ऐसे में राज्य भर में जल चेतना और पेयजल की गुणवत्ता को लेकर काम करने वाले राजस्थान जल एवं स्वछता मिशन और राष्ट्रिय पेयजल गुणवत्ता मिशन , सी सी डी यू जल्द ही इसी कठपुतली को चेतना का आधार बनाने जा रही है। जिले के ग्रामीण इलाको में जहा कठपुतली शो के जरिये आम अवाम में पानी की बचत और पानी के अपव्यय को रोकने के लिए ख़ास सन्देश दिया जायेगा। राजस्थान जल एवं स्वछता मिशन और राष्ट्रिय पेयजल गुणवत्ता मिशन के तहत इस खास आयोजन को धरातल पर उतरा जायेगा।
सीसीडीयू के आई ई सी कंसल्टेंट अशोक सिंह ने बताया कि भारत में पारंपरिक पुतली नाटकों की कथावस्तु में पौराणिक साहित्य, लोककथाएं और किवदंतियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पहले अमर सिंह राठौड़, पृथ्वीराज, हीररांझा, लैलामजनूं और शीरीफरहाद की कथाएं ही कठपुतली खेल में दिखाई जाती थीं, लेकिन अब सामसामयिक विषयों, महिला शिक्षा, प्रौ़ शिक्षा, परिवार नियोजन के साथसाथ हास्यव्यंग्य, ज्ञानवर्ध्दक व अन्य मनोरंजक कार्यक्रम दिखाए जाने लगे हैं।
रीतिरिवाजों पर आधारित कठपुतली के प्रदर्शन में भी काफी बदलाव आ गया है। अब इसी कठपुतली के जरिये आम जनता में पानी बचाने का सन्देश दिया जायेगा। कठपुतली शो के जरिये जल बर्बादी को रोकने की बात बताई जाएगी । अलग अलग कहानियों के जरिये जनता को बतया जायेगा की पानी का दुरुपयोग कभी नहीं करना चाहिए। पानी का मोल पहचानना चाहिए।
शहरों में लोग पानी का मूल्य नहीं समझते हैं शहरवासियों से पानी बचत एवं दुरुपयोग रोकने हेतू प्रयास कर सहयोग करना चाहिए। सिंह ने बताया कि छोटेछोटे लकड़ी के टुकड़ों, रंगबिरंगे कपड़ों पर गोटे और बारीक काम से बनी कठपुतलियां हर किसी को मुग्ध कर लेती है।
कठपुतली के खेल में हर प्रांत के मुताबिक भाषा, पहनावा व क्षेत्र की संपूर्ण लोक संस्कृति को अपने में समेटे रहते हैं। राजारजवाड़ों के संरक्षण में फलीफूली इस लोककला का अंग्रेजी शासनकाल में विकास रुक गया। दूरदर्शन के कई कार्यक्रमों में कठपुतलियों का अहम किरदार रहा है, मगर वक़्त के साथसाथ कठपुतलियों का वजूद ख़त्म होता जा रहा है।
इन विपरीत परिस्थितियों में सकारात्मक बात यह है कि राज्य भर में जल चेतना और पेयजल की गुणवत्ता को लेकर काम करने वाले राजस्थान जल एवं स्वछता मिशन और राष्ट्रिय पेयजल गुणवत्ता मिशन, सी सी डी यू जल्द ही इसी कठपुतली को चेतना का आधार बनाने जा रही है।
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