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समाचार और आलेख
धरती की फिक्रमन्द ये महिलाएँ
Posted on 08 Mar, 2016 10:18 AMअन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस 08 मार्च 2016 पर विशेष
अक्सर हम देश या दुनिया के किसी कोने में बाढ़, अकाल, सूखी नदियों, अचानक बड़ी संख्या में जीव जन्तुओं की मृत्यु, ग्लेशियर्स पिघल कर गाँवों कस्बों की जल समाधि, भू-स्खलन या अन्य प्राकृतिक आपदाओं का कहर बरपाते देखते हैं, तो भीतर तक सिहर उठते हैं और हमारे मुँह से निकल पड़ता है, ‘उफ, ये तो पर्यावरण के नाश के नतीजे हैं। हम अब भी नहीं चेते तो दुनिया बर्बाद हो जाएगी।’ हम तो बस कह कर रह जाते हैं, लेकिन दुनिया की कई महिलाओं ने पर्यावरण की रक्षा के लिये काफी कुछ किया है। हम चाहें तो इन पर्यावरण मित्र महिलाओं से प्रेरणा लेकर खुद भी बहुत कुछ कर सकते हैं। जानते हैं कुछ ऐसी महिलाओं के बारे में।
रोहिणी निलेकणी
रोहिणी निलेकणी, चैरिटेबल ट्रस्ट अर्घ्यम फाउंडेशन की संस्थापक चेयरपर्सन हैं। पानी-पर्यावरण के क्षेत्र में उनका योगदान देश-दुनिया में जाना जाता है। पिछले एक दशक में उन्होंने पानी-पर्यावरण, शिक्षा और सेनिटेशन जैसे विभिन्न सेक्टरों में बड़ा निवेश किया है। यह निवेश किसी कारोबार के लिये नहीं बल्कि परोपकार और दान देने के लिये है। पानी और स्वच्छता जैसे मुद्दों पर काम करने वाले लोगों और संस्थाओं को स्वदेशी मदद देने के लिये ही अर्घ्यम जैसी संस्था बनाई। रोहिणी ने पर्यावरण के क्षेत्र में बड़ी दानदाता के रूप में अपनी छवि बनाई है।
पूरे गाँव में कैंसर - नहीं जगी सरकार
Posted on 29 Feb, 2016 12:19 PM
धर्मेन्द्र की उम्र 21 साल भी नहीं हुई थी। 13 जनवरी को कैंसर से मारा गया। उसके कई अंगों में कैंसर फैल गया था। कैंसर का पता चलने के करीब चार महीने बाद कोलकाता के पीजीआई अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी माँ मीना देवी के सिर पर बालों के बीच करीब दो साल से एक फोड़ा हो गया है। पहले इससे कोई परेशानी नहीं थी। अब खून झलक रहा है। हाथ और पैर के नाखून पीले पड़ जाते हैं, फिर गिर जाते हैं।
धर्मेन्द्र के पिता अर्थात रामकुमार यादव स्वयं लगातार सरदर्द, शरीरदर्द से परेशान हैं। सिर्फ बैठे रहने का मन करता है। पर बैठे रहने से कैसे चलेगा? मजदूर आदमी हैं। पेट भरने के लिये दैनिक मजदूरी का असरा है। उनका गाँव ‘तिलक राय का हाता’ बक्सर जिले के सिमरी प्रखण्ड में गंगा के तट पर है।
सूखा : जंग जारी है
Posted on 28 Dec, 2015 12:23 PMसूखा प्राकृतिक त्रासदी है। सारी दुनिया में उसके असर से, खेती सहित, अनेक गतिविधियाँ प्रभावित होती हैं। कुओं, तालाबों, जलाशयों और झीलों में पानी घटता है। कई बार, उन पर असमय सूखने का खतरा बढ़ता है। प्रभावित इलाकों में पीने के पानी की किल्लत हो जाती है। उद्योग धंधे भी पानी की कमी की त्रासदी भोगते हैं।
मिट्टी में नमी की कमी के कारण खाद्यान्नों का उत्पादन घट जाता है। कई बार पूरी फसल नष्ट हो जाती है। सूखे की अवधि कुछ दिनों से लेकर कुछ सालों तक की हो सकती है। सूखे का सबसे अधिक असर किसान की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। बरसों से उसके विरुद्ध जंग जारी है।
भारत में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से उठी मानसूनी हवाओं के कारण बरसात होती है। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में लौटते मानसून के कारण शीत ऋतु में पुनः बरसात होती है। देश के विभिन्न भागों में होने वाली बरसात की मात्रा और औसत वर्षा दिवसों में काफी भिन्नता है।
आर्सेनिक समस्या : बढ़ते खतरे
Posted on 05 Dec, 2015 03:24 PMसन् 1983 में स्कूल ऑफ ट्रापीकल मेडीसन, कोलकाता के चर्मरोग विशेषज्ञ डॉ. साहा ने मानवीय चमड़ी में होने वाले घावों के लिये आर्सेनिक को जिम्मेदार पाया था। इलाज के दौरान उन्हें लगा कि इस बीमारी के पीड़ित अधिकांश लोग, मुख्यतः पूर्वी बंगाल के रहने वाले वे लोग हैं जो नलकूपों का पानी उपयोग में ला रहे हैं।
इसके बाद, जादवपुर विश्वविद्यालय के पर्यावरणविद दीपंकर चक्रवर्ती ने प्रमाणित किया कि आर्सेनिक का स्रोत वे नलकूप हैं जो पिछले सालों में पेयजल और सिंचाई के लिये बड़ी मात्रा में लगाए गए हैं।
ग़ौरतलब है कि पूरे बंगाल में परम्परागत रूप से कुओं और पोखरों के पानी का उपयोग होता था। इन स्रोतों का पानी पूरी तरह निरापद था। कालान्तर में इन जलस्रोतों में प्रदूषण पनपा और वे अशुद्ध पानी से होने वाली बीमारियों के केन्द्र बनने लगे तब लोगों को अशुद्ध पानी से बचाने के लिये 1970 से 1980 में नलकूपों का विकल्प अपनाया गया।
भोपाल गैस त्रासदी : कुछ सबक
Posted on 29 Nov, 2015 03:47 PMभोपाल गैस कांड पर विशेष
2 और 3 दिसम्बर 1984 की दरम्यानी रात को मैं उज्जैन में और मेरा परिवार भोपाल में था। तीन तारीख को सबेरे स्थानीय अखबारों से पता चला कि भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने में गैस रिसी है और उसके असर से भोपाल में अफरा-तफरी का माहौल है। उस समय घटना की गम्भीरता का अहसास नहीं हुआ।
फ्लोराइड समस्या और समाज
Posted on 24 Nov, 2015 11:25 AM
पानी में फ्लोराइड की समस्या विश्वव्यापी है। दुनिया के 25 देश, जिसमें विकसित देश भी सम्मिलित हैं, के भूजल में फ्लोराइड पाया जाता है। भारत, भी इस समस्या से अछूता नहीं है। उसके 20 राज्यों के भूजल में फ्लोराइड पाया जाता है। भारत में अधिकांश पेयजल योजनाओं में भूजल का उपयोग होता है इसलिये फ्लोराइड युक्त पानी पीने के कारण लोगों की सेहत पर फ्लोराइड के कारण होने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।
इसके अलावा, हमारे देश में गर्मी के दिनों में पानी की खपत बढ़ जाती है। खपत बढ़ने के कारण अधिक मात्रा में फ्लोराइड मानव शरीर में जाता है और अपना असर दिखाता है। अनुमान है कि पूरी दुनिया में फ्लोराइड जनित बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या लगभग 20 करोड़ है।
नदी, समाज और सरकार
Posted on 15 Nov, 2015 03:03 PM
इस कहानी के तीन पात्र हैं - नदी, समाज और सरकार। उनके कृत्य एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। हम, सबसे पहले प्रत्येक पात्र के बारे में मोटी-मोटी बातें जानने का प्रयास करेंगे। जानकारी के आधार पर समझ बनाएँगे। उसके बाद नदी, समाज और सरकार की जिम्मेदारियों पर चर्चा करेंगे। चर्चा का केन्द्र बिन्दु होगा प्रत्येक पात्र का हित। बदलते समय के साथ, समाज और सरकार के नजरिए में आये बदलावों को रेखांकित किया जाएगा।
कहानी का अन्तिम अध्याय, पात्रों के भविष्यफल पर अपनी राय पेश करेगा। कहानी का समापन, नदी की जिम्मेदारियों को बहाल करने के संकल्प के अनुरोध पर खत्म होगा। आइए सबसे पहले नदी को समझें-
बाढ़ नियंत्रण और कुदरत
Posted on 05 Nov, 2015 11:46 AM
बाढ़, कम समय में हुई अतिवृष्टि का प्रतिफल है। कई बार गैर-प्राकृतिक कारणों से भी बाढ़ें आती हैं। लाखों करोड़ों सालों से दुनिया भर की नदियों में बाढ़ें आ रही हैं पर जबसे उसके असर से मनुष्य को परेशानी होने लगी है, बाढ़ नियंत्रण पर चर्चा और उसके असर को कम करने के लिये प्रयास होने लगे हैं।
मूर्ति विसर्जन और पर्यावरणीय सुरक्षा के प्रयास
Posted on 19 Oct, 2015 10:33 AMनवरात्र विशेष
भारत जैसे संस्कारित देश में लगभग सभी प्रमुख धर्मों को मानने वाले लोग निवास करते हैं। अपने-अपने धर्म के अनुसार उनके तीज-त्योहार, उत्सव, पर्व, कर्मकाण्ड और आस्थाएँ हैं। धार्मिक विविधता के कारण देश भर में लगभग साल भर धार्मिक अनुष्ठान एवं कार्यक्रम चलते रहते हैं।