स्कैवेंजरों को मुख्य सामाजिक धारा में मिलाना

डॉ. सुमन चाहर

 

नई दिल्ली में 21 दिसम्बर 2012 को संयुक्त राष्ट्र के सभागार में यू.एन.डी.पी. इण्डिया द्वारा जेंडर कम्यूनिटी एंड द वॉटर कम्यूनिटी ऑफ सॉल्यूशन एक्सचेंज की सहभागिता से जोकि भारत में संयुक्त राष्ट्र के ज्ञान प्रबन्धन के महत्त्वपूर्ण कार्य को अन्जाम दे रही है एक राष्ट्रीय विचार-गोष्ठी का आयोजन किया जिसका विषय था ‘स्कैवेंजरों का सामाजिक समावेशनः वैकल्पिक रोजगार के स्रोत तथा उचित व्यवस्था।’ जेंडर कम्यूनिटी सोल्यूशन एक्सचेंज की रिसोर्स पर्सन तथा को-ऑरडिनेटर सुश्री मलिका बसु द्वारा जोकि कार्यक्रम की संचालिका के रूप में वहाँ उपस्थित थीं विषय का परिचय बताते हुए वहाँ उपस्थित लोगों का स्वागत किया गया।

सुश्री मलिका बसु ने कहा कि इस आयोजन का उद्देश्य उन सार्थक कदमों को सामने लाना है जोकि अभी तक पूरे देश में स्कैवेंजरों की मुक्ति एवं पुनर्वासन के उद्देश्य से उठाए गए हैं जिससे कि भविष्य में योजनाएँ आदि बनाने में उन उपायों से मदद मिल सके।

स्कैवंेजरों की मुक्ति एवं पुनर्वासन बिल 2012 अभी संसदीय (विभागीय) स्टैंडिग कमेटी के पास पुर्नविचार के लिए है। सभा में उपस्थित लोगों को दिखाई गई लघु फिल्म- ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स -द डर्टी पिक्चर’ से कुछ बातों को दोहराते हुए स्कैवेंजरों की दयनीय स्थिति के विषय में बताया गया, फिल्म सभागार में दिखलाई भी गई।

कई राज्यों से आए मुक्त किए गए स्कैवेंजर्स के अलावा सरकार के प्रतिनिधि, सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मन्त्रालय के अन्तर्गत श्री वी.के. परवंदा, जोकि नेशनल सफाई कर्मचारी फाइनेंस डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में उप प्रबन्धक हैं, श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में संयुक्त-सचिव (पी.ऐंड.ए.), सांख्यिकी मंत्रालय से श्री विद्या प्रकाश, ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधि, स्कैवेंजरों के साथ कार्यरत सिविल समाज संगठन, यू.एन.वूमेन, यूनीसेफ अन्तरराष्ट्रीय श्रम संस्थान व यू.एन.डी.पी. के प्रतिनिधियों ने इस आयोजन में भाग लिया।

सफाई कर्मचारी आन्दोलन के राष्ट्रीय समन्वयक श्री विल्सन बेजवाड़ा द्वारा स्कैवेंजरों की व्यथा तथा भारत में उनकी स्थिति के बारे में बताया गया।

आयोजन के दूसरे सत्र ‘स्टोरीज ऑफ चेंज’ (परिवर्तन की कहानियाँ) में सुलभ से आमन्त्रित डॉ. सुमन चाहर (लेखिका) और इंटरनेशनल लेबर स्टैंडर्डस, आइ. एल.ओ डीसेंट वर्क टीम (दक्षिण एशिया) के वरिष्ठ विशेषज्ञ श्री कोयन कोम्पीयर ने सह-अध्यक्षता की।

मध्य प्रदेश की सुश्री किरण फात्रोड ने अपने अनुभवों को बताते हुए उन समस्याओं का जिक्र किया जिनका उन्हें प्रतिदिन सामना करना पड़ता था। इसी प्रकार तस्लीम बी द्वारा भी ऊँची जाति वालों द्वारा किए गए भेद-भाव के विषय में बताया गया, स्कैवेंजरों को विभिन्न प्रकार के अस्पृश्यता और सामाजिक भेदभाव के व्यवहारों का सामना करना पड़ता है। दूसरे, इस वर्ग की आय इतनी कम होती है कि वे ठीक से अपने परिवार का भरण-पोषण भी नहीं कर पाते। सुश्री तस्लीम बी का कहना था, ‘एक साधारण स्कैवेंजर की आय प्रति घर से प्रतिमाह 5 से 15 रुपए होती है। इन स्कैवेंजरों का स्वास्थ्य भी चिन्ता का विषय है। मानव-मल को हाथ से छूने से स्कैवेंजर विभिन्न रोगाणुओं के सम्पर्क में आ जाते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी इस वर्ग के बच्चों के साथ भेद-भाव किया जाता है। शिक्षकों व सहछात्रों द्वारा इनसे बुरा बर्ताव किया जाता है। इस व्यवस्था के चलते दूरियाँ बढ़ती हैं और आत्मसम्मान की कमी होती है। इस वर्ग के छात्रों द्वारा जब इसका विरोध किया जाता है तो परिणाम स्वरूप इन बच्चों को स्कूल से निकाला जाता है।

कर्नाटक से आए श्री मुथयालप्पा द्वारा अपने कटु अनुभव व स्वयं की कामयाबी की कहानी भी सुनाई गई।

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन के वरिष्ठ विशेषज्ञ द्वारा लेखिका (श्रीमती सुमन चाहर) को आमन्त्रित किया गया कि वे सभा को स्कैवेंजिंग प्रथा को समाप्त करने के लिए व स्कैवेंजरों के पुनर्वासन के लिए सुलभ द्वार उठाए गए स्वीकारात्मक कदमों की व्याख्या करें।

स्कैवेंजरों को विभिन्न प्रकार के अस्पृश्यता और सामाजिक भेदभाव के व्यवहारों का सामना करना पड़ता है।

लेखिका द्वारा स्कैवेंजिंग की वर्तमान स्थिति के बारे में सभी को स्पष्टता से बताया गया, साथ ही मानवधिकारों की रक्षा के लिए सुलभ द्वारा किए गए प्रयासों के विषय में भी बताया गया, ‘सुलभ संस्थान के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक, स्वच्छता के क्षेत्र में पिछले 40 वर्षों से अधिक समय से कार्यरत हैं। उन्होंने सुलभ की स्थापना ही इसलिए की जिससे कि स्कैवेंजर वर्ग के मानवाधिकारोें व आत्मसम्मान की रक्षा की जा सके तथा सभी को स्वच्छ शौचालय उपलब्ध करवाकर खुले में शौच की प्रथा रोकी जा सके। भारत की स्वतन्त्रता से अर्थात सन 1947 से पूर्व इस देश में अस्पृश्य के रूप में जन्म लेने वाला व्यक्ति मरते दम तक अस्पृश्य ही रहता था। जाति प्रथा की बेडि़याँ इतनी मजबूत थीं कि उनसे बच निकलना सम्भव ही नहीं था। पौराणिक काल से यानी कि आज से 5000 वर्ष पूर्व मानव मल को साफ करने का कार्य स्कैवेंजर ही किया करते थे। दुःख की बात है कि यह प्रथा आज भी प्रचलन में है। यह मानव-सभ्यता पर एक कलंक है। स्कैवेंजरों को प्रताडि़त किया जाता था, उनकी बेइज्जती की जाती थी, यहाँ तक कि उन लोगों के द्वारा भी जिनके घरों के शौचालय ये लोग साफ किया करते थे।’ इस सभा में पूर्व स्कैवेंजर श्रीमती ऊषा चौमड़ व डॉली परवाना भी उपस्थित थीं।

लेखिका ने सुलभ के विषय में आगे बताया कि सुलभ शौचालय तकनीक विकास, स्कैवेंजर वर्ग के बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा, प्रशिक्षण एवं उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाना ये सभी कार्य सुलभ द्वारा स्कैवेंजरों के उत्थान के लिए किए जा रहे हैं।

सन 1985 में स्कैवेंजरों के पुनर्वासन का कार्य बिहार में आरम्भ किया गया जिसके लिए भारत सरकार के समाज कल्याण मन्त्रालय व बिहार सरकार की मदद ली गई। इसका मुख्य उद्देश्य मानवाधिकारों व आत्मसम्मान की पुनः वापसी थी जिसके 5 मुख्य बिन्दु थे-मुक्ति, पुनर्वासन, व्यावसायिक शिक्षा, अगली पीढ़ी की उचित शिक्षा एवं उनका सामाजिक उत्थान।

श्रीमती ऊषा चौमड़ ने कहा, ‘मैं कभी स्कूल नहीं गई, मैं जब छोटी थी तो मैं अपनी माँ के साथ मानव-मल साफ करने जाया करती थी। मेरी शादी के बाद भी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। मेरी सास ने मुझे वे घर दिखा दिए जिनमें वे स्कैवेंजिंग का कार्य करती थीं। मैंने अस्पृश्यता को महसूस किया है। मुझे किसी बर्तन से सीधे पानी लेने की मनाही थी।’ वह आगे कहती हैं, सन 2002 मंे डॉ. बिन्देश्वर पाठक हमारे इलाके में आए और हमसे मिले। उन्होंने हम से कहा कि हम यह गन्दा कार्य छोड़ दें। उन्होंने हमसे वायदा किया कि वे हमारे लिए एक व्यवसायिक प्रशिक्षण केन्द्र खोलेंगे। उनके वे शब्द हमारे लिए स्वप्न के समान थे, किन्तु सन 2003 में सुलभ ने हमारे लिए एक केन्द्र खोल दिया। मेरा और मेरी बहनों का नामांकन जोकि स्कैवेंजिंग का कार्य करती थीं उस केन्द्र में हुआ जहाँ हमें पढ़ना, लिखना, सिलाई-कढ़ाई, ब्यूटी केयर व हैण्डी क्राफ्ट का कार्य सिखाया गया। अब तक वहाँ से 115 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा चुका है और आज अलवर (राजस्थान) शहर स्कैवेंजिंग मुक्त शहर हो गया है। पहले हम लोगों का मन्दिर आदि में प्रवेश वर्जित था, आज मन्दिर के पंडित ही हमें अपने पुत्र व पुत्री के विवाह में आमन्त्रित करते हैं। हमारे संस्थापक सर, डॉक्टर पाठक ने ऊँची जाति वालों के साथ एक सामूहिक भोज का भी आयोजन किया था। यहाँ यह बताना महत्त्वपूर्ण है कि आज अलवर से अस्पृश्यता समाप्त हो चुकी है। हम सभी स्वयं-सेवा समूहों में कार्य कर रही हैं, सुलभ व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र ‘नई दिशा’ से हम सबमें आत्मविश्वास बढ़ा है। अलवर के समान ही एक ऐसा ही सेन्टर टोंक (राजस्थान) में भी सन 2008 से चल रहा है। वहाँ से आई सुश्री डॉली परवाना मेरे साथ हैं। आप लोग पूछ सकते हैं कि किस प्रकार उनके जीवन में परिवर्तन आया है।

श्री कोयन कोम्पियर ने कहा स्वच्छता के क्षेत्र में कार्यरत सुलभ एक अग्रणी संस्था है। शिक्षा, पुनर्वासन का प्रभावकारी क्रियान्वयन तथा उपयुक्त नीति विषयक सुधार के क्षेत्र में सही पहल जरूरी है। आई.एल.ओ. भी स्कैवेंजरों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील है।

भारत सरकार की उच्च स्तरीय कमिटी की सदस्या सुश्री शांता कृष्णन ने भारतीय समाज में महिलाओं के स्थान की बातें करते हुए जातिवाद से सम्बन्धित अपने अनुभव बताए।

भारत सरकार के नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन की सी.ओ.ओ. सुश्री शारदा मुरलीधरन द्वारा ‘अवसरों व विकल्पों की पहचान एवं खोज’ नामक सत्र की अध्यक्षता की गई। इस दौरान उन्होंने नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन की विभिन्न योजनाओं के बारे में सभा को जानकारी दी।

जनसाहस राष्ट्रीय गरिमा अभियान के श्री आसिफ शेख ने स्कैवंेजरांे के पुनर्वासन से सम्बन्धित बिल के मसौदे पर अपनी राय दी।

आयोजन की चर्चा का प्रमुख विषय स्कैवेंजरों की दयनीय दशा ही रहा। उनके पुनर्वासन की चुनौतियांे व कुछ कामयाबी की कहानियों पर सबने अपने विचार रखे। इसके अलावा वर्तमान में स्कैंवेजरों के उत्थान की दिशा में चल रहे विभिन्न कार्यक्रमों की भी जानकारी दी गई।

साभार : सुलभ इण्डिया फरवरी 2013

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