Posted on 27 Sep, 2017 04:16 PM प्रकृति ने अपनी उदारता से मनुष्य को विविध आवश्यकताएँ पूरी करने के लिये विभिन्न साधनों का नि:शुल्क उपहार दिया है। प्राकृतिक परिवेश से मनुष्य को विभिन्न उपयोगों के लिये प्राप्त इन प्राकृतिक नि:शुल्क उपहारों को प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है। इन प्राकृतिक संसाधनों को जितनी कुशलता से प्रयोग योग्य वस्तुओं एवं सेवाओं में परिवर्तित कर लिया जाये, उतने ही श्रेयष्कर रूप में व्यक्ति की भोजन, आवास, वस्त्र
Posted on 25 Sep, 2017 04:15 PM देश का कुल क्षेत्रफल उस सीमा को निर्धारित करता है जहाँ तक विकास प्रक्रिया के दौरान उत्पत्ति के साधन के रूप में भूमि का समतल विस्तार संभव होता है। जैसे-जैसे विकास प्रक्रिया आगे बढ़ती है और नये मोड़ लेती है, समतल भूमि की माँग बढ़ती है, नये कार्यों और उद्योगों के लिये भूमि की आवश्यकता होती है व परम्परागत उपयोगों में अधिक मात्रा में भूमि की माँग की जाती है। सामान्यतया इन नये उपयोगों अथवा परम्परागत
Posted on 21 Sep, 2017 03:28 PM आर्थिक विकास का ऐतिहासिक अनुभव और आर्थिक विकास की सैद्धांतिक व्याख्या यह स्पष्ट करते हैं कि आर्थिक विकास की प्रारंभिक अवस्था में प्रत्येक अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं के विकास अनुभव की पुष्टि करते हैं। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के राष्ट्रीय उत्पाद, रोजगार और निर्यात की संरचना में कृषि क्षेत्र का योगदान उद्योग और सेवा क्षेत्र की तुलना
Posted on 16 Sep, 2017 10:12 AM जल संसाधन का उपयोग कृषि में सिंचाई के अलावा मनुष्यों, पशुओं और अन्य जीवों के पीने के लिये, शक्ति के उत्पादन गंदे पानी को बहाने, सफाई, घोंघा, मछलीपालन, मनोरंजन, औद्योगिक कार्य एवं सौर परिवहन आदि हेतु किया जाता है। ऊपरी महानदी बेसिन में वर्तमान में जल का उपयोग घरेलू, औद्योगिक कार्य, मत्स्यपालन, शक्ति के उत्पादन एवं मनोरंजन हेतु किया जा रहा है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था और मानव आहार में मछली का अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राचीनकाल से ही मछली पालना एवं मछली पकड़ना एक महत्त्वपूर्ण उद्योग रहा है। मछली मनुष्य के भोजन का न केवल महत्त्वपूर्ण पदार्थ है अपितु यह सबसे सस्ता एवं सुगम खाद्य है। विभिन्न भागों में मछली की खपत मुख्यत: स्थानीय परम्परा रीति-रिवाज, धर्म एवं मछली पकड़ने की सुविधा पर निर्भर करती है।