उमेश कुमार राय
एक इंजीनियर, जो नदियों का होकर रह गया : दिनेश कुमार मिश्रा
Posted on 11 Jun, 2017 10:56 AM
5 सितम्बर 1984 को सहरसा जिले के नवहट्टा प्रखंड में हेमपुर गाँव के पास कोसी नदी का तटबंध टूटा था और कोसी ने 196 गाँवों को अपनी आगोश में ले लिया था। करीब 5 लाख लोग तटबंध के बचे हुए हिस्से पर शरण लिये हुए थे। दूर तक पानी और सिर्फ पानी ही दिख रहा था। पूरे क्षेत्र में त्राहिमाम मचा हुआ था।
उसी वक्त एक 38 वर्षीय इंजीनियर के पास संदेश आता है कि सहरसा में कुछ समस्याएँ हैं और उसे वहाँ जाकर काम करना है। संदेश देनेवाले शख्स थे एक दूसरे इंजीनियर विकास भाई जो वाराणसी में रहा करते थे और 1966 में सर्वोदय कार्यकर्ता हो गये थे।
रवींद्र पाठक : पानी बचाने को आतुर एक व्यक्तित्व
Posted on 08 Jun, 2017 11:35 AMगया के आशा सिंह मोड़ से जब हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी की एमआइजी 87 में आप दाखिल होंगे, तो आपका सामना सामने ही शान से खड़े आम के एक ठिगने-से पेड़ से होगा। इस पेड़ के पास हरी घास व फूल के पौधे मिलेंगे, जो आपको यह अहसास दे देंगे कि यहाँ रहने वाला व्यक्ति पर्यावरण, पानी व पेड़ों को लेकर संवेदनशील होगा।
लंबी कदकाठी के 58 वर्षीय शख्स रवींद्र पाठक यहीं रहते हैं। रवींद्र पाठक मगध क्षेत्र और खासकर गया में पानी के संरक्षण के लिये लंबे समय से चुपचाप काम कर रहे हैं, आम लोगों को साथ लेकर।
उनसे जब बातचीत शुरू होती है, तो सबसे बड़ी मुश्किल होती है, उस सिरे को पकड़ना जहाँ से बातचीत एक रफ्तार से आगे बढ़ेगी, क्योंकि उनके पास गिनाने के लिये बहुत कुछ है। वह खुद पूछते हैं, ‘आप बताइये कि आप क्या जानना चाहते हैं।’
मुक्ति की आस में मुक्तिदायिनी फल्गु
Posted on 16 May, 2017 11:16 AMगंगा पदोदकं विष्णो फल्गुहर्यादि गदाधर:।
स्वयं हि द्रवरूपेण तस्माद्गंगाधिकां विद:।।
(गंगा भगवान विष्णु का चरणामृत है। फल्गु रूप में स्वयं आदि गदाधर ही हैं। स्वयं भगवान द्रव (जल) रूप में हैं। इसलिए फल्गु को गंगा से अधिक समझना चाहिए।)
मुक्तिर्भवति पितृणां कतृणां तारणाय च।
ब्रह्मणा प्रार्थितो विष्णु: फल्गुरूपो भवत्पुरा।।
बागमती पर तटबंध को लेकर सरकार ने बनायी कमेटी
Posted on 02 May, 2017 11:10 AMबागमती नदी पर तटबंध बनाये ज
ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स का अस्तित्व मिटाने की तैयारी
Posted on 27 Apr, 2017 03:17 PMरोज करीब 250 मिलियन लीटर गंदे पानी का परिशोधन करने वाले व कार्बन को सोखने की अकूत क्षमता रखने वाले ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स पर अतिक्रमण का आक्रमण बढ़ रहा है। यह हमला अगर आने वाले समय में भी जारी रहा, तो एक दिन इसका अस्तित्व ही मिट जायेगा।
चार पर्यावरणविदों द्वारा किये गये एक शोध में खुलासा हुआ है कि वेटलैंड्स (आर्द्रभूमि) का तेजी से अतिक्रमण किया जा रहा है और उस पर मकान बनाये जा रहे हैं।
पृथ्वी को लेकर बदलना होगा नजरिया
Posted on 15 Apr, 2017 10:25 AMपृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल 2017 पर विशेष
तमाम वैज्ञानिकों और महापुरुषों ने प्रकृति या कह लें कि पृथ्वी को बचाने के लिये तमाम बातें कही हैं, लेकिन मानव का रवैया कभी भी प्रकृति या पृथ्वी को लेकर उदार नहीं रहा। लोग यही मानते रहे कि वे पूरी पृथ्वी के कर्ता-धर्ता हैं। मानव ने पृथ्वी के अंगों पेड़-पौधे, हवा, पानी, जानवर के साथ क्रूर व्यवहार किया। जबकि सच यह है कि दूसरे अंगों की तरह ही मानव भी पृथ्वी या प्रकृति का एक अंग भर है। पृथ्वी का मालिक नहीं।
दूसरी बात यह है कि पृथ्वी के दूसरे अंग पेड़-पौधे और पानी भी मानव की तरह ही हैं। उनमें भी जीवन है और उन्हें भी अपनी सुरक्षा, देखभाल करने का उतना ही अधिकार है जितना एक आदमी को। हाल ही में उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में इस आधार को मजबूती दी है। हाईकोर्ट ने नदी को मानव का दर्जा दिया है। यही नहीं, इनके अभिभावक भी तय कर दिये हैं, जिनका काम नदियों को संरक्षित और सुरक्षित करना होगा।
‘कड़वी हवा’ का जिक्र एक मीठा एहसास
Posted on 13 Apr, 2017 03:37 PM64वें राष्ट्रीय पुरस्कार में फिल्म कड़वी हवा की सराहना
इस बार के नेशनल अवार्ड में सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाने वाले फिल्म निर्देशक नील माधब पांडा की ताजा फिल्म ‘कड़वी हवा’ का विशेष तौर पर जिक्र (स्पेशल मेंशन) किया गया।
स्पेशल मेंशन में फिल्म की सराहना की जाती है और एक सर्टिफिकेट दिया जाता है, बस! बॉलीवुड से गायब होते सामाजिक मुद्दों के बीच सूखा और बढ़ते जलस्तर के मुद्दों पर बनी कड़वी हवा की सराहना और सर्टिफिकेट मिलना राहत देने वाली बात है।
फिल्म की कहानी दो ज्वलन्त मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है-जलवायु परिवर्तन से बढ़ता जलस्तर व सूखा। फिल्म में एक तरफ सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड है तो दूसरी तरफ ओड़िशा के तटीय क्षेत्र हैं। बुन्देलखण्ड पिछले साल भीषण सूखा पड़ने के कारण सुर्खियों था। खबरें यह भी आई थीं कि अनाज नहीं होने के कारण लोगों को घास की रोटियाँ खानी पड़ी थी। कई खेतिहरों को घर-बार छोड़कर रोजी-रोजगार के लिये शहरों की तरफ पलायन करना पड़ा था।
बागमती को बाँधने में किसी का हित नहीं
Posted on 11 Apr, 2017 10:09 AM
सत्तर के दशक में जब बागमती नदी पर तटबन्ध बनाया जा रहा था, तब ग्रामीणों ने इसका पुरजोर विरोध किया था। उस वक्त कुछ दूर तक तटबन्ध बने, लेकिन लोगों के विरोध के मद्देनजर काम बन्द कर दिया गया था। इस घटना के लगभग चार दशक गुजर जाने के बाद दोबारा बिहार सरकार बाकी हिस्से पर तटबन्ध बनाना चाहती है और इस बार भी ग्रामीण विरोध कर रहे हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि तटबन्ध बनने से उन्हें फायदे की जगह नुकसान होगा लेकिन सरकार का तर्क है कि वह तटबन्ध बनाकर बाढ़ को बाँध देगी। तटबन्ध की खिलाफत करने वाले लोगों के साथ सरकार की बातचीत हुई, तो तटबन्ध से होने वाले नफा-नुकसान का आकलन करने के लिये विशेषज्ञों की कमेटी बनाने पर सहमति बनी, लेकिन तटबन्ध के खिलाफ आन्दोलन करने वाले लोगों का आरोप है कि किसी भी तरह सरकार तटबन्ध बनाने पर आमादा है और वह आम लोगों के हित नहीं देख रही है।
एक चलता-फिरता बाग
Posted on 16 Mar, 2017 01:40 PMऊपर हरी घास से भरा एक छोटा-सा लॉन है। पीछे की तरफ 6 गमलों में आकर्षक पौधे व सामने की तरफ सजावटी पौधों के भरे दो गमले रखे हुए हैं।
42 वर्षीय धनंजय चक्रवर्ती इस छोटे से बाग के बागवान हैं। बड़े जतन से वह रोज इन पौधों व लॉन में पानी डालते हैं और फिर इसे लेकर सड़क पर उतरते हैं।