श्रीपाद धर्माधिकारी

श्रीपाद धर्माधिकारी
दुनिया के अन्य इलाकों के अनुभव
Posted on 21 Jan, 2014 03:35 PM
जिन परियोजनाओं पर काफी काम हो चुका है, उनमें छत्तीसगढ़ की शिवनाथ न
निजीकरण के मुद्दे व समस्याएं
Posted on 21 Jan, 2014 03:28 PM
निजी कंपनी मुनाफ़े की ख़ातिर धंधे में आती है और उन लोगों के बारे में कोई मुरव्वत नहीं करती, जो ऊंची दर
निजीकरण का नमूना बना बिजली क्षेत्र
Posted on 19 Jan, 2014 10:23 AM
पानी व बिजली क्षेत्र की समानताओं के कारण यह स्वाभाविक है कि पानी का निजीकरण भी बिजली की तर्ज पर किया ज
कोचाबांबा का पानी युद्ध
Posted on 17 Jan, 2014 12:16 PM
पानी के निजीकरण की पैरवी करने वालों के लिए कोचाबांबा एक गहरे सदमे स
रहिमन पानी बिक रहा सौदागर के हाथ
Posted on 17 Jan, 2014 11:57 AM

प्रस्तावना


पानी का निजीकरण देश में एक चिंता का विषय बनता जा रहा है।

महाराष्ट्र का सिंचाई घोटाला
Posted on 23 Apr, 2013 10:47 AM
हमारे देश में पानी के उपयोग की प्राथमिकताएं तय की गई हैं। इसमें आमतौर पर पहले नंबर पर पेयजल, दूसरे नंबर पर सिंचाई और तीसरे नंबर पर उद्योगों को रखा जाता है। हर राज्य की अपनी जलनीति होती है, जिसमें यह वरीयता क्रम स्पष्ट किया जाता है। इसके बावजूद हर राज्य में बुनियादी ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ करके उद्योगों को और बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों को पानी दिया जाता है। लेकिन महाराष्ट्र में तो इसे नीति का ही हिस्सा बना दिया गया। राज्य की 2003 की जल नीति में पानी के उपयोग की प्राथमिकताओं में पेयजल के बाद उद्योगों को रखा गया और खेती का नंबर उसके बाद कर दिया गया। पिछले साल का उत्तरार्ध महाराष्ट्र की राजनीति में काफी गरम रहा। सिंचाई योजनाओं में घोटाले और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप जल संसाधन विभाग पर लगे। उपमुख्यमंत्री अजित पवार के इस्तीफ़े और वापसी का नाटक हुआ। जले पर नमक छिड़कने की भूमिका राज्य सरकार की ही सालाना आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट ने निभाई। इस रिपोर्ट से पता चला कि पिछले दस सालों में राज्य के सिंचित क्षेत्र में केवल 0.1 फीसदी बढ़ोतरी हुई। यह तब हुआ जब इसी अवधि में प्रधानमंत्री ने विदर्भ के किसानों के लिए विशेष पैकेज दिया, जिसमें सिंचाई योजनाओं का प्रमुख स्थान था। इस रिपोर्ट से इस सवाल को बल मिला कि इन दस सालों में महाराष्ट्र में सिंचाई की मद में जो करीब 70,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, वो कहां गए। माहौल इतना गरम हुआ कि मुख्यमंत्री को सिंचाई हालत पर श्वेतपत्र निकालने की घोषणा करनी पड़ी। पंद्रह दिन में निकलने वाला श्वेतपत्र कई महीनों बाद नवंबर के अंत में निकला। इस श्वेतपत्र का विश्लेषण इस लेख का मकसद नहीं है। लेकिन इसमें सिंचाई में कमी के जो कारण बताए गए हैं, उनमें से एक महत्वपूर्ण कारण की चर्चा यहां की गई है।

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