगों की मांग थी कि अव्वल तो तटबन्ध बनें ही नहीं और अगर उसका निर्माण एकदम
सरकार द्वारा विरोध दबाने के लिये सशस्त्र पुलिस उतारने की धमकी
Posted on 13 Aug, 2012 09:46 AM

आन्दोलन के अन्य जगहों पर फैलने के अन्देशे से सरकार ने पुलिस बन्दोबस्त को पूरा मजबूत करके रखा थ

पूर्वी तटबन्ध पर भी लोग तटबन्ध के बाहर रहना चाहते हैं
Posted on 11 Aug, 2012 11:50 AM

जब पूरब और पश्चिम वाले दोनों तटबन्धों के बीच सामूहिक पंचलत्ती पड़ने के कारण फासले कम होने लगे

अब कोसी तटबन्धों और कोसी पीड़ितों के साथ धक्का-मुक्की
Posted on 11 Aug, 2012 11:35 AM

कोसी प्रोजेक्ट के इंजीनियरों के लिए तटबन्ध का अलाइनमेन्ट अब तक सिरदर्द बन चुका था। जो जहाँ फंस

उपेक्षित पीड़ित और उनका संघर्ष
Posted on 11 Aug, 2012 11:15 AM एक ओर कोसी के थपेड़ों से बचने वाले इलाकों के लोगों के मन में जहाँ खासा जोश-खरोश था वहीं दूसरी ओर वह किसान जिनकी जमीनों का निर्माण कार्यों के लिये अस्थाई अधिग्रहण हुआ था और वह लोग जिनकी जमीनों पर से होकर तटबन्धों को गुजरना था, थोड़े बहुत मुआवजे की उम्मीद में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे थे। उनकी दौड़-धूप इस जुम्मे से उस जुम्मे तक और इस दरवाजे से उस चैखट तक निर्बाध गति से चल रही थी। सरकार ने अपनी
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