अर्घ्यम एक अनुदान देने वाली संस्था है पिछले एक दशक से जल और स्वच्छता के विषयों पर भारत के विभिन्न राज्यों में कार्यरत है, ने 27 जनवरी 2015 को इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेन्ट्स में एक वर्कशॉप का आयोजन किया। इस आयोजन का मकसद भारत में भू-जल और स्वच्छता में अन्तर्सम्बन्ध को समझाना था। अर्घ्यम ये बात अच्छी तरह से जानता है कि वह अकेले सभी को स्वच्छ और साफ जल उपलब्ध नहीं करा सकता है। इसीलिए वो कई संस्थाओं के साथ मिलकर इस विषय पर लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रहा है।
भारत के ग्रामीण शौचालयों का डिजाइन इस प्रकार का है जिसमें दूषित जल एक गड्ढे में इकठ्ठा होता है। जिस वजह से वो धीरे-धीरे रिसकर भू-जल के साथ मिल जाता है और उसे प्रदूषित करता है। भू-जल का प्रयोग भारत की 85 प्रतिशत जनता करती है, इस वजह से कई बिमारियों का भी जन्म हो सकता है।
भारत सरकार स्वच्छ भारत मिशन के अन्तर्गत अगले 5 सालों में 125 मिलियन शौचालय ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में निर्माण कराने जा रही है। इसलिए शौचालय और भू-जल के सम्बन्ध को समझना बेहद जरूरी हो गया है। भारत विभिन्नताओं वाला देश है इसलिए हर क्षेत्र के पर्यावरण अनुकूल शौचालयों का निर्माण होना चाहिए। यदि भू-जल की अनदेखी करते हुए शौचालयों का निर्माण किया गया तो निश्चित तौर पर इससे भू-जल प्रदूषित होगा। अर्घ्यम की अध्यक्षा श्रीमती रोहिणी निलेकणी ने कहा- ‘हमें भू-जल और शौचालयों के अन्तर्सम्बन्ध को समझना बहुत जरूरी है, खासतौर से तेजी से बढ़ती आबादी के परिप्रेक्ष्य में यह और भी महत्वपूर्ण बन जाता है’।
इस शोध कार्यक्रम का उद्देश्य उक्त विषय से सम्बन्धित सवालों के जवाब हासिल करके उन्हें अमल में लाना तथा नीति निर्धारण में मदद करना है। इस विषय पर काम करने के लिए कई संस्थाओं ने हामी भरी है और वे इसपर पूर्णकालिक और अल्पकालिक शोध करने की योजना भी बना रही हैं।
भू-जल और स्वच्छता के बीच सम्बन्ध को समझने के लिए कृप्या नीचे दिए गए अटैचमेन्ट को डाउनलोड करें
इस विषय से जुड़ी किसी भी प्रकार की अन्य जानकारी प्राप्त करने के लिए कृपया सम्पर्क करे:
नीलिमा थोटा
निदेशक, शहरी कार्यक्रम
अर्घ्यम
ऑफिस नम्बर : 08041698941 एक्सटेंशन 32
ईमेल: neelima@arghyam.org
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