पिनाकिनी

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नेल्लूर की पिनाकिनी
Posted on 23 Oct, 2010 09:20 AM कितना शीतल उसका दर्शन था! गेहूं के रवे के जैसी सफेद रेत पर स्फटिक जैसा पानी बहता हो, और ऊपर से चंड भास्कर की प्रतापी किरणे बरसती हों, ऐसी शोभा का वर्णन कैसे हो सकता है? मानो चांदी के रस की कोठी भट्टी का ताप सहन न कर सकने के कारण टूट गयी है नेल्लूर यानी धान का गांव। दक्षिण भारत के इतिहास में नेल्लूर ने अपना नाम चिरस्थायी कर दिया है। बेजवाड़े से मद्रास जाते हुए रास्ते में नेल्लूर आता है।

भारत सेवक समाज के स्व. हणमंतरावने नेल्लूर से कुछ आगे पल्लीपाडु नामक गांव में एक आश्रम की स्थापना की है। उसे देखने के लिए जाते समय सुभग-सलिला पिनाकिनी के दर्शन हुए। श्रीमती कनकम्पा के पवित्र हाथों से काटे हुए सूत की धोती की भेंट स्वीकार करके हम आश्रम देखने के लिए चले। कुछ दूर तक तो बगीचे ही बगीचे नजर आये। जहां-तहां नहरों में पानी दौड़ता था, और हरियाली-ही-हरियाली हंसती दिखाई देती थी।

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