उत्तराखंड

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गंगा को बचाने के लिए बनें कड़े कानून : स्वामी चिदानंद
Posted on 30 Apr, 2012 10:24 AM

गंगा नदी पर प्रदूषण फैलाने के लिए कानून बनना चाहिए। जब तक भय पैदा नहीं होता है शासन नहीं चलता है। इसीलिए गंगा में प्रदूषण दूर करने के लिए कड़े से कड़े कानून बनाकर गंगा विरोधियों में भय पैदा करने के साथ-साथ लोगों को जागरूक बनाना होगा। उन्होंने कहा कि जब टाइगर को मारने पर कड़े से कड़े कानून हैं। दंड का प्रावधान है तो गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए कड़े से कड़े कानून क्यों नहीं बन सकते हैं।

गंगा एक्शन परिवार के प्रमुख परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद मुनि ने कहा कि गंगा व पर्यावरण की रक्षा के लिए पर्यावरण पुलिस और गंगा थाने और पॉलीथीन चौकियां बनाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि गंगा यमुना समेत कई नदियों का उद्गम स्थल हिमालय है। इसीलिए हिमालय की रक्षा करना हम उत्तराखंडियों का परम कर्तव्य है। वे आज प्रेस क्लब में पत्रकारों से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गंगा की रक्षा के लिए जो गंगा थाने व पॉलीथीन चौकियां बने। गंगा में प्रदूषण फैलाने वाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो।
वर्षा जल संचयन एवं पुनर्भरण तकनीक द्वारा भूजल विकास एवं प्रबंधन – उज्जैन, म.प्र. के संदर्भ में
Posted on 30 Apr, 2012 09:31 AM मध्य प्रदेश के मालवा पठार में उज्जैन नगर 230 111 अक्षांश एवं 750 481 देशांतर में स्थित है। उज्जैन में भूजल का दोहन खोदे गये कूपों तथा नलकूपों के माध्यम से हो रहा है। अत्यधिक या अनियंत्रित भूजल दोहन के कारण भूजल स्तर में निरंतर गिरावट तथा अल्प वर्षा के कारण भूजल भंडारण में अपर्याप्त पुनर्भरण होने से जल आपूर्ति की समस्या उत्पन्न हो रही है।
ग्रामीण विकास में जल संसाधन की भूमिका
Posted on 30 Apr, 2012 09:28 AM जल प्रकृति की सबसे बहुमूल्य देन में से एक है। इसके बिना जीवन एवं सभ्यता के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जल प्राप्ति के बावजूद जल की उपलब्धता समान नहीं है।
बादलों के फटने के कारण आपदा प्रबंधन
Posted on 30 Apr, 2012 09:24 AM तीव्र वर्षा, चक्रवात, बाढ़, सूखा, भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदायें देश के सामाजिक व आर्थिक विकास को प्रभावित करती हैं। इन आपदाओं के कारण पर्यावरणीय उतार-चढ़ाव के अतिरिक्त जन जीवन व जन सम्पदा की भयंकर हानि होती है। अधिकांशतः प्राकृतिक विनाश का मूल कारण मौसम से सम्बंधित होता है। इसके अंतर्गत बादलों के फटने के कारण होने वाली तीव्र वर्षा, चक्रवात, बाढ़ एवं सूखा सम्मिलित है।
जल विद्युत परियोजना एवं पर्यावरणीय प्रभाव मूल्याकंन – एक अध्ययन
Posted on 30 Apr, 2012 09:21 AM पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन एक ऐसी युक्ति है जो विकास के विभिन्न पहलुओं के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव का निरंतर आंकलन कर सकते हैं । पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन, प्रदूषण नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण पहलू है। इसके द्वारा विश्लेषण के आधार पर परियोजना को मंजूरी देना या ना देना शामिल है। आजकल किसी परियोजना को मंजूरी देने में जनता की राय को शामिल करना जरूरी है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार ने विभिन्
नदियों को आपस में जोड़ने से संबंधित पर्यावरणीय पहलू
Posted on 30 Apr, 2012 09:17 AM बढ़ती जनसंख्या तथा विभिन्न जलवायु घटकों के कारण जल स्रोतों पर पिछले कुछ दशकों से काफी दबाव बढ़ गया है। बढ़ती हुई जल की जरूरतों व प्रतियोगिता के दौर ने योजनाकारों को इसका निदान ढूढ़ने पर विवश कर दिया है। हमारे देश में कुछ स्थानों पर अत्यधिक वर्षा होती है तथा बाढ़ का प्रकोप रहता है। दूसरी तरफ कुछ इलाकों में सूखा पड़ने से लोग भूखे मर जाते हैं। फसलें पैदा नहीं होती व जीव-जंतु भी खतरे का सामना करते हैं
पर्यावरण संतुलन हेतु नदियों में आवश्यक न्यूनतम जल प्रवाह अध्ययन
Posted on 30 Apr, 2012 09:12 AM भारत वर्ष में बेहतर जीवनयापन एवं आर्थिक विकास हेतु, प्रतिवर्ष शहरीकरण एवं औद्योगिक विकास तीव्र गति से हो रहा है। इस विकास की प्रक्रिया में जल का अत्यधिक महत्व है। जल का उपयोग पीने हेतु, सिंचाई के लिए जल विद्युत बनाने के लिए, शहरीकरण एवं औद्योगीकरण हेतु आदि कार्यों में किया जाता है। किंतु पर्यावरण संतुलन हेतु नदियों में आवश्यक न्यूनतम जल प्रवाह को अनदेखा किया जा रहा है। यह ज्ञात हो कि राष्ट्रीय जल
आगरा मंडल में जल प्रबंधन में स्वंयसेवी संगठनों की भूमिका
Posted on 28 Apr, 2012 11:13 AM भारत वर्ष नदियों, तालाबों, झरनों एवं पोखरों का देश है। जल के स्रोत ही जलवन है। पिछले कुछ दशकों में विश्व में जल संकट पैदा हो गया है। आज भारत में कृषि एवं जल प्रबंधन एक समस्या है जिसका सीधा असर देश की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ा है। जल जिसकी सम्पत्ति है, जल का बंटवारा कौन करेगा, जल-बाजार का संचालन कौन करेगा, जल का मुल्य क्या हो, ऐसे अनेक प्रश्न राष्ट्रीय स्तर पर उभर कर आ रहे हैं। आगरा भी जल अभाव की सम
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