कुन्दन पांडे। बंगलुरू
रासायनिक खादों के दुष्प्रभाव और महंगाई से परेशान लोग स्मृतियों के पुराने पन्ने पलटने लगे हैं। फिर से ! हां जी फिर से, मानव मल का उपयोग बंगलुरू के किसानों ने खाद के रूप में करना शुरू किया है। फैक्ट्री वाली यूरिया को आए तो सौ साल भी नहीं हुआ कि मिट्टी, पानी और फसल तक जहरीली हो गईं। क्या कभी किसी ने सोचा कि आज के पांच सौ साल पहले खेतों की कोख को उपजाऊ बनाने के लिए क्या करते थे। बंगलुरू के किसानों ने पुराने स्मृतियों को ताजा कर आज के हिसाब से बदल लिया है। मानव मल को खाद के रूप में उपयोग के अभ्यास को पुनर्जीवित कर लिया है। इससे लाभ-ही-लाभ है जनाब। पढ़ें, कुन्दन पांडे की ‘मल से मनी’।
"शहर के 5.1 मिलियन लोग सीवेज प्रणाली से जुड़े हुए नहीं है। हनी सकर्स की वजह से अब उन्हें अपने सेप्टिक टैंकों को साफ करवाने के लिए कम रूपए खर्च करने पड़ते है।"
राज अन्ना एक किसान हैं। 42 साल के राज अन्ना बंगलुरू के वीर सागरा में रहते हैं, जो पिछले कुछ सालों से अपने खेतों से खूब मुनाफ़ा कमा रहे हैं। अन्ना अपने खेतों से ही हर साल 15 लाख से भी ज्यादा कमा लेते हैं। मैंने पूछा की खेती से इतनी कमाई कैसे होती है? उनने कहा कि ये सब तो मानव मल का कमाल है। दरअसल अन्ना उन हजारों किसानों में से एक हैं, जो मानव मल को खेती में खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
बात करते-करते अन्ना को अपने पिता की याद आ गई और कहने लगे- “हमारे पूर्वज भी मानव मल को खाद के रूप में खेतों में इस्तेमाल करते थे। जब मैं छोटा था मैने देखा की मेरे पिताजी लैट्रिन का डिजाइन बनाते समय लकड़ियों के जाल का इस्तेमाल करते थे जब गर्मियां आती तो वे इसे भूसे से ढंक देते थे। इस तरह पखाने में ही टट्टी खाद में बदल जाती थी, और बाद में पिताजी उसे खेत में इस्तेमाल कर लेते थे। पहले लोग खेतों में जंगल-पानी जाते थे तो वहां प्राकृतिक रूप से ही खाद बन जाया करती थी। पर अब तो लोग जंगल-पानी जाते ही नहीं। अब सबको मॉडर्न लैट्रिन ही चाहिए”।
वीर सागरा में अन्ना ने ही टट्टी को खाद के रूप में सबसे पहले इस्तेमाल करना शुरू किया था। एक बार उनने हनी सकर्स के ट्रकों को देखा। हनी सकर्स ऐसा नेटवर्क है जिसमें शहर से मल को ट्रक में इकठ्ठा कर लेते हैं और वो फिर किसी खाली बंजर जमीन पर उस मल को डाल देते हैं। बस फिर क्या था अन्ना को तरकीब सूझी और उसने ट्रक वाले से बात की कि वो उस मानव मल को उसके खेतों में डाल दें। बीते दिनों को याद करते हुए उसने बताया कि कैसे वो इन हनी सकर्स ट्रकों का इन्तेजार किया करता था की कोई ट्रक आए और मेरे खेत में उस मल को डाल दें। फिर मैंने अपने खेत में एक बड़ा सा गड्ढा बनाया और ट्रक वाले से कहा कि उस गड्ढे के अन्दर उस मल को डाल दे। ऐसा करने से दोनों की बल्ले-बल्ले हो गई। मुझे मुफ्त में प्राकृतिक खाद मिल गई और ट्रक वाले को खाली जगह। फिर धीरे-धीरे मेरे पास इतनी ज्यादा खाद हो गई की मैं दूसरे किसानों को बेचने लगा। अब तो यह एक अनौपचारिक व्यापार बन गया है जिससे किसानों, हनी सकर्स और ऐसे लोगों को फायदा हो रहा है जिनके शौचालय सीवरेज सिस्टम से जुड़े नहीं हैं। 75 करोड़ रूपए के इस अनौपचारिक व्यापार से 200,000 लोगों को रोजगार मिल रहा है।
फायदा-ही-फायदा
वीर सागरा में अन्ना ने ही टट्टी को खाद के रूप में सबसे पहले इस्तेमाल करना शुरू किया था। एक बार उनने हनी सकर्स के ट्रकों को देखा। हनी सकर्स ऐसा नेटवर्क है जिसमें शहर से मल को ट्रक में इकठ्ठा कर लेते हैं और वो फिर किसी खाली बंजर जमीन पर उस मल को डाल देते हैं। बस फिर क्या था अन्ना को तरकीब सूझी और उसने ट्रक वाले से बात की कि वो उस मानव मल को उसके खेतों में डाल दे।
2011 की जनगणना के अनुसार बंगलुरू की जनसंख्या 8.5 लाख थी। आमतौर पर बेंगलुरु जल आपूर्ति और सीवेज बोर्ड की ही जिम्मेदारी है शहर में सीवेज निस्तारण और ट्रीटमेंट ठीक से हो। लेकिन नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट 2011 बताती है कि शहर के 40 फीसदी हिस्से में ही सीवेज सिस्टम है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर वाटर एंड सेनिटेशन ने हाल ही में 2012 में एक पेपर प्रकाशित किया उसमें भी साफ तौर पर बताया गया कि शहर के 5.1 मिलियन लोग आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। इस पेपर के सह-लेखक और इंजीनियर एस विश्वनाथन कहते हैं ”देश की एक बड़ी आबादी सीवेज सिस्टम से जुड़ी हुई नहीं है। और इसलिए वो लोग मल से निपटने के अपने ही तरीकें खोज रहें हैं। और शायद इसी वजह से शहरों में आज ये नई तरह की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था उभर रही है। जिन इलाकों में सीवरेज कनेक्शन नहीं है लेकिन सेप्टिक टैंक बने हुए हैं वहां इन टैंकों को खाली करवाने के लिए हनी सकर्स जैसे नेटवर्क की मदद लेनी पड़ती है। और फिर ट्रक चालकों को भी तो कोई ऐसी जगह चाहिए जहां वे मल को आसानी से डाल सकें। खेतों में उनको ये खाली जगह आसानी से मिल रही है।
नागेश्वर राव हनी सकर्स के आठ ट्रकों का मालिक है उनने बताया कि जब से किसानों ने अपने खेतों में मानव मल का प्रयोग करना शुरू किया है तबसे बाजार में मुकाबला बढ़ गया है। पहले तो किसान हमारे पास आते थे और अब हम किसानों को मनाने जाते हैं की वे इस मल को अपने खेत में डलवा लें। इतना ही नहीं मुकाबले की वजह से कीमतों में भी अंतर आया है। पहले जिस गड्ढे को साफ़ करने के लिए हम लोग हर घर से 1500 रूपए लेते थे वहीं अब सिर्फ 700 रूपए ही मिलते हैं। एक मोटे तौर पर देखें तो शहर में लगभग 500 ट्रक हनी सकर्स के नाम से काम कर रहें हैं।
डोरेस्वामी जिसके शहर में दो बड़े ऐसे गैरेज हैं जहां हनी सकर्स ट्रक बनाए जाते हैं। वो भी बताते हैं की बाजार में इस उछाल की वजह से हनी सकर्स ट्रक निर्माताओं पर भी असर पड़ा है। बढ़ती हुई मांग को हम लोग पूरा नहीं कर पा रहें है। हमें 4,000 लीटर की क्षमता वाले हनी सकर्स ट्रक को बनाने में 20 दिन लगते हैं। जिसकी कीमत करीब 2.5 लाख रूपए है। लेकिन अब ज्यादातर लोग अपने नियमित टैंकर को ही हनी सकर्स टैंक में बदलवा रहे हैं।
किसान जो अपने खेत में मानव मल का प्रयोग कर रहे हैं बताते हैं कि इससे उन्हें औरों से ज्यादा फायदा हुआ है। इससे उनकी उर्वरकों पर भी निर्भरता कम हुई है और दूसरे उर्वरकों के कु-प्रभावों से भी बच रहे हैं। नतीजतन अन्ना जिनके पास 2.5 हेक्टेयर भूमि है अब अतिरिक्त 2.5 हेक्टेयर भूमि लीज पर लेकर खेती कर रहे हैं। अन्ना ने कहा कि- मैंने हाल ही में 4 लाख का फसल कटर खरीदा है और आगे भी और जमीन लीज पर लेकर खेती करने का सोच रहा हूं।
यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज बंगलुरू में साइल साइंस एंड एग्रीकल्चरल केमिस्ट्री विभाग के प्रधान और प्रोफेसर सी.ए श्रीनिवासमूर्ति ने बताया- “मानव मल में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाशियम जैसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं”।
2012 में नाइजर में हुए एक अध्ययन ने मानव मल की उपयोगिता बताई थी। जिसके अनुसार नाइजर में प्रति परिवार प्रति वर्ष करीब 90 किलो रासायनिक उर्वरक बनते हैं, जो कि छोटे किसान की पहुंच से दूर नहीं है। भारत में भी ये परिस्थिति कुछ अलग नहीं है।
स्वास्थ्य के लिए चिंता
हालांकि एक ओर जहां लोग इस व्यवस्था से खुश हैं तो वहीं दूसरी ओर विशेषज्ञों ने मानव मल से स्वास्थ्य सम्बंधित खतरों के बारे में भी चेताया है। उदाहारण के लिए इससे हैजा, डायरिया और कुछ अन्य बीमारियां हो सकती हैं।
विश्वनाथ ने बताया कि मानव अपशिष्ट का सीधा उपयोग खेतों में करने से भूजल के प्रदूषित होने का भी खतरा रहता है। “और बंगलुरू का जल-स्तर कम होने के कारण उसके प्रदूषित होने का खतरा बढ़ जाता है।” हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि इस अनौपचारिक आर्थिक व्यापार के कारण मानव अपशिष्ट का पुनरुपयोग संभव हो पाया है। इस प्रक्रिया के नियमन के लिए सरकारी हस्तक्षेप की मांग भी की जा रही है।
विश्वनाथ का भी कहना है -“देश अपशिष्ट के निपटान के लिए जहां संघर्ष कर रहा है वहीं इससे उसे एक तरीका मिल गया है। इस मॉडल में सिर्फ एक परेशानी यही है कि ये रेग्युलराइज नहीं है। अगर इसे ठीक तरह से मॉनिटर किया जाए तो ये मानव अपशिष्ट के निस्तारण में अहम भूमिका निभा सकता है”।
सभी का फायदा
1. अन्ना उन हजार किसानों में से एक है जो मानव मल को खेती में खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इससे उन्हें काफी फायदा हुआ है और उर्वरकों पर उनकी निर्भरता कम हुई है।
2. शहर के 5.1 मिलियन लोग सीवेज प्रणाली से जुड़े हुए नहीं है। हनी सकर्स की वजह से अब उन्हें अपने सेप्टिक टैंकों को साफ करवाने के लिए कम रूपए खर्च करने पड़ते है।
3. हनी सकर्स ट्रक चालक- जबसे किसानों ने हनी सकर्स ट्रक चालकों से अपशिष्ट लेना शुरू किया है तबसे बाजार में मुकाबला बढ़ गया है। बहुत से लोग अपने नियमित टैंकों को हनी सकर्स ट्रक में बदलवा रहे हैं।
स्रोत: डाउन टू अर्थ मैगजीन 16-30 नवम्बर
http://www.downtoearth.org.in/content/shit-its-profitable
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