मीनाक्षी अरोड़ा
खुले में शौच यानी बीमारियों को निमंत्रण
Posted on 29 Dec, 2015 09:35 AM भारत की आधी से अधिक आबादी खुले में शौच जाने को मजबूर है। इसके परिणामस्वरूप अनेक बीमारियां जिनमें उल्टी-दस्त प्रमुख हैं, बड़े पैमाने पर फैलती हैं, जिनकी परिणति कई बार मृत्यु पर ही होती है। सरकारी योजनाओं में शौचालय निर्माण की बात तो जोर-शोर से की जाती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर हमारे सामने रख रही है। दुनिया में सर्वाधिक लोग दूषित जल से होने वाली बीमारियों से पीड़ित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकड़े बताते हैं कि दुनिया में प्रतिवर्ष करीब 6 करोड़ लोग डायरिया से पीड़ित होते हैं, जिनमें से 40 लाख बच्चों की मौत हो जाती है। डायरिया और मौत की वजह प्रदूषित जल और गंदगी ही है। अनुमान है कि विकासशील देशों में होने वाली 80 प्रतिशत बीमारियां और एक तिहाई मौतों के लिए प्रदूषित जल का सेवन ही जिम्मेदार है। प्रत्येक व्यक्ति के रचनात्मक कार्यों में लगने वाले समय का लगभग दसवां हिस्सा जलजनित रोगों की भेंट चढ़ जाता है। यही वजह है कि विकासशील देशों में इन बीमारियों के नियंत्रण और अपनी रचनात्मक शक्ति को बरकरार रखने के लिए साफ-सफाई, स्वास्थ्य और पीने के साफ पानी की आपूर्ति पर ध्यान देना आवश्यक हो गया है। निश्चित तौर पर साफ पानी लोगों के स्वास्थ्य और रचनात्मकता को बढ़ावा देगा। कहा भी गया है कि सुरक्षित पेयजल की सुनिश्चितता जल जनित रोगों के नियंत्रण और रोकथाम की कुंजी है।मछुआरों ने बचाई ‘हडसन’
Posted on 26 Dec, 2015 04:06 PMडच जहाजी ‘डेविड हडसन’ लाल-भारतीयों के देश अमेरिका में जिस नदी के रास्ते घुसे थे, उसी नदी-धारा का नाम ‘हडसन’ है। हडसन नदी भारत की गंगा और नर्मदा जैसी बड़ी नदी नहीं है। इसकी लंबाई सिर्फ 507 किलोमीटर है और यह एडिरौंडेक पर्वत शृंखला से निकलती है और न्यूयार्क सिटी, न्यू जर्सी जैसे कई बड़े शहरों के किनारे होती हुई अटलांटिक सागर में गिरती है। गहराई और प्रवाह इतना कि जहाजें चलती हैं। पानी इतना साफ कि बिना फिल्टर किए सीधे न्यूयार्कवासियों के घरों में सप्लाई होता है। 40 लाख से ज्यादा लोगों के घरों में हडसन का पानी बिना किसी फिल्टर के पहुंचता है, इसे यूं भी कह सकते हैं कि पानी इतना साफ कि उसे फिल्टर करने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
ऐसा नहीं है कि हमेशा से यह नदी शुद्ध रही है। नदी ने काफी बुरे दिन देखे हैं। 1947-77 तक के दौर को नदी के सबसे प्रदूषित कालखण्ड के रूप में याद किया जाता है।
चश्मों और नागों की घाटी (Water Springs of Jammu & Kashmir)
Posted on 22 Dec, 2015 03:14 PM
जिसकी फ़िजा में घुली मुहब्बत और केसर की खुशबू है। जिसके जिस्मों पर बर्फ की चादर लपेटे पहाड़ हैं। जिसकी हसीं वादियों में चश्में, नाग और धाराओँ से कल-कल, छल-छल करता पानी सरगम गाता फिरता है। जहाँ चिनार के विशाल पेड़, घने जंगल जन्नत का मंज़र पेश करते हैं। तभी तो इसे पृथ्वी का स्वर्ग कहते हैं। हम कश्मीर की ही बात कर रहे हैं। जिसके खूबसूरत नजारों को देखते ही अनायास जहाँगीर ने फारसी में कह डाला - ‘गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त’ अर्थात अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं पर है और केवल यहीं पर है और निश्चित रूप से यहाँ पर है ही। भारत का कोहिनूर कश्मीर देखने को किसका मन नहीं ललचाता है।
पिछले दिनों एक कार्यक्रम के बहाने हमें भी इस जीते जागते स्वर्ग को देखने का मौका मिला। मन उत्सुक था कश्मीर के बारे में जानने को। श्रीनगर से सोनमर्ग के रास्ते पर जाते हुए कारचालक हमारे सबसे पहले गुरू बने। श्रीनगर से निकले भी नहीं थे कि उनसे हमारा पहला ही सवाल था ‘क्या आप स्प्रिंग के बारे में बता सकते हैं’? ‘उसे उत्तराखण्ड में धारे, मगरे, पंदेरों के नाम से जाना जाता है’ हमने सवाल को आसान करते हुए कहा।
भूजल में बढ़ता फ्लोराइड : एक परिदृश्य और जल संसाधन प्रबन्धन की भूमिका
Posted on 30 Nov, 2015 01:30 PM
सारांश
जलवायु परिवर्तन से निपटने में पनबिजली एक 'झूठा समाधान'
Posted on 16 Nov, 2015 12:47 PMसन्दर्भ : कोप 21
पनबिजली परियोजनाओं के लिये बनने वाले बड़े बाँधों से निकलने वाली मीथेन समस्या ने पिछले 15 सालों के दौरान अन्तरराष्ट्रीय खबरों में हालांकि थोड़ी-बहुत जगह जरूर बनाई है। पर इसके ठीक उलट ‘कोप’ या अन्य पर्यावरण की नई चर्चाओं में मज़बूती से पनबिजली को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये हल के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे बड़े बाँधों से मीथेन उत्सर्जन और पर्यावरणीय प्रभाव की बहस को बेमानी कर दिया गया है।
इससे अब चिन्ता का मुद्दा यह निकलता है कि पनबिजली जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये वाकई एक हल है या सिर्फ भ्रम? क्या जलवायु परिवर्तन कम करने के लिये पनबिजली परियोजनाओं की तरफ बढ़ना क्या सही है?
अंधेपन का शिकार होते पंजाब के गांव
Posted on 30 Sep, 2015 09:43 AMभारत-पाकिस्तान सीमा से लगे पंजाब के फीरोजपुर जिले के गावों में रहने वाले लोगों के लिये दुनिया अंधेरी होती जा रही है। बच्चे हों या बड़े, उनकी आंखें रोशनी खोती जा रही हैं। कारण कोई नहीं जानता, पर लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। लेकिन यह तो तय है कि यहां के लोगों को जैसा पीला-गंधयुक्त पानी पीने को मिल रहा है, वह कोई गंभीर गुल खिला रहा है। पेयजल के नाम पर लोग जहर पीने को मजबूर हैं। जहरीले रसायनों
उड़ती नदी, बहता बादल
Posted on 05 Jul, 2015 11:36 AMमेघ ही वे कहार हैं, जो नदी-नाले, गाड़-गधेरे और कुआँ-बावड़ी, ताल-तलैया- हर जलस्रोत में पानी भरते हैं। मेघ प्रति वर्ष यह काम सचमुच कश्मीर से कन्याकुमारी तक अथक करते हैं। मेघ बड़े बहादुर कहार हैं। ये खूब भारी डोली यानी सारा तरल वाष्प लेकर हजारों मील दूर से भारत की यात्रा केरल से शुरू करते हैं। हमारे यहाँ मानसून हिन्द महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आता है। कभी-कभी मानसून जम्मू-कश्मीर की सीमाओं को पार कर पाकिस्तान होते हुए ईरान की ओर यात्रा पर चला जाता है, तो कभी पूर्वी सीमा पार कर जापान की ओर।दिल्ली तक आते-आते ये मेघ लगभग पच्चीस सौ से चार हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके होते हैं। बूँद, बारिश, मेघ और मानसून के इस मिले-जुले खेल का रूप है वर्षाऋतु। प्रकृति ने धरती की सतह का दो-तिहाई भाग को समुद्र बनाया है। पानी की कोई कमी नहीं छोड़ी है। सूरज की तपस्या से, सूरज के तपने से समुद्र का पानी भाप बनता है। बूँद-बूँद भाप बनकर ऊपर उठती है और नीचे जो खारा समुद्र है, उसका कुछ अंश उठाकर आकाश में निर्मल जल का एक और सागर तैरा देती है।
आँखों को बेनूर कर रहा पानी
Posted on 03 Dec, 2014 08:40 AMबिहार के भोजपुर जिले के बीहिया से अजय कुमार, शाहपुर के परशुराम, बरहरा के शत्रुघ्न और पीरो के अरुण कुमार ये लोग भले ही अलग-अलग इलाकों के हैं, पर इनमें एक बात कॉमन है, वो है इनके बच्चों की आंखों की रोशनी। इनके साथ ही सोलह और अन्य परिवारों में जन्में नवजात शिशुओं की आँखों में रोशनी नहीं है। इनकी आँखों में रोशनी जन्म से ही नहीं है। बिहार के सबसे ज्यादा आर्सेनिक प्रभावित भोजपुर जिले में पिछले कुछ