सोपान जोशी

सोपान जोशी
शौचालय से निकले कुछ विचार
Posted on 03 Nov, 2016 10:49 AM

पटरी से लेकर न्यायालय की मेज तक फैली इन विषमताओं का आदर्श समाधान है शौच निपटने की कोई और

जल, थल और मल
Posted on 31 Oct, 2016 04:08 PM

जीवन की यह रूपरेखा बहुत कामयाब हुई। ये जीव बहुत फले-फूले और
सद्गति और दुर्गति
Posted on 12 Feb, 2016 03:41 PM

दो-दो पलों में बँटी हमारी चेतना के लिये दो अरब साल बहुत होते हैं। यानी चौबीस अरब महीने। 5

अमीरीः पीर पराई न जाने रे
Posted on 16 Jan, 2016 11:20 AM

जैसे-जैसे धन-दौलत और शिक्षा का व्यापार बढ़ता है, सफल लोगों में करुणा और संवेदना कम होती जातीहै। यह किसी धार्मिक गीत या गाँधीजी की कही हुई बात भर नहीं है। अब इसके सबूत आधुनिक मनोविज्ञानसे आ रहे हैं।
जैविक खेती का रासायनिक किसान
Posted on 15 Jan, 2016 10:51 AM

ज्यादा पुरानी बात नहीं है। देश में खाने की किल्लत थी और सीमा पर हमले का डर था। तब जय जवान, जय किसान का नारा लगा। देश को किसानों की जरूरत थी, इसलिये प्रगति के नाम पर उनसे अपने पुराने तरीके छोड़ आधुनिक खेती करने को कहा गया।

कई इलाकों के किसानों को जोर डाल कर कहा गया कि उत्पादन बढ़ाएँ। इसके लिये उन्हें कई तरह के उन्नत कहे जाने वाले बीज और नई तरह के कीटनाशक और खाद दिये गए।

उत्पादन बढ़ा भी। गोदाम भर गए। हमारे समाज के सत्तासीन लोग जो लोग अपना भोजन नहीं उगाते, उनकी चिन्ता दूर हुई। किसान का महत्त्व स्वतः ही कम हो गया। कई इलाकों में भुखमरी फिर भी दूर नहीं हुई।
प्रकाश की गति से फैलता अंधेरा
Posted on 14 Dec, 2015 10:44 AM

वैमनस्य ने भेस बदल लिया है। घृणा ने अपना वाहन बदला है। ये सब भी ‘स्मार्ट’ बनते जा रहे हैं। नई संचारक्रांति घृणा के तीर बड़ी तेजी से फेंकती है। प्रकाश की गति से अंधेरा फैलाते हैं हमारे नए स्मार्ट फोन।
बोलती-चालती हिंसा
Posted on 11 Jan, 2014 03:59 PM

कई पहाड़ों, जंगलों और खेतों पर गिरी बारिश के पानी के संगम से नदियां बनती हैं। एक दूसरे से मिलकर

खाद की जीती-जागती फ़ैक्टरी
Posted on 11 Oct, 2013 04:15 PM
नरेद्र मोदी की माने तो देवालय से ज्यादा शौचालय की जरूरत है। हमारा काम देवालय गए बगैर भी चल सकता है लेकिन शौचालय गए बगैर तो बिल्कुल नहीं। फिलहाल जबकि देश की पूरी आबादी के पास शौचालय की सुविधा नहीं है तभी हमारी नदियां, सभी जलस्रोत मल-जल से अटे पड़े हैं। तब जरा कल्पना करके देखिए अगर जितने ज्यादा लोग उतने ज्यादा शौचालय होंगे तो देश के जलस्रोतों का क्या हाल होगा। कुदरत ने कुछ भी बेकार नहीं बनाया। ह
उर्वरता की हिंसक भूमि
Posted on 03 Sep, 2013 11:50 AM

सन 1908 में हुई एक वैज्ञानिक खोज ने हमारी दुनिया बदल दी है। शायद किसी एक आविष्कार का इतना गहरा असर इतिहास में नहीं होगा। आज हममें से हर किसी के जीवन में इस खोज का असर सीधा दीखता है। इससे मनुष्य इतना खाना उगाने लगा है कि एक शताब्दी में ही चौगुनी बढ़ी आबादी के लिए भी अनाज कम नहीं पड़ा। लेकिन इस आविष्कार ने हिंसा का भी एक ऐसा रास्ता खोला है, जिससे हमारी कोई निजाद नहीं है। दो विश्व युद्धों से लेकर आतंकवादी हमलों तक। जमीन की पैदावार बढ़ाने वाले इस आविष्कार से कई तरह के वार पैदा हुए हैं, चाहे विस्फोटकों के रूप में और चाहे पर्यावरण के विराट प्रदूषण के रूप में।

दुनिया के कई हिस्सों में ऐसे ही हादसे छोटे-बड़े रूप में होते रहे हैं। इनको जोड़ने वाली कड़ी है उर्वरक के कारखाने में अमोनियम नाइट्रेट। आखिर खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले इस रसायन में ऐसा क्या है कि इससे इतनी तबाही मच सकती है? इसके लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा उन कारणों को जानने के लिए, जिनसे हरित क्रांति के उर्वरक तैयार हुए थे।

इस साल 17 अप्रैल को एक बड़ा धमाका हुआ था। इसकी गूंज कई दिनों तक दुनिया भर में सुनाई देती रही थी। अमेरिका के टेक्सास राज्य के वेस्ट नामक गांव में हुए इस विस्फोट से फैले दावानल ने 15 लोगों को मारा था और कोई 180 लोग हताहत हुए थे। हादसे तो यहां-वहां होते ही रहते हैं और न जाने कितने लोगों को मारते भी हैं। लेकिन यह धमाका कई दिनों तक खबर में बना रहा। इससे हुए नुकसान के कारण नहीं, जिस जगह यह हुआ था, उस वजह से। धमाका किसी आतंकवादी संगठन के हमले से नहीं हुआ था। उर्वरक बनाने के लिए काम आने वाले रसायनों के एक भंडार में आग लग गई थी। कुछ वैसी ही जैसी कारखानों में यहां-वहां कभी-कभी लग जाती है। दमकल की गाड़ियां पहुंचीं और अग्निशमन दल अपने काम में लग गया। लेकिन उसके बाद जो धमाका हुआ, उसे आसपास रहने वाले लोगों ने किसी एक भूचाल की तरह महसूस किया।
साधारण - सा जीवन : असाधारण किताबें
Posted on 11 Jan, 2013 03:52 PM

युद्ध की हिंसा से तो जोसेफ बच गए पर अपनी अंतरआत्मा से नहीं। उन्हें ये मंजूर नहीं था कि उनकी कमाई से वसूले कर का इस्तेमाल अमेरिकी सरकार युद्ध के लिए करे। उन्होंने गरीबी में रहने का प्रण लिया ताकि उन्हें सरकार को कर चुकाना ही न पड़े।

सिर पर स्लेट पत्थर की छत और पांव के नीचे अपने ही मल-मूत्र से बनी जमीन! जोसेफ जेंकिन्स का बस ही तो है संक्षिप्त परिचय। श्री जोसेफ ने पन्द्रह साल पहले एक पुस्तक लिखी थी ‘द स्लेट रूफ बाइबल’। 17 साल पहले लिखी थी ‘द ह्यूमन्योर हैंडबुक’। दोनों किताबों ने हजारों लोगों को प्रभावित किया है, प्रेरणा दी है। वे दूसरों को बताते नहीं हैं कि उनकी नीति क्या होनी चाहिए, उन्हें अपना जीवन कैसे जीना चाहिए। वे खुद ही वैसा जीवन जीते हैं और अपने जीवन की कथा सहज और सरल आवाज में बताते जाते हैं।

जोसेफ जेंकिन्स की अहिंसक यात्रा एक युद्ध से ही शुरू हुई थी। उनके पिता अमेरिकी सेना में काम करते थे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद वे जर्मनी में तैनात थे। वहीं श्री जोसेफ का जन्म सन् 1952 में हुआ था। सेना की नौकरी। हर कभी पिताजी का तबादला हो जाता। बालक जोसेफ हर साल-दो-साल में खुद को एक नए शहर में पाता, नए लोगों के बीच, नए संस्कारों में।
×