सफलता की कहानियां और केस स्टडी

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मधेश्वर नेचरपार्क द्वारा ग्राम पंचायत भंडरी का विकास
Posted on 26 Jul, 2018 02:30 PM


मयाली गाँव में मधेश्वर में स्थित वनों का संरक्षण ग्रामीणों द्वारा किया जाता है तथा नए वृक्षों का रोपण वैज्ञानिक पद्धति से किया गया है जिससे वहाँ के वन अब व्यवस्थित नजर आते हैं। सभी ग्रामीण पर्यावरण के महत्त्व को समझते हुए अपने घर में कम-से-कम 5 वृक्ष अवश्य लगाते हैं जिसमें मुनगा, पपीता, नीबू, आँवला तथा आम हैं जिससे भंडरी ग्राम पंचायत में आज चारों ओर हरियाली-ही-हरियाली है।

मधेश्वर नेचरपार्क
मिसाल बेमिसाल
Posted on 25 Jul, 2018 02:44 PM


द्वारका वाटर बॉडीज रिवाइवल कमेटी (Dwarka Water Bodies Revival Committee) का प्रयास आखिरकार रंग लाया। कमेटी के सदस्यों ने बिना सरकारी मदद के इलाके के दो तालाबों को जीवन्त रूप देने में सफलता हासिल की है। लेकिन सफलता की यह लड़ाई काफी लम्बी है जिसमें सरकारी महकमें की उदासीनता और कानूनी दाँव-पेंच से भी कमेटी के सदस्यों को रूबरू होना पड़ा है।

डिस्ट्रिक्ट पार्क तालाब सेक्टर 23 द्वारका दिल्ली
तो बहुरेंगे पांवधोई के दिन
Posted on 10 Jul, 2018 02:49 PM


सहारनपुर शहर के बीच से प्रवाहित नाले के समान दिखने वाली पाँव धोई नदी को पुनर्जीवित करने की पहल ने एक बार फिर तेजी पकड़ ली है। यह प्रयास नदी को नया जीवन देने के लिये जिले के आला सरकारी अफसरों और नागरिक संगठनों से जुड़े प्रबुद्ध लोगों की पहल पर गठित की गई ‘पाँव धोई बचाव समिति’ के माध्यम से किया जा रहा है।

पाँव धोई नदी की सफाई करते लोग
जल संरक्षण से पानीदार हुआ लुठियाग गाँव
Posted on 29 Sep, 2017 03:32 PM

जिस तरह से लुठियाग गाँव के ग्रामीणों ने 40 मीटर लम्बी और 18 मीटर चौड़ी झील का निर्माण किया इसी तरह ही लोग

chal khal
पुनर्जीवित हुए मुडाला-दोगी के जलस्रोत
Posted on 24 Sep, 2017 11:30 AM

मुडाला-दोगी गाँव में 90 परिवारों की 432 की जनसंख्या पहले भी दो प्राकृतिक जलस्रोतों पर निर

water spring
तालाबों का गाँव
Posted on 06 Apr, 2017 11:45 AM

महोना गाँव में अधिक आबादी होने के कारण यहाँ तालाबों की संख्या भी अन्य गाँवों की अपेक्षा सबसे ज्यादा है। कहावत है कि यहाँ हर बिरादरी के नाम से उनके मोहल्ले में एक तालाब है जिसमें लोग अपना पानी छोड़ते हैं। हर घर से एक-न-एक तालाब आपको जरूर दिखेगा। गाँव के लोगों के लिये ये गर्व की बात है कि उनका इकतौला ऐसा गाँव है जहाँ पर इतने तालाब हैं। गाँव का हर शख्स इस बात की कोशिश में लगा रहता है कि वह अपनी इस विरासत को बचाए रखे।

जब शहरों से लेकर गाँवों तक तालाबों पर कब्जे हो रहे हैं। उनको बन्द कर कहीं प्लाटिंग तो कहीं मकान बनाए जा रहे हैं। ऐसे दौर में लखनऊ से चन्द किलोमीटर की दूरी पर बसा गाँव महोना एक अलग ही नजीर पेश कर रहा है। इस गाँव में आज भी दो दर्जन से ज्यादा तालाब हैं। जो न सिर्फ बारहों महीने पानी से लबालब भरे रहते हैं बल्कि ये सूखने न पाएँ इसके लिये बाकायदा जिम्मेदारी तक तय की गई है।

इस गाँव की खासियत यह है कि यहाँ के हर घर से एक-न-एक तालाब दिखता है। जो इटौंजा से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर कुर्सी रोड पर बसा है। तकरीबन चालीस साल पहले इस गाँव को नगर पंचायत का दर्जा मिला था लेकिन सरकारी बदहाली के चलते प्रदेश के इस खूबसूरत तालाबों वाले गाँवों की ओर सरकार की नजरें इनायत नहीं हुई।
अच्छे पर्यावरण के लिये एक गाँव की अनूठी मुहिम
Posted on 04 Jun, 2016 12:59 PM

विश्व पर्यावरण दिवस, 05 जून 2016 पर विशेष


गाँव पहुँचते ही जैसे दिल बाग-बाग हो जाता है। गाँव में जगह-जगह पेड़-पौधे लगे हुए हैं। पूरा गाँव साफ–सुथरा है। यहाँ कचरा ढूँढे नहीं मिलता है। हर गली-चौराहे पर डस्टबीन रखी हुई है। गाँव के हर चौराहों पर शहर की तरह संकेत बोर्ड लगे हैं। चौराहों को बेहतर ढंग से विकसित किया गया है। उन पर प्रतिमाएँ लगाई गई हैं। यहाँ सरकारी खर्च उतना ही हुआ है जितना बाकी गाँवों में लेकिन यहाँ के लोगों की जागरुकता के चलते गाँव ने अपनी पहचान बना ली है।

पर्यावरण के लिहाज से गाँवों का साफ–सुथरा और पर्यावरण हितैषी होना जरूरी है। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि गाँव साफ–सुथरे नहीं होते। गाँव के लोग इन्हें गन्दा रखते हैं लेकिन इस गाँव को देखकर आप अपनी धारणा बदलने पर मजबूर हो जाएँगे।

अब तक गाँवों को आप भले ही साफ–सुथरे न मानते रहे हों पर इस गाँव में एक बार घूम आइए, जनाब ... लौटकर यही कहेंगे कि कहाँ लगते हैं इसके सामने शहर भी। आपने अब तक ऐसा कोई गाँव शायद ही कहीं देखा हो। जहाँ आपको जतन करने पर भी कूड़ा–करकट नजर तक नहीं आएगा कहीं। महज ढाई हजार की आबादी वाले इस गाँव की किस्मत पलटी है खुद यहाँ के ही लोगों ने।
श्रम और सोच ने लिखी नई इबारत, बदले खेतों के हालात
Posted on 26 May, 2016 12:49 PM

खेतों के पास से एक वर्षा से आच्छादित होने वाला नाला निकलता है जिसका बेतरतीब बहने वाला पानी खेतों को नहीं मिल पाता था मैंने उस नाले का पानी का प्रयोग अपने तालाब को भरने में किया और उसका इनलेट इस तरह से बनाया कि जितना हमारा तालाब गहरा है उतना ही पानी उसमें जा सके। यह कमाल सिर्फ इनलेट का है जो नाले का वर्षाजल हमारे खेतों को नुकसान नहीं कर पाता है। जिन किसानों के पास धन की व्यवस्था नहीं है उन किसानों को भी यह जान लेना चाहिए कि पानी वर्षाजल संचयन के लिये तालाब से बेहतर कोई उपाय नहीं है।

पिता से विरासत में मिली जमीन को खुशी-खुशी जब मैं जोतने चला तो खेत की स्थिति देख दंग रह गया। समझ नहीं आया काम कहाँ से शुरू करुँ। अपनी ही जमीन पहाड़ जैसी लगने लगी। लेकिन घर से तो खेत जोतने को चले थे, लौटकर घर में क्या कहता? सो स्टार्ट किया ट्रैक्टर और शुरू किया ढालूदार खेत को समतल करना। समतल करने से निकली कंकड़ वाली मिट्टी से मेड़ बनाना।

बुन्देलखण्ड की वीर भूमि महोबा जिले के ग्राम बरबई के ऊर्जावान किसान बृजपाल सिंह ने अपनी आप बीती सुनाते हुए कहा कि असिंचित एवं ढालूदार जमीन होने के कारण जमीन लगभग ऊसर हो चुकी थी। ट्रैक्टर चलाने के शौक ने खेत पर पहुँचा दिया। ढालूदार जमीन को समतल करने का सबसे पहले मन बनाया सो जोतने वाला औजार निकाल समतल करने वाला सूपा ट्रैक्टर में लगवाया और खेत को समतल करना शुरू किया।
आदिवासियों ने हलमा से बनाया तालाब
Posted on 21 Feb, 2016 11:03 AM

बात होते–होते किसी ने कहा कि छायन के पास पहाड़ियों से हर साल बड़ी तादाद में पानी नाले से बह

अन्न से जन पानी से धन
Posted on 16 Feb, 2016 12:59 PM

सिमोन के गाँव समेत आस-पास के कई गाँवों के एक हजार एकड़ जमीनों पर जहाँ पानी के अभाव में साल में धान की एक खेती भी ठीक से नहीं हो पाती। अब धान के अलावा गेहूँ, सब्जियाँ, सरसों, मक्का इत्यादि की कई-कई फसलें होने लगी थीं। कुछ ही सालों में न केवल देसावाली, गायघाट, अम्बा झरिया नाम से तीन बाँध बनाए गए, बल्कि कई छोटे तालाब और दर्जनों कुएँ खोद डाले गए। सब-के-सब गाँव वालों के ही जमीन और पैसों से। बाद में रस्म अदायगी के तौर पर कुछ सरकारी मदद भी मिली। सिमोन उरांव का सपना साकार होने में उनके दृढ़ निश्चय और कठोर लगन के साथ-साथ गाँव-समाज के लोगों की सपरिवार पूरी भागीदारी रही।

अन्न है तो जन है, पानी है तो धन है’। ये किसी सरकारी प्रचार का नारा या किसी नेता का जुमला नहीं है। बल्कि 83 साल के उस आदिवासी किसान सिमोन उरांव की जिन्दगी का सच है। जिसे उन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी लगाकर हासिल किया है। आज भी वे चुस्त-दुरुस्त और जिन्दादिल अन्दाज में कभी ग्रामीणों का जड़ी-बुटियों से इलाज करते हुए तो कभी खेतों में काम करते हुए या गाँव-समाज की बैठकों में लोगों की समस्याओं का निराकरण करते हुए देखे जा सकते हैं।

उन्होंने अपने मजबूत इरादों और अकल्पनीय परिश्रम पराक्रम के बूते पहाड़ पर पानी पहुँचाकर सैकड़ों एकड़ बंजर भूमि को सचमुच में फसलों की हरियाली से भर दिया है। हर साल बरसात में पहाड़ से गिरकर व्यर्थ बह जाने वाले पानी को न सिर्फ बड़े जलाशयों में इकट्ठा किया, बल्कि अपने दिमागी कौशल से छोटी-छोटी नहरें बनाकर सैकड़ों फीट ऊपर पानी पहुँचाकर दर्जनों गाँव के किसानों को सालों खेती-किसानी का साधन उपलब्ध कराया।
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