शिरीष खरे
रायपुर। छत्तीसगढ़ के करीब 1700 सरकारी स्कूलों में पीने के पानी का कोई इंतजाम नहीं है। इसलिए पहली से बारहवीं तक पढ़ने वाले सवा लाख बच्चे पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। बच्चियों के स्कूल नहीं जाने के पीछे पेयजल संकट बड़ी वजह है। बावजूद इसके सरकार 56857 लड़कियों के लिए स्कूल में पानी नहीं पहुँचा सकी है। इनके साथ ही 4850 शिक्षक भी पानी को तरस रहे हैं। खास बात है कि आदिवासी अंचलों के स्कूलों की हालत तो खस्ता है ही, लेकिन इस संकट से शहरी इलाकों की पाठशालाएँ भी अछूती नहीं हैं। केन्द्र सरकार के नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशन एंड प्लानिंग, नई दिल्ली की ताजा रिपोर्ट ने प्यास से जूझ रहे छत्तीसगढ़ के स्कूलों का कड़वा सच बयान किया है।
कुओं के भरोसे स्कूल
आदिवासी अंचलों में एक हजार 10 स्कूल कुओं के भरोसे हैं। इसके अलावा, पूरे प्रदेश में 1982 स्कूल पानी के परम्परागत स्रोतों पर निर्भर हैं। कई जगह टंकियाँ भरी जाती हैं। लाखों बच्चों को शुद्ध पेयजल नसीब नहीं होता है। इसके चलते गन्दा पानी पीकर बच्चे गम्भीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। राजधानी रायपुर के 9 स्कूलों में 381 लड़कियों सहित 784 बच्चों के पास पानी नहीं है। प्रदेश के चंद जिलों में ही ज्यादातर स्कूल पेयजल संकट के कारण उभर गए हैं। इनमें जांजगीर चांपा के 2, बालोद के 8, महासमुंद के 10, दुर्ग के 12 और गरियाबंद के 14 स्कूलों में ही पीने का पानी नहीं पहुँचा है। सबसे ज्यादा बीजापुर के 275 और बस्तर के 195 स्कूलों को पानी की दरकार है। वहीं, कोरबा और रायगढ़ जिलों के स्कूलों के आँकड़े रिपोर्ट में दर्ज नहीं हैं। इसलिए ज्यादा मुसीबत है। बातचीत में पेयजल की समस्या से जूझ रहे स्कूलों के कुछ शिक्षकों ने बताया कि दोपहर का भोजन बनाना मुश्किल हो जाता है। पानी नहीं रहने से शौचालय का इस्तेमाल भी नहीं हो पाता है। पानी के अभाव में स्कूलों की साफ-सफाई नहीं होती है।
लड़कियों के स्कूल से दूरी की एक बड़ी वजह पानी और शौचालयों की कमी माना गया है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बावजूद राज्य सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। इसके पहले एनएचएफएस सर्वे में बताया गया है कि ग्रामीण इलाकों के 6-17 साल आयु तक की करीब 40 प्रतिशत लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती हैं। कई जगह छोटे बच्चों को घर से ही पानी ढोना पड़ता है। तेज गर्मी और बारिश के दिनों में बाहर नहीं जाने के चलते कई बार उन्हें प्यासा ही बैठना पड़ता है।
रिपोर्ट दिखाकर प्लान बनाएंगे
स्कूली शिक्षा मन्त्री केदार कश्यप ने कहा कि रिपोर्ट देखकर प्लान बना सकते हैं। ज्यादातर स्कूलों में हैंडपम्प और नलकूप लगाए गए हैं। जिन स्कूलों में पानी नहीं हैं, वहाँ पानी की व्यवस्था करनी है। शिक्षाविद बीकेएस रे ने कहा कि स्कूलों में पानी जैसी मूलभूत सुविधाएँ देने में गम्भीर चूक हो रही है, लेकिन सरकार चूक से सबक लेने को तैयार नहीं है। पानी बिना शौचालय बनना सम्भव नहीं। इससे स्वच्छता मिशन फेल हो जाएगा।
विधानसभा में माना
छत्तीसगढ़ में एक ओर तो छात्रों को लैपटाप बाँटे जा रहे हैं, दूसरी ओर हाई स्कूलों तथा हायर सेकेन्डरी स्कूलों में पीने के पानी का अभाव है, छात्र अन्यत्र जाकर हैंडपम्प का पानी पीते हैं। उसी तरह से इन स्कूलों में शौचालय तक नहीं हैं। दूसरी तरफ केन्द्र सरकार की तरफ से घरों में निर्मल ग्राम योजना के तहत शौचालय बनवाने के लिये मदद दी जा रही है। छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिये पूछे गये एक सवाल के जवाब में जानकारी दी गई है कि खैरागढ़ के 3 हाई स्कूलों में शौचालय नहीं हैं तथा 1 हाई स्कूल में पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। इसी तरह से 8 हायर सेकेंडरी स्कूलों में शौचालय नहीं है और 12 में पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। खैरागढ़ के कुल 11 स्कूलों में शौचालय तथा 13 स्कूलों में पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। इसी तरह से जिन स्कूलों में पीने के स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है, वे हैं खुड़मुड़ी का हाई स्कूल तथा बांगुर, धोधा, रामपुर, कटंगी, मोहगाँव, बकरकट्टा, साल्हेकला, चिचोला, भण्डारपुर, गातापारकला, देवरी और विक्रमपुर के हायर सेकेंडरी स्कूल। इन सभी स्कूल के छात्रों को पानी पीने के लिये माध्यमिक स्कूल के हैंडपम्प का ही सहारा है।
'श' से शौचालय 'विहीन' छत्तीसगढ़ में 10 हजार से अधिक स्कूलों में शौचालय नहीं है। इनमें 8168 स्कूल छात्रों के और 2753 छात्राओं के हैं। केन्द्र सरकार ने देशभर के ऐसे सरकारी स्कूलों की सूची जारी की है, जिनमें टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है और बच्चों को इसके लिए बाहर जाना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल केन्द्र और सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिए थे कि सभी स्कूलों में पीने के पानी और शौचालय की व्यवस्था अनिवार्य रूप से की जाए। मानव संसाधन मन्त्रालय ने अपनी वेबसाइट में जो सूची डाली है उससे पता चलता है कि छत्तीसगढ़ सहित देश के अधिकांश राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को गम्भीरता से नहीं लिया है। केन्द्र सरकार द्वारा जारी सूची के मुताबिक प्रदेश में 47 हजार 526 स्कूल हैं। इनमें 2753 लड़कियों और 8168 लड़कों के स्कूलों में टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है। लड़कियों के 3667 स्कूल ऐसे हैं जहाँ शौचालय बने तो हैं, लेकिन उपयोग नहीं हो रहा है। ऐसे ही 3 हजार 56 स्कूल लड़कों के हैं जहाँ टॉयलेट खराब हो गए हैं।
इसलिए छोड़ रहे स्कूल
पण्डित रविशंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग की ओर से कराए गए सर्वे में यह बात उजागर हो चुकी है कि बच्चों के स्कूल छोड़ने के पीछे की वजह यहाँ शैक्षणिक वातावरण बेहतर नहीं होना है, बच्चों को पीने का पानी, शौचालय और पढ़ाई का माहौल नहीं मिल रहा है इसलिए वे स्कूल में ठहरना नहीं चाहते हैं।
ड्राप आउट की दर
ड्राप आउट की बात है तो हम इसके लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। पिछले सालों में ड्राप आउट की संख्या कम हुई है- सुब्रत साहू, सचिव, स्कूल शिक्षा।
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