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जल संसाधन परिचय
Posted on 10 Sep, 2008 09:11 PMसामान्य तथ्य: पृथ्वी के लगभग तीन चौथाई हिस्से पर विश्र्व के महासागरों का अधिकार है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा लगミग 1400 मिलियन घन किलोमीटर है जो कि पृथ्वी पर 3000 मीटर गहरी परत बिछा देने के लिए काफी है। तथापि जल की इस विशाल मात्रा में स्वच्छ जल का अनुपात बहुत कम है। पृथ्वी पर उपलब्ध समग्र जल में से लगभग 2.7 प्रतिशत जल स्वच्छ है जिसमें से लगभग 75.2 प
जल निकाय का परिचय
Posted on 10 Sep, 2008 09:01 PMदेश के अन्तर्देशीय जल संसाधन निम्न रूप में वर्गीकृत हैं नदियां और नहरें, जलाशय, कुंड तथा तालाब; बीलें, आक्सबो झीलें, परित्यक्त जल; तथा खारा पानी। नदियों और नहरों से इतर सभीजल निकायों ने लगभग 7 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र घेर रखा है। जहां तक नदियों और नहरों का सवाल है, उत्तर प्रदेश का पहला स्थान है क्योंकि उसकी नदियों और नहरों की कुल लम्बाई 31.2 हजार किलोमीटर है जो कि देश के भीतर नदियों और नहरों की
जल-स्प्रिंग की भण्डारण क्षमता का आंकलन
Posted on 09 Sep, 2008 03:03 PM जल-स्प्रिंग पर जलापूर्ति हेतु कई गॉंव के लोग निर्भर हैं। इसलिए यह आकलन भी आवश्यक है कि किसानों की पेयजल, गृह कार्यो, पशु पेयजल तथा सिंचाई की मॉंग हेतु कितने जल भण्डारण की आवश्यकता होगी। इस दृष्टि से प्रतिमाह जल की मॉंग के अनुरूप कम से कम जल-स्प्रिंग-1 व जल-स्प्रिंग-2 के लिए क्रमशः 694.79 तथा 184.9 घन मी0 क्षमता के टैंक या टैंक-समूहों की आवश्यकता होगी। इसी प्रकार इन जल-स्प्रिंगों के लिए जल की मॉंगप्राकृतिक जल स्रोतों का पुनर्जीवीकरण एवं उपयोग
Posted on 09 Sep, 2008 01:56 PMजल एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है, जिसके बिना जीवन सम्भव नहीं है, तथा जिसकी कमी के कारण जीवन की प्रत्येक कार्य प्रणाली पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त कृषि कार्यो में आरम्भ से अन्त तक जल का विशेष महत्व है, तथा जल की कमी के कारण कृषि उत्पादन में भारी कमी आ जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 90 प्रतिशत् आबादी कृषि पर आधारित है, परन्तु यहॉं लगभग 11 प्रतिशत् पर्वतीय भागों में ही उपलब्ध है, अर
प्राकृतिक जल स्रोत
Posted on 09 Sep, 2008 01:31 PMपर्वतीय क्षेत्रों में भूगर्भ स्थिति के अनुसार, पर्वतों से भू-जल स्रोत बहते हैं। ऐसे स्रोत मौसमी या लगातार बहने वाले होते हैं।
कुछ तथ्य-
पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 60 प्रतिशत् जनसंख्या अपनी प्रतिदिन की जलापूर्ति हेतु जल-स्प्रिंग पर निर्भर है।
गत दो दशकों में पर्यावरण असंतुलन के कारण लगभग आधे जल-स्प्रिंग या तो सूख गये हैं या उनका बहाव बहुत कम हो गया है।
कृषि भूमि पर जल संरक्षण
Posted on 09 Sep, 2008 12:12 PM
'भूमि' एवं 'जल' प्रकृति द्वारा मनुष्य को दी गई दो अनमोल सम्पदायें है जिनका कृषि हेतु उपयोग मनुष्य प्राचीनकाल से करता आया है। परन्तु वर्तमान में इनका उपयोग इतनी लापरवाही से हो रहा है कि इनका संतुलन ही बिगड़ गया है तथा भविष्य में इनके संरक्षण के बिना मनुष्य का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा।
सामुदायिक जलाशयों का विकास
Posted on 09 Sep, 2008 10:49 AMग्रामीण स्तर पर वर्षा के दिनों में सतही-अपवाह को जलाशयों में एकत्र करके सिंचाई, जलापूर्ति, मत्स्य पालन आदि कार्यो में प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे जलाशयों का उन क्षेत्रों में बड़ा उपयोग है जो वर्षा पर आधारित हैं। जल स्रोतों के प्रकार तथा उपलब्धता के आधार पर जलाशयों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-
मृदा एवं जल संरक्षण विधियां
Posted on 08 Sep, 2008 10:44 PMमृदा एवं जल संरक्षण विधियों द्वारा वर्षा की बूंदों को भूमि की सतह पर रोककर मृदा के विखराव को रोका जा सकता हैं। इसमें सतही अपवाह को रोककर भूमि में निस्तारण भी शामिल है। मृदा संरक्षण की व्यवहारिक विधियों को कृष्य एवं अकृष्य दोनों प्रकार की भूमि पर अपनाना चाहिए। इन विधियों द्वारा उपजाऊ ऊपरी मृदा परत के संरक्षण के साथ-साथ भूमि में जल का संरक्षण भी हो जाता है।
जल द्वारा भूक्षरण के चरण
Posted on 08 Sep, 2008 07:12 PMभूक्षरण की प्रक्रिया वर्षा जल के भूमि की सतह पर गिरते ही आरम्भ हो जाती है, जिसके विभिन्न चरण हैं जैसे -
वर्षा-बून्द या आस्फालन क्षरण-
भूक्षरण या मृदा-अपरदन ( Erosion or Soil-erosion in Hindi)
Posted on 08 Sep, 2008 06:51 PMभूक्षरण या मृदा-अपरदन का अर्थ है मृदा कणों का बाह्य कारकों जैसे वायु, जल या गुरूत्वीय-खिंचाव द्वारा पृथक होकर बह जाना। वायु द्वारा भूक्षरण मुख्यतः रेगिस्तानी क्षेत्रों में होता है, जहाँ वर्षा की कमी तथा हवा की गति अधिक होती है, परन्तु जल तथा गुरूत्वीय बल द्वारा भूक्षरण पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक होता है। जल द्वारा भूक्षरण के दो मुख्य चरण होते हैं- पहले सतही भूमि से मृदा कणों का पृथक