डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित

डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित
वराहमिहिर का उदकार्गल
Posted on 23 Feb, 2010 04:58 PM
सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद वराहमिहिर की बृहत्संहिता में एक उदकार्गल (जल की रुकावट) नामक अध्याय है। 125 श्लोकों के इस अध्याय में भूगर्भस्थ जल की विभिन्न स्थितियाँ और उनके ज्ञान संबंधी संक्षेप में विवरण प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न वृक्षों-वनस्पतियों, मिट्टी के रंग, पत्थर, क्षेत्र, देश आदि के अनुसार भूगर्भस्थ जल की उपलब्धि का इसमें अंदाज दिया गया है। यह भी बताया गया कि किस स्थिति में कितनी गहराई पर जल
वराहमिहिर का उदकार्गल (भाग 3)
Posted on 23 Feb, 2010 05:50 PM
स्निग्धा यतः पादपगुल्मवल्लयो निश्छिद्रपत्राश्च ततः शिरास्ति।
पद्मेक्षुरोशीरकुलाः संगुड्राः काशाः कुशा वा नलिका नलो वा।।।100।।

खर्जूरजम्ब्वर्जुनवेतसाः स्युः क्षीरान्विता का द्रुमगुल्मवल्ल्यः।
छत्रेभनागाः शतपत्रनीपाःस्युर्नक्तमालाश्च ससिन्दुवाराः।।101।।

विभीतको वा मदयन्तिका वा यत्राSस्ति तस्मिन् पुरुषत्रयेSम्भः।
वराहमिहिर का उदकार्गल (भाग 2)
Posted on 23 Feb, 2010 05:31 PM
अतृणे सतृणा यस्मिन् सतृणे तृणवर्जिता मही यत्र।
तस्मिन शिरा प्रदष्ठि वक्तव्यं वा धनं तस्मिन्।।52।।

तृणहीन स्थान पर कोई तृणयुक्त स्थान हो या वहाँ सब दूर घास हो पर एक स्थान पर हरी घास न हो तो वहाँ साढ़े चार पुरुष नीचे शिरा होती है। या गड़ा धन होता है।(52)

कण्टक्यकण्टकानां व्यत्यासेSम्भस्त्रिभिः करैः पश्चात्।
बाहुदा के पानी का गुण
Posted on 09 Jan, 2010 03:16 PM

बाहुदा जीवनं पथ्यं शीतज्वरविनाशनम्।सुस्वादु पाकं हृद्यं च वातपित्त निबर्हणम्।।
बाहुदा (नदी) का पानी स्वास्थ्यवर्धक, मलेरिया नष्ट करने वाला, स्वादिष्ट, पकाने योग्य, मनोरम औऱ वात-पित्त का विनाशक होता है।

यमुना नदी के जल का गुण
Posted on 09 Jan, 2010 02:19 PM

कालिन्दीतोयमच्छं सकलविषहरं दीपनं पापहारिस्वर्ग्यं वर्ण्यं च हृद्यं वितरति सुतरामात्मचित्तप्रसादम्।मेधाबुद्धिप्रदं च तमहरमनिशं रोचनं दोषहारिस्वादुर्नेत्रेन्द्र नीलद्युति जलदनिभं पेयमेतन्निदाद्ये।।

निन्द्य पानी का गुण
Posted on 09 Jan, 2010 12:13 PM

विण्मूत्रं विषपर्णनीकलविषं तप्तं घनं फेनिलं दन्तग्राह्यमनार्तवं सलवणं शैवालकैस्संभृतम्।लूतातन्तुविमिश्रितं गुरुतरं पर्णोध क्वाथान्वितंचन्द्रार्कांशुवगोपितं न च पिबेन्नीरं सदा दोषदम्।।

भोजन के समय पानी पीने के गुण
Posted on 09 Jan, 2010 10:38 AM

भुक्तस्यादौ जलं पीतमग्नि (ति?) सारं कृशाङ्गताम्।अन्त्ये करोति स्थूलत्वं ऊर्ध्वममाशात्कफम्।।मध्ये मध्यगतं सात्म्याद्धातूनां जनकं सुखम्।।अत्यम्बुपादनापिच्यतेSन्नं अनम्बुपानाच्च स एव दोषः।तस्मान्नरो वह्निविवर्धनाय मुहुर्मुहुवीरि पिबेदभूरि।।तृष्णातो न तु भुञ्जीत क्षुधार्तो न पिबेज्जलम्।तृष्णार्तो जायते गुल्मी क्षुधार्तश्च भगन्धरी।।

गरम पानी के गुण
Posted on 08 Jan, 2010 06:08 PM

शस्तं शुद्धनवज्वरेषु विहितं वारि स्वरुग्वाहनं

हिक्काश्वाससमीरणप्रशमनं कामग्निसंदीपनम्।आमं चोदरपीनसेषु शमनं स्वच्छां परं पाचनं।कण्ठ्यं वक्त्रविशोधनं लघु जयेद्धर्माणमुष्णोदकम्।।
बाहटे-
दीपनं पाचनं कण्ठ्यं लघूष्णं वस्तिशोधनम्।हिड्माड्माद्यनिलश्लेष्म सद्यश्शुद्धि नवज्वरे।।
मतान्तरे-
काले केले के जल का गुण
Posted on 08 Jan, 2010 05:07 PM

कृष्णरम्भाजलं हृद्यं त्रिदोषघ्नं तृषापहम्।मूत्रकृच्छहरं स्वादु वृष्यं प्रदरनाशनम्।।
काले केले (के पौधे) का जल मनोरम, त्रिदोषनाशक, प्यास दूर कर तृप्ति देने वाला, मूत्र की कमी या रोक हटाने वाला, स्वादिष्ट, शक्तिवर्धक या पोषक एवं प्रदर रोग नष्ट करने वाला होता है।

चन्द्रकान्त-जल के गुण
Posted on 08 Jan, 2010 04:01 PM

रक्षो (जो) घ्नं दीपनं हृद्यं मदतापविषापहम्।चन्द्रकान्तोद्भवं वारि पित्तघ्नं विमलं स्मृतम्।।

मतान्तरे-

चन्द्रकान्तमणिस्पृष्टशुभैश्चन्द्रांशुभिर्निशि।यन्मूर्न्धा निर्मितं वारि पानादिष्वमृतोपमम्।।

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