प्रेमशंकर शुक्ल

प्रेमशंकर शुक्ल
पानी बहुत उदास है
Posted on 29 Apr, 2011 09:08 AM
पानी बहुत उदास है
बोतल में पानी का चेहरा उतरा हुआ है
याद आ रही हैं उसे अपनी लहरें
वह पार्वती नदी याद आ रही है
जिसका वेग उसे बाँधता था

सोचा था उसने किसी मटके में हो
वह खूब ठण्डाएगा
और बुझाएगा किसी अतिथि की प्यास
अब भी वह सोच रहा है मन ही मनः
काश! उसे चुल्लू से पीता कोई भर प्यास

या काम-धन्धे से लौट
लोटे से पी जाता एक साँस,
प्यास
Posted on 28 Apr, 2011 10:03 AM
जिन्दगी प्यास को जिन्दा रख
पानी को मरने से बचाती है

प्यास की पगडण्डी
नदी-घाट तक जाती है
झरने के पास सुदूर पहाड़ तक

पनिमास (पनघट) हमारे जनपद की दिनचर्या हैं
बहुरियों की हँसी-खुशी से शीतल होता रहता है
जल

प्यास की रस्सी से
कुएँ का पानी हलक में गिरता है
लोटा-गगरी-कलश-बाल्टी-गिलास
प्यास की खिदमत में हैं दिन-रात
हचक के बरसा पानी
Posted on 27 Apr, 2011 09:27 AM
हचक के बरसा पानी
धान खेत टहके
खेत को मेड़ का बल मिला

पानी का करिश्मा
कि हरियाली है निरोग
थाली और खेत में

इतनी समानता
कि पाकर अन्न
दोनों होंय प्रसन्न

हचक के बरसा पानी
नदी-नार बलवान हो गए
गा-गा कर के
झींगुर-दादुर गुणवान हो गए!

बारिश में भीग-भीग
Posted on 26 Apr, 2011 09:02 AM
बारिश में भीग-भीग
धान रोपने के लिए
लेउ लगाता खेतिहर
हुलक कर कहता है-

पानी पा गया
तो किसानी बन गयी
लगता है बाल-बच्चों के
नसीब में बदा है
भात!

सानी-पानी के नशे में
डूबे हुए बैल
जड़ता जोत रहे हैं
जैसे कहानी से चलकर हल में नध
गए हैं प्रेमचंद के ‘हीरा-मोती’

खेत भी पानी पाकर
तन गया है चम्मेल
प्यास में
Posted on 25 Apr, 2011 10:15 AM
प्यास में
पानी ही भूमिका है
पानी ही विचार है
पानी ही कविता-कथा है
पानी ही उपसंहार है!

जगा रहा है जल
Posted on 25 Apr, 2011 10:07 AM
चट्टान सोयी है पत्थर-नींद
बूँद-बूँद कर अपने को
जगा रहा है जल

जल जगाता है
जब-तब इसे मेरे भीतर
एक पाखी गाता है

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