नया इण्डिया डेस्क। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल 2 अक्टूबर गाँधी जयंती को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी और 2 अक्टूबर 2019 तक देश को पूरी तरह स्वच्छ बनाने का लक्ष्य तय किया था। शुक्रवार को इस अभियान का एक साल पूरा हो गया। इसमें क्या प्रगति हुई, इस पर विचार करने की जरुरत है। सालभर में स्वच्छता अभियान के नतीजे देखने से समझ में आता है कि कुछ कारणों से देश में गन्दगी का फैलाव बहुत ज्यादा होता है। अगर इन कारणों को समाप्त किया जाए तो देश की आधी गन्दगी समाप्त हो जाएगी। भारतीय सड़कों पर कचरे का प्रमुख कारण गुटका है। बड़ी संख्या में लोग गुटका खाते हैं और उसके रैपर जहाँ-तहाँ फेंकते हैं। गुटका खाने के बाद थूकने की जरुरत पड़ती है तो कहीं भी गुटका थूक देते हैं। चूना, कत्था, सुपारी, तम्बाकू, हानिकारक रसायन आदि वस्तुओं से बनने वाला गुटका कैंसर का कारण भी बनता है, फिर भी लोग इसकी लत नहीं छोड़ते हैं। यह तम्बाकू का सबसे खतरनाक उपयोग है। राजधानी नई दिल्ली सहित देश के कई शहरों में इस पर रोक लगाई गई है, लेकिन उसका कोई खास असर नहीं है।
गुटके के अलावा कई लोगों को तम्बाकू चबाने की आदत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के ‘ग्लोबल एडल्ट टोबैको’ सर्वे के मुताबिक देश के करीब 26 फीसद लोग तम्बाकू का सेवन करते हैं, जो कि सिगरेट से कम खतरनाक नहीं होती है। उत्तर भारत में आम तौर पर इसे खैनी कहा जाता है। लोग खैनी खाकर चाहे जहाँ थूकते हैं। तमाम शहरों में कई इमारतों की दिवारे खैनी थूकने के कारण खराब दिखती हैं। सरकार स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से तम्बाकू खाने पर रोक लगाने का प्रयास करती है, लेकिन इससे लोगों की खैनी खाकर चाहे जहाँ थूकने की आदत पर लगाम नहीं लगती। गुटका और तम्बाकू के बाद सड़कों-इमारतों और सार्वजनिक स्थलों पर गन्दगी का प्रमुख कारण पान थूकने की आदत है। पान थूकने के कारण दीवारों पर बनी चित्रकारी भारत की प्रमुख विशेषता है। महाराष्ट्र सरकार ने पिछले जून में फैसला किया था कि सार्वजनिक स्थलों और सरकारी जगहों पर थूकने वालों पर सख्ती से पाबन्दी लगाई जाएगी। इससे पहले भी सरकारों ने इस तरह के फैसले किए थे। लेकिन इन फैसलों की परवाह कौन करता है? लोगों के थूकने पर कैसे लगाम लगाई जा सकती है?
गुटका, तम्बाकू, पान के कारण होने वाली गन्दगी लोगों की बुरी आदतों की वजह से होती है। इसके अलावा गन्दगी के प्रमुख कारणों में वह कचरा है, जो निर्माण कार्यों के कारण खुली जगह पर फैलाया जाता है। लोग घर या कार्यालय में निर्माण कार्य करते समय कंक्रीट, ईंट, लकड़ी आदि का उपयोग करते हैं और उनका कचरा बाहर कहीं खुली जगह पर डाल देते हैं। वे यह नहीं समझते कि इससे दूसरों को कितनी तकलीफ होती है। इसके कारण सड़कों की हालत खराब हो जाती है और ट्रैफिक जाम की समस्या पैदा होती है। इस सिलसिले में केन्द्रीय पर्यावरण मन्त्रालय ने कंस्ट्रक्शन एण्ड डिमॉलिशन वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2015 लागू करने का प्रस्ताव तैयार किया है। इससे लोगों की आदत कहाँ तक सुधरेगी, कहा नहीं जा सकता। निर्माण कार्यों के कचरे के अलावा प्लास्टिक की पैकिंग स्वच्छता की सबसे बड़ी दुश्मन है। दुनिया भर के पर्यावरण विशेषज्ञ इस समस्या को लेकर चिन्तित हैं, लेकिन यह समस्या दूर होती नजर नहीं आती। प्लास्टिक के कारण नालियाँ रुक जाती हैं। सड़कों पर घूमने वाले मवेशी प्लास्टिक खा लेते हैं, जिनसे उनको तकलीफ होती है। हालाँकि कई किराना दुकानों ने प्लास्टिक पैकिंग का उपयोग बन्द कर दिया है। कई लोग कपड़े की थैलियों का इस्तेमाल करने लगे हैं। लेकिन प्लास्टिक पर पूरी तरह पाबन्दी लगाना अभी बहुत दूर की बात है।
इस प्रकार देश को स्वच्छ बनाने के लिए इन साधारण कारणों को दूर करने की जरूरत है, जिनकी वजह से देश में हमेशा गन्दगी फैली हुई दिखाई देती है। लोग बीड़ी-सिगरेट पीते हैं और उसे खिड़की से नीचे या सड़क पर फेंक देते हैं। यह परम्परा है। कारों में लोग प्लास्टिक बोलतों से पेय पदार्थ पीते हैं औऱ उसे खिड़की से बाहर फेंक देते हैं। अब तो कागज के कप-प्लेट का भी उपयोग होने लगा है, जो उपयोग के बाद बाहर खुले में ही फेंके जाते हैं। कई लोगों को सार्वजनिक स्थल पर रखे कचरा पात्र (डस्टबिन) में कचरा डालने की आदत नहीं है। वे कचरा पात्र को गन्दा करना नहीं चाहते इसलिए अपने घर का कचरा बाहर सड़क पर फेंकना ही बेहतर समझते हैं। इस तरह देश को स्वच्छ बनाने के लिए लोगों की आदत बदलने की जरूरत है। नागरिकों में यह समझ होनी चाहिए कि वे जो भी थूक रहे हैं या कचरा फेंक रहे हैं, वह कहाँ जाकर गिर रहा है। सिर्फ सरकार स्वच्छता अभियान को शत-प्रतिशत सफल नहीं बना सकती। इसमें नागरिकों का योगदान बहुत जरूरी है। (इण्डियन एक्सप्रेस से संकलित)
साभार : नया इण्डिया 3 अक्टूबर 2015
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