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उत्तराखंड
संवर्धन के अभाव में खोखले होते वन क्षेत्र
Posted on 01 May, 2016 09:17 AMउत्तराखण्ड में अनेक प्रकार के वन मौजूद हैं। यहाँ चीड़, सागौन, देवदार, शीशम, साल, बुरांश, सेमल, बांझ, साइप्रस, फर तथा स्प्रूश आदि वृक्षों से आच्छादित वन क्षेत्र से ईंधन तथा चारे कि अतिरिक्त इमारती तथा फर्नीचर के लिये लकड़ी, लीसा, कागज इत्यादि का उत्पादन प्रचुर मात्रा में किया जा सकता है। इसके अलावा वनों में अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ भी मौजूद हैं। जरूरत है इनके संवर्धन की। अगर राज्य सरका
Water Crisis in Uttarakhand
Posted on 19 Apr, 2016 12:04 PMThe Himalayan Mountain system is dotted with 12 rivers, out of 18 major rivers of the country. Hundreds of small rivulets and thousands of streams make the Himalayas as “Water Bank of Asia”. This constitutes 42% pf the total of the country.
प्राकृतिक संसाधन पर सामुदायिक मलकियत का उत्तराखण्ड सम्मेलन
Posted on 07 Apr, 2016 03:12 PM
तिथि: 15-16 अप्रैल, 2016
स्थान: अनासक्ति आश्रम, कौसानी (उत्तराखण्ड)
आयोजक: आजादी बचाओ आन्दोलन
हालांकि यह सच है कि शासन, प्रशासन और भामाशाह वर्ग ही अपने दायित्व से नहीं गिरे, बल्कि समुदाय भी अपने दायित्व निर्वाह में लापरवाह हुआ है। इसके अन्य कारण भी हो सकते हैं, किन्तु धीरे-धीरे यह धारणा पुख्ता होती जा रही है कि जब तक स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों के मालिकाना, समुदाय के हाथों में नहीं सौंप दिया जाता, न तो इनकी व्यावसायिक लूट को रोकना सम्भव होगा और न ही इनके प्रति समुदाय को जवाबदेह बनाना सम्भव होगा।
नवगठित राज्य झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखण्ड में राज्य बनने के बाद प्राकृतिक संसाधनों की लूट की जो तेजी सामने आई है, इसने जहाँ एक ओर राज्यों को छोटा कर बेहतर विकास के दावे को समग्र विकास के आइने में खारिज किया है, वहीं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में समाज का स्वावलम्बन देखने वालों को मजबूर किया है कि अब वे स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों पर सामुदायिक मालिकाना सुनिश्चित करने के लिये रास्ता खोजें।
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ਮੋਟੇ ਅਨਾਜਾਂ ਨੂੰ ਆਹਾਰ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਵਿਚ ਦੁਬਾਰਾ ਸ਼ਾਮਿਲ ਕਰਨਾ
Posted on 31 Mar, 2016 08:17 PMਬੰਗਲਾਦੇਸ਼ ਚਾਵਲ ਖੋਜ ਸੰਸਥਾਨ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਪ੍ਰਸਾਰ ਵਿਭਾਗ ਦੁਆਰਾ ਇੱਕ ਨਵੀ
खाली होने की कगार पर पहुँच गया वाटर टैंक
Posted on 28 Mar, 2016 12:19 PM
अब यह सपने जैसा लगने लग रहा है कि क्या वाकई उत्तराखण्ड कभी ‘वाटर टैंक’ होगा। यह पंक्ति ठीक वैसे ही लग रही है जैसे हम लोग गाये-बगाहे कहते हैं कि हमारा देश सोने की चिड़िया है। पानी की किल्लत से गाँव के गाँव पहाड़ से नदियों के किनारे और शहरों में पलायन कर रहे हैं। राज्य में पलायन की समस्या कुछ और भी है, परन्तु मौजूदा समय में पानी की समस्या राज्य के लोगों के सामने मुँहबाये खड़ी है।
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