मनीष वैद्य
नागधम्मन नदी की आत्मकथा
Posted on 22 Aug, 2015 10:10 AMमैं आज बहुत उदास और दुखी हूँ। कभी अपनी किस्मत को कोसती हूँ तो कभी इस नए जमाने के लोगों को। पर क्या होता है इससे भी। कुछ भी तो नहीं बदलता कभी इससे। सौ साल पहले तक इस इलाके में मेरा बड़ा नाम हुआ करता था। दर्जनों गाँवों के लोग मेरे किनारे पानी पी-पीकर बड़े हुए हैं। हजारों एकड़ जमीन को मैंने सींचा है अपने पानी से। मैं बारिश के पानी को वापस बारिश आने तक पूरे साल सहेजकर अपने आंचल में सहेज रखती ताकि किसी
फ्लोराइड : जागरूकता ही इलाज है
Posted on 21 Aug, 2015 12:19 PMइस बीमारी का भले ही कोई इलाज नहीं हो पर जन जागरूकता बढ़ाकर आम लोगों तक इसकी पूरी जानकारी देकर इ
पानी बचाने के लिए आदिवासी करते हैं पाट की खेती
Posted on 16 Aug, 2015 11:40 AMजिन्हें हम आमतौर पर अशिक्षित और पिछड़ा हुआ समझते हैं, वे कुछ बातों में हमसे भी आगे हैं। एक तरफ हम पढ़े–लिखे समझे जाने वाले समाज के लोग खेतों में सिंचाई के लिए बड़ी तादाद में पानी का अंधाधुंध उपयोग करते हैं। हम करीब 60 फीसदी भू-जल का उपयोग सिंचाई के लिए ही कर रहे है वहीं पौधों तक पानी पहुँचाने के लिए बिजली और डीजल की बड़ी मात्रा में खपत करते हैं लेकिन दूसरी तरफ पीढ़ियों से शिक्षा और विज्ञान से दूर रह
उतावली नदी : 400 सालों से कहानी सुना रहा यह स्मारक
Posted on 13 Aug, 2015 11:02 AMतब से अब तक उतावली नदी में न जाने कितना पानी बह चुका होगा लेकिन इस नदी की तासीर में ऐसा कुछ है कि यह आज भी करीब 400 साल पहले इसके तट पर पनपी एक राजसी प्रेम कहानी को बयान करती रहती है। जी हाँ, सुनने में यह भले ही अजीब लगे पर यह सौ फीसदी सही है। सुनी हुई कहानियाँ लोगों ने भुला दी, कागजों पर लिखी कई प्रेम कहानियाँ समय के साथ भुला दी गई होंगी पर इस कहानी की इबारबंजर पड़ी जमीन में पानी से लौटी समृद्धि
Posted on 02 Aug, 2015 10:30 AMक्या आप यकीन कर सकते हैं कि कुछ आदिवासियों ने पहाड़ी इलाके में बहने वाले नाले को पाइप के जरिये पानी को पहाड़ियों के ऊपर चढ़ाकर अपनी जिन्दगी के मायने ही बदल डाले हैं। हमेशा कर्ज में डूबे और फटेहाल रहने वाले इन किसानों की अब जिन्दगी ही बदल गई है। कभी जिनके पास साइकिल तक नहीं हुआ करती थी, वे अब मोटरसाइकिल पर फर्राटे भरते नजर आते हैं। उनके बच्चे अच्छे स्कूलों मेंबढ़ती आबादी यानी प्रकृति पर खतरे की घंटी
Posted on 11 Jul, 2015 04:00 PMविश्व जनसंख्या दिवस पर विशेष
कागजों पर खोदे मनरेगा के कुएँ
Posted on 03 Jul, 2015 01:13 PMमहात्मा गाँधी के नाम पर ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाली राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। पंचायतों ने पैसा हड़पने के लिए ऐसे–ऐसे तरीके ईजाद किये हैं कि सुनने वाले भी चकित रह जाते हैं। कई पंचायतों में तो सरपंच–सचिव और जनपद के कुछ अफसरों–कर्मचारियों की मिली-भगत से बड़े–बड़े कारनामें हुए हैं। ऐसे ही एक कारनामे का खुलासा सूचना के अधिकारनाम पानीगाँव, पर तरस रहे पानी को
Posted on 02 Jul, 2015 12:20 PMकभी यह गाँव इतना पानीदार था कि बुजुर्गों ने इसका नाम ही पानी-गाँव रख दिया था। हालात इतने बुरे हैं कि बरसात के मौसम में भी यहाँ के लोगों को सुबह से शाम तक यहाँ–वहाँ एक–एक केन पानी के लिए भटकना पड़ रहा है। यहाँ दलित बस्ती की तो और भी बदतर हालत है।
फ्लोराइडमुक्त पानी के हाल बेहाल
Posted on 02 Jul, 2015 12:17 PMपीने के पानी की जाँच में कुछ गाँवों में फ्लोराईडयुक्त पानी मिला था, वहाँ प्रशासन ने साफ़ पानी मुहैया करने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की थी। करोड़ों रूपये खर्च कर योजना कागजों से उतारकर गाँवों में आ भी गई लेकिन जिन गाँवों के आदिवासियों को साफ़ पानी पिलाने के लिए यह योजना शुरू की गई थी, उन्हें आज तक इसका कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है। गाँव के लोग अब भी दूर-दूर से पीने का पानी लाने को मजबूर ह