रामेश्वर मिश्र 'पंकज'

रामेश्वर मिश्र 'पंकज'
नदियां और हम (भाग-2)
पवित्रता की कोई ऐसी व्याख्या किसी भी हिन्दू के मन में संभव ही नहीं, जिसमें जीवन के शेष कर्म पवित्रता अपवित्रता से निरपेक्ष यानी 'सेकुलर' हों और कोई एक या कुछेक कर्म ही पवित्र हों। इसी प्रकार गंगा-गोदावरी की चाहे जितनी महिमा गाई जाए, वह महिमा उस विश्व- दृष्टि का ही सहज अंग है, जिसके अनुसार ईश्वर या परम सत्ता कण-कण में सर्वत्र व्याप्त है
Posted on 21 Jul, 2023 05:40 PM

पवित्रता: एक सामाजिक आदर्श

अतः जो लोग इस भ्रम में पड़कर दुःखी रहते हैं कि किसी पुण्य पर्व में पवित्र स्नान मात्र को कोई परम्परानिष्ठ हिन्दू सचमुच मुक्ति का अंतिम आश्वासन मानता है, वे भारतीयता से अपरिचित ऐसे लोग हैं, जिन्हें या तो अज्ञानी कहा  जा सकता है या फिर फासिस्ट, क्योंकि वे जानबूझकर दूसरों के मत का अर्थक्षय करते हुए उन्हें इसी आड़ में दबाना- अनुशासित करना

नदियां और हम,फोटो क्रेडिट ; विकिपीडिया    
नदियां और हम (भाग-1)
प्राचीन काल में भारतीयों की मान्यता यह थी कि संपूर्ण सृष्टि में एक ही अखंड सत्ता सर्वत्र है। किंतु प्रत्येक प्राणी को इस अखंड बोध का अस्फुट आभास मात्र रहता है क्योंकि सामान्यतः प्राणी अपनी ही लालसाओं- 'योजनाओं की तात्कालिक पूर्ति में व्यस्त रहते हैं।
Posted on 21 Jul, 2023 05:24 PM

नदियां और हम 

किसी समाज की विश्व-दृष्टि का एक लक्षण यह है कि वह अपने प्राकृतिक परिवेश को, उसके विभिन्न अवयवों को किस रूप में देखता-समझता है । यदि समाज और संस्कृति का अर्थ बोध और जीवन-व्यवहार है, तो मानना होगा कि विश्व दृष्टि के मूलतः बदल जाने का अर्थ है राष्ट्रीय संस्कृति का बदल जाना, उसका रूपांतरण ।

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