क्रांति चतुर्वेदी
जब पृथ्वी बोली, पानी रोको
Posted on 12 Apr, 2015 12:03 PMपृथ्वी दिवस पर विशेष
भारतीय दर्शन में पृथ्वी को माता माना गया है। यह भगवान स्वरूपा ही है। आज भी जन-मानस में पृथ्वी को देवी मानने की आस्था इस तरह प्रबल है कि अनेक महानुभाव प्रात: नींद से जागने के बाद पृथ्वी माता को सर्वप्रथम हाथों से स्पर्श कर प्रणाम करते हैं और उनसे बेहतर जीवनयापन का आशीर्वाद भी माँगते हैं।
पानी यात्रा -1 : इण्डिया के हार्ट की अद्भुत पानी परम्पराएँ
Posted on 26 Mar, 2015 01:46 PMसंस्मरण
विश्व जल दिवस पर विशेष
पानी परंपराओं की अद्भुत मिसाल मध्यप्रदेश
Posted on 31 Oct, 2014 04:46 PMमध्य प्रदेश के गांव में पानी और समाज की प्रेम कहानियों के अनेक किस्सुरंगी रूत आई म्हारा देस
Posted on 15 Feb, 2010 12:01 PM
जल की काया
जल की माया
जल का सकल पसारा
कहत कबीर सुनों भई साधो
जल से कौन नियारा?
यह जल का समष्टि स्वरूप है। कबीलों से लेकर कबीर तक और कबीर से लेकर कांक्रीट तक हर वक्त और हर शख्स के लिए जल के इस स्वरूप को स्वीकारना एकमात्र विकल्प रहा होगा। जल का विकल्प जल ही है, और कुछ भी नहीं।
लिफ्ट से पहले
Posted on 15 Feb, 2010 08:46 AM
25 सितम्बर 1988।
ग्राम छकतला।
विकासखंड सोण्डवा।
एक प्रशासनीक शिविर में झाबुआ जिले के सोण्डवा के जनपद अध्यक्ष श्री डेढू भाई ने एक प्रस्ताव रखाः ‘पास ही के गांव गेदा में स्टापडेम पर गुजरात राज्य की तरह यहां भी उद्वहन सिंचाई योजना शुरू की जाए।’
बूंदें, नर्मदा घाटी और विस्थापन
Posted on 14 Feb, 2010 03:00 PM
नर्मदे हर......!
मध्यप्रदेश की जीवनरेखा है नर्मदा। इसका प्रवाह यानी जीवन का प्रवाह। इसके मिजाज का बिगड़ना यानी जीवन से चैन का बिछुड़ना। नदी से समाज के सम्बन्ध केवल नहाने, सिंचाई, पानी की भरी गागर घर के चौके-चूल्हे तक लाने में ही सिमट नहीं जाते हैं। नदियों की धड़कन के साथ-साथ धड़कती है उसके आंचल में रहने वाले समाज की धड़कन। पीढ़ियां नदी के प्रवाह की साक्षी रहती हैं। और नदी भी तो बहते-बहते देखती है-........
पुनोबा, एक विश्वविद्यालय
Posted on 11 Feb, 2010 03:52 PM
माही नदी के किनारे बसा है गांव नरसिंहपुरा। 75 झोपड़ों की इस बस्ती में अलग फूल की एक छोटी –सी झोपड़ी है, जिसमें 60 वर्षीय आदिवासी बुजुर्ग पुना-खीमा डामर रहते हैं। पुनोबा की दिनचर्या का 80 प्रतिशत समय इलाके में प्राकृतिक रूप से पनपे जामुन, सालर, कड़वा, मोजाल, हील, कड़ेन्गी, मुणी, तमच आदि किस्म के हजारों पेड़ों की सुरक्षा में बीतता है।