प्रेमशंकर शुक्ल

प्रेमशंकर शुक्ल
सूखी झील
Posted on 08 Jul, 2011 09:40 AM
सूखी झील को देखकर
आसमान के चेहरे पर
गहरी बेचैनी है

सतह का चेहरा भी
रूखा है
बिवाई की तरह फटा हुआ

बहुत सूख गयी है झील
तल की दरारों का अँधेरा
रात के पाँव में गड़ता है

जिस झील का पानी
पालता था पूरा शहर
वही झील आज

अपनी प्यास में छटपटाती है
उछलती लहरें बीत गयीं
और बचा हुआ पानी
गूँगा हो गया है!

सूख चली थी झील
Posted on 06 Jul, 2011 03:36 PM
हर बरस की तरह
इस बरस भी चल रही थी ज़िन्दगी
सिवा इसके कि जितना सूख गयी थी झील
उतनी ही सूख गयी थी शहर की सुंदरता

जैसे-तैसे पीने को पानी मिल ही रहा था शहर को
पर पानी की रंगत से शहर दूर था
शहर में कोई मेहमान आता था तो अब
दिखाने के लिए नहीं था कुछ खास
क्योंकि झील सूख चली थी

चूँकि झील सूख चली थी
इसलिए हवा बिना नहाए ही
सूर्य मगन है
Posted on 05 Jul, 2011 02:31 PM
सूर्य मगन है
अपने गगन में

बड़ी झील
अपने पानी में
ध्यानस्थ

किनारे दुपहर की
झपकी ले रहे हैं

बासन्ती धूप
पानी से लिपटी पड़ी है
डूबकर इन्हें निहारने में
मर्यादा है
खाँसने तक से
सुन्दरता का यह ताना-बाना
तार-तार हो जायेगा

तुम से बोलते-बतियाते
Posted on 04 Jul, 2011 09:22 AM
बड़ी झील!
तुम से बोलते-बतियाते
मेरी जुबान की मैल छूट जाती है
और धुल जाते हैं सारे दाग-धब्बे

कितना सारा मौन छुपा रखा है मैंने
तुम्हारे पानी में
एक दिन निकाल कर सारा मौन
उसे कहने में लाऊँगा
फिर भी जो कह न पाऊँगा
उसे ज़रूर तुम्हारे कान में
फुसफुसाऊँगा

जटिल वाक्यों में
Posted on 04 Jul, 2011 09:18 AM
जटिल वाक्यों में
पानी का गुन मिलाना चाहता हूँ
जो दौड़ता है प्यास की तरफ
जो रंगो में बोलता है

लहराती झील के लिए
भाषाओं में रखना चाहता हूँ
माननीय जगह
जिससे लिपियों में तरलता हो
सरलता हो संवाद में

झील एक संस्कृति है
जो हर हृदय के पानी में
जिन्दगी के मायने को
मान देती रहती है

मैं चाहता हूँ
उसे भी एक दिन
Posted on 01 Jul, 2011 10:17 AM
देखो न बड़ी झील!
वह अल्हड़ मछली
मेरी ही आँखों के सामने
पी गयी है पूरा एक जल-गीत
और गीत के लय की
मेरे भीतर लहर उठ रही है लगातार

समझाओ न उसे बड़ी झील!
मानुस की भाषा में
न तैरा करे वह इस तरह
नहीं तो भाषा के शिकारी
मार खायेंगे उसे भी एक दिन!

संग-साथ
Posted on 30 Jun, 2011 09:35 AM
बड़ी झील!
तुम्हारे आँगन में
हवा और पानी साथ खेल रहे हैं
हवा के अलंकार से श्रृंगार करतीं लहरें
खुशी से उछल रही हैं

सावन आ गया है
मौसम की मस्ती देखते हुए
हमारे भीतर भी
उमंग की- उल्लास की
हिलोरें उठ रही हैं

झुकी बदलियों के चेहरों पर
खुशी की लहर दौड़ रही है

किनारों पर भीगते
एक-दूसरे से सटे हुए प्रेमी युगल
पानी प्यार है
Posted on 29 Jun, 2011 09:18 AM
पानी प्यार है
पृथ्वी के लिए

झील
प्यार के लिए
खूबसूरत बस्ती है

कश्ती कहाँ है
चलो मझधार में
मीठे गीत गा-गा कर
हम पानी का मन बहलाते हैं

झील एक शब्द
Posted on 29 Jun, 2011 09:10 AM
झील
लहराता हुआ
एक शब्द
कि जिसे देखकर
कविता के मुँह में
पानी आ जाय

लहर ऐसी
कि कविता में
कहानी आ जाय
और कहानी में
कविता छा जाय

झील लहराता हुआ
एक शब्द
सहेजे हुए

कविता में पानी
और पंक्तियों के बीच
सँवारे हुए प्यास
पानी की

कवित्व जगमगाता है!
Posted on 28 Jun, 2011 10:05 AM
मैं निषेध हूँ
एक शिला का
(दरअसल जो कि समय है!)

जितना बह जाता हूँ
उतना रह जाता हूँ
पत्थर होने से

अवाक प्रार्थना में
मेरा भी मौन है

बड़ी झील! तुम्हारी पानी-धुली
आवाज़ में
मेरी भी जुबान का
अँजोर है
(मद्धम ही सही)

मेरे ख़याल में
पानी का
कवित्व जगमगाता है!

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