अमर उजाला
हमारे समय के नायक
Posted on 31 Jan, 2009 08:12 AMहजारों वर्ष पहले कभी भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतार लाने का बड़ा काम किया था। वह गंगा तो आज मैली हो ही चुकी है, कभी तीन हिस्से पानी और एक हिस्सा जमीन वाली पृथ्वी आज पानी के ही संकट से जूझ रही है! लेकिन हमारे समय में कई ऐसे भगीरथ हैं, जो नदियों को सदानीरा और खेतों को हरा-भरा रखने के लिए कोई कोशिश नहीं छोड़ते।पर्वतीय विकास का चश्मा बदलिए
Posted on 31 Jan, 2009 07:34 AMभारत डोगरापर्वतीय विकास की विसंगतियों की शुरुआत ही यहां से होती है कि इस अंचल को बाहरी असरदार लोगों ने या तो होटल के रूप में देखा है या संसाधनों के पिटारे के रूप में। अंगरेजों व राजे-रजवाड़ों के दिनों से लेकर आज तक यहां वनों की कटाई और खनिजों का दोहन बदस्तूर चलता रहा है। ऐसे पर्यटन स्थल बनते रहे, जो पहाड़ी लोगों से कटे हुए थे। इन वनों के साथ कितने गांव वासियों का अस्तित्व जुड़ा हुआ है,
ऐसे तो नहीं रुकेगा नदियों का प्रदूषण
Posted on 30 Jan, 2009 06:37 PMभारत डोगरागंगा दशहरा अर्थात गंगा के अवतरण का पर्व। गंगा हमारे देश की जल संपदा की प्रतीक है। गंगा यानी नदी, जो सिर्फ जलराशि नहीं, जीवनदायिनी है। लेकिन आज हम अपनी नदियों के महत्व को भुला बैठे हैं। हम उनका सिर्फ दोहन ही कर रहे हैं। लेकिन हमारे देश में नदियों का प्रदूषण बेहद गंभीर रूप ले चुका है। अनेक नदियों के प्रदूषण को रोकने के प्रयास तो हो ही नहीं रहे हैं, चिंताजनक बात यह है कि गंगा और यमुना
सुरंग में गंगा
Posted on 30 Jan, 2009 08:16 AMइस पावन नदी को मीलों तक सुरंग में डालकर हम उसे नहर में ही तो बदल रहे हैंगंगा से उसकी गति छीन रही हैं परियोजनाएं - राजीव नयन बहुगुणा
कई बार हम दुर्घटना से पहले सबक नहीं ले पाते। उत्तरकाशी में गंगा को सुरंगों में कैद करने के विरुद्ध अनशन पर बैठे प्रोफेसर गुरुदास अग्रवाल का कदम भी ऐसा ही सबक है। जब हम पर्वत, सरिता, सघन वन और समुद्र जैसी अलौकिक प्राकृतिक संपदाओं को भौतिक संपत्ति के रूप में देखना और बरताव करना शुरू कर देते हैं, तो हम उनके स्वाभाविक वरदान से वंचित हो जाते हैं। हमें अपनी सभ्यता को कायम रखने और आगे बढ़ाने के लिए सचमुच विद्युत शक्ति की जरूरत है, लेकिन जिस सभ्यता की बुनियाद संस्कृति के शव पर रखी जाती है, उसका ढहना भी तय है।
लगी आज सावन की . . . . . .
Posted on 23 Jan, 2009 07:12 AMकौंधती बिजली, गरजते बादल और बरसती बूंदें...यही तो पहचान है मानसून की। मानसून की फुहारें जब तन के साथ मन को भिगोती हैं तो भारतीय जनमानस अलमस्त हो उठता है। सावन की इस ऋतु से हिंदी सिनेमा का एक खास और मधुर रिश्ता रहा है। बालीवुड फिल्मकारों का सावन और बरसात के प्रति अनुराग इस बात से ही झलकता है कि इन्हें केंद्र में रखकर कई फिल्मकारों ने सिनेमाई स्क्रीन पर यादगार प्रस्तुतियां की। कहा जाए तो सावन
बारिश की राजधानी चेरापूंजी
Posted on 22 Jan, 2009 07:41 AMचेरापूंजी में होती है सबसे ज्यादा बारिश
बात बारिश की हो और चेरापूंजी का नाम न उठे, हो ही नहीं सकता। भारत का सौभाग्य है कि दुनिया में सर्वाधिक बारिश वाला क्षेत्र चेरापूंजी उसकी धरती पर बसा है। बारिश की राजधानी के रूप में मशहूर चेरापूंजी समुद्र से लगभग 1300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जो मेघालय की राजधानी शिलांग से 60 किलोमीटर की दूरी पर है। चेरापूंजी को सोहरा के नाम से भी जाना जाता है। यहां औसत वर्षा 10,000 मिलीमीटर होती है।