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जड़ें
Posted on 15 May, 2013 01:56 PM
जड़ों की तरफ मुड़ने से पहले हमें अपनी जड़ता की तरफ भी देखना होगा, झाँकना होगा। यह जड़ता आधुनिक है। इसकी झांकी इतनी मोहक है कि इसका वजन ढोना भी हमें सरल लगने लगता है। बजाय इसे उतार फेंकने के, हम इसे और ज्यादा लाद लेते हैं अपने ऊपर।

आधुनिक दौर में, अपनी जड़ों से कट कर हमने जो विकास किया, उसके बुरे नतीजे तो चारों तरफ बिखरे पड़े हैं। स्थूल अर्थों में भी और सूक्ष्म अर्थों में भी। ढंका हुआ भूजल, खुला बहता नदियों, तालाबों का पानी और समुद्र तक बुरी तरह से गंदा हो चुका है। विशाल समुद्रों में हमारी नई सभ्यता ने इतना कचरा फेंका है कि अब अंतरिक्ष से टोह लेने वाले कैमरों ने अमेरिका के नक्शे बराबर प्लास्टिक के कचरे के एक बड़े ढेर के चित्र लिए हैं। लेकिन अभी इस स्थूल और सूक्ष्म संकेतों को यहीं छोड़ वापस उदारीकरण की तरफ लौटें।

कुछ शब्द ऐसे हैं कि वे हमारा पीछा ही नहीं छोड़ते। क्या-क्या नहीं किया हमने उन शब्दों से पीछा छुड़ाने के लिए। तब तो हम गुलाम थे। फिर भी हमने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की कोशिश के साथ ही अपने को दुनिया की चालू परिभाषा के हिसाब से आधुनिक बनाने का भी रास्ता पकड़ने के लिए परिश्रम शुरू कर दिया था। आजाद होने के बाद तो इस कोशिश में हमने पंख ही लगा दिए थे। हमने पंख खोले पर शायद आंखें मूंद लीं। हम उड़ चले तेजी से, पर हमने दिशा नहीं देखी।

अब एक लंबी उड़ान शायद पूरी हो चली है और हमें वे सब शब्द याद आने लगे हैं, जिनसे हम पीछा छुड़ा कर उड़ चले थे। अभी हम जमीन पर उतरे भी नहीं हैं लेकिन हम तड़पने लगे हैं, अपनी जड़ों को तलाशने।

यों जड़ें तलाशना, जड़ों की याद अनायास आना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन इस प्रयास और याद से पहले हमें इससे मिलते-जुलते एक शब्द की तरफ भी कुछ ध्यान देना होगा। यह शब्द है- जड़ता। जड़ों की तरफ मुड़ने से पहले हमें अपनी जड़ता की तरफ भी देखना होगा, झांकना होगा। यह जड़ता आधुनिक है।
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