चिन्मय मिश्र

चिन्मय मिश्र
हमने पानी में आग लगा ही दी
Posted on 02 Oct, 2015 11:32 AM

स्वच्छता दिवस, 02 अक्टूबर 2015 पर विशेष


ओ नई आई बादरी, बरसन लगा संसार, उठिठ् कबीर धाह दे, दाझत है संसार। कबीर

.‘‘बादल घिर आये तो लोगों ने सोचा पानी बरसेगा। इससे तपन मिटेगी, प्यास बुझेगी, पृथ्वी सजल होगी, जीवन का दाह मिट जाएगा, किन्तु हुआ ठीक उलटा। यह दूसरे तरह के बादल हैं, इनसे पानी की बूँदे नहीं, अंगारे बरस रहे हैं। संसार जल रहा है। कबीर ऐसे छल-बादल से संसार को बचाने के लिये बेचैन हो उठते हैं।” पानी में आग लगाना एक मुहावरा है और इसे एक अतिशयोक्ति की तरह अंगीकृत भी कर लिया गया। लेकिन विकास की हमारी आधुनिक अवधारणा और उसके क्रियान्वयन ने इस मुहावरे को अब चरितार्थ भी कर दिया है।

पता चला है कि पिछले दिनों कर्नाटक की राजधानी और भारत की कथित सिलिकान वेली, बैंगलुरु (बैंगलोर) की सबसे बड़ी झील, बेल्लांडुर झील में आग लग गई। इस आग की वजह उस झील में फैला असाधारण प्रदूषण था। इतना ही नहीं इस प्रदूषण की वजह से इस झील में जहरीला झाग (फेन) भी निर्मित हो जाता है, जो इसके आस-पास चलने वाले राहगीरों और वाहनों तक को अपनी चपेट में ले लेता है।
नर्मदाघाटी में जीवन का उद्भव
Posted on 19 Sep, 2015 04:23 PM

आदिवासियों की अपनी जीवनशैली के अनुरूप सांस्कृतिक परम्पराएँ रही हैं। कहा जाता है कि आदिवासी केवल

संस्कृति के बंधन, गठबंधन और बाँध
Posted on 19 Sep, 2015 09:02 AM

हम एक ऐसे समाज को विस्थापित कर रहे हैं जिसमें स्वयं के देवता को रचने की क्षमता है। हमने तो उन्ह

पर्यावरण: चहुँ ओर फैला अन्धकार
Posted on 30 May, 2015 12:14 PM
हम उड़तें हैं पश्चिम की ओर:
पश्चिम, ठीक वैसा ही है, एक कसाईघर
हम उड़ते हैं पूर्व की ओर
पूर्व है, ठीक वैसी ही, एक कैद,
कुओ मो-जो (चीनी कवि)

भोपाल गैस त्रासदी : और हम देखते रहे
Posted on 29 Nov, 2014 09:58 AM

जब अहल-ए-सफा-मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाये जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे
हम देखेंगे

फैज

. भोपाल गैस त्रासदी को इस 3 दिसंबर को 30 बरस हो जाएंगे। त्रासदी में अनुमानतः 15 हजार से 22 हजार लोग मारे गए थे और 5,70,000 भोपाल निवासी या तो घायल हुए या बीमार और अब तक घिसट-घिसटकर अपना जीवन जी रहे हैं। इन तीस वर्षों में कांग्रेस, भाजपा, कम्युनिस्ट, समाजवादी, तृणमूल से लेकर अन्नाद्रमुक व द्रमुक जैसे क्षेत्रीय दल केंद्र सरकार पर काबिज हुए और चले गए। यानि ताज उछाले भी गए और तख्त गिराए भी गए, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। लेकिन हम देखते ही रहे।

bhopaal gais traasadee
सर्वनाश में सर्वसम्मति
Posted on 13 Sep, 2014 01:01 PM
एक दिन होगी प्रलय भी
मत रहेगी झोपड़ी
मिट जाएंगे नीलम-निलय भी
...मौत रानी के यहां उस दिन बड़े दीपक जलेंगे।

भवानीप्रसाद मिश्र
Jammu Kashmir Flood
जी.एम. फसलें: एक कसौटी दो पैमाने
Posted on 04 Aug, 2014 04:28 PM
“भारत सरकार यदि निजी पहल को और अधिक बढ़ावा दे, यदि यह पूंजी प्रवाह हेतु अधिक खुलापन अपनाए, यदि यह अपनी सब्सिडी नियंत्रित करे और शक्तिशाली बौद्धिक संपदा अधिकार उपलब्ध कराए, तो मेरा विश्वास कीजिए और अधिक अमेरिकी कंपनियां भारत में आएंगी”

जान कैरी (अमेरिकी विदेश मंत्री)
असमानता का पैरोकार आम बजट
Posted on 20 Jul, 2014 10:51 AM
“नेहरू के जमाने में जो भी जनसंघर्ष था, वह सामंतवाद के विरुद्ध था। वह पूंजीवाद के विरुद्ध नहीं था, क्योंकि वह तो पूंजीवाद को ही विकसित करने का अदृश्य कौशल था। बस इसमें इतनी सतर्कता चाहिए थी कि विकास आहिस्ते-आहिस्ते हो ताकि पूंजीवाद, सामन्तवाद की सत्ता को अपने हाथ में ले सके और बचे हुए सामंतवादी तत्वों को अपने अंदर अंगीभूत कर सके।”
किशन पटनायक
×