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नैनीताल जिला
इंग्लैंड में स्वच्छता अभियान और भारत में स्वच्छ नगर
Posted on 13 Nov, 2019 10:47 AM14वीं शताब्दी के दूसरे दशक के बाद विश्व के अनेक देशों में पारिस्थितिक तंत्र का सन्तुलन गड़बड़ा गया था। उस दौरान यूरोप अनेक पर्यावरणीय संकटों से जूझ रहा था। पारिस्थितिक तंत्र के गड़बड़ा जाने से यूरोप में मिट्टी में प्रदूषण बढ़ गया, जिस कारण मिट्टी की उर्वरता कम हो गई। अनाज की उपज घट गई। परिणामस्वरूप भुखमरी बढ़ी और अकालों का युग आ गया। अकाल और भुखमरी से लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई। म
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कैंसर की खेती
Posted on 08 Nov, 2019 12:59 PMओडिशा के बरगढ़ में मौत बताकर आती है। यह हर दूसरे दिन, किसी-न-किसी को चपेट में लेकर आगमन की सूचना दे देती है। पश्चिमी ओडिशा के इस जिले में स्थित भोईपाली गाँव में रहने वाले 55 वर्षीय जापा प्रधान के परिवार में वृद्धावस्था से ज्यादा मौतें कैंसर के कारम हुई हैं। महज कुछ दशकों के भीतर जापा ने अपने पिता, दो चाचा और एक चाची को ब्लड कैंसर की वजह से खो दिया। अब कैंसर ने उनकी पीढ़ी पर भी हमला बोल दिया है।
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बैरन का दूसरा नैनीताल दौरा
Posted on 08 Nov, 2019 12:48 PMदिसम्बर, 1842 में पीटर बैरन दूसरी बार नैनीताल आए। बैरन 9 दिसम्बर को बरेली से भीमताल को रवाना हुए। उनके तराई पहुँचने तक रात हो गई थी। उन्होंने हल्द्वानी से पालकी में बैठकर रात में तीन घंटे का सफर तय किया। उसी रोज देर रात भीमताल पहुँचे गए। बैरन के नैनीताल की पहली यात्रा के दोनों साथी जे.एच.बैटन और कैप्टन वेलर भीमताल के बंगले में पहले से ही उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। इस बार बैरन अपने साथ बीस फीट लम
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नैनीताल के वजूद पर सवाल
Posted on 25 Oct, 2019 10:19 AMपीटर बैरन को भारत के मानचित्र में नैनीताल जैसी कोई जगह का वजूद होने की बात को यूरोपीय समुदाय के बीच सच साबित करने के लिए अथक श्रम करना पड़ा। नैनीताल के बारे मे पीटर बैरन द्वारा दिए गए विवरण पर बैरन के शिकारी साथी रहे बैगमैन ने ‘द हिल्स’ अखबार के माध्यम से अनेक सवाल खड़े कर दिए। हालत यह हो गई कि बैरन के विवरण पर लोग यकीन करने को तैयार नहीं थे।
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नैनीताल में बैरन
Posted on 21 Oct, 2019 02:07 PMपीटर बैरन उर्फ पिलग्रिम तत्कालीन पश्चिमोत्तर प्रान्त के रोजा (शाहजहाँपुर) के निवासी थे। हालांकि बैरन पेशे से मूलतः शराब के व्यवसायी थे, पर उन्हें प्रकृति से बेहद प्यार था। वे हिमालय के पुराने घुमक्कड़ थे। लेखक थे। कई सालों से हिमालय की यात्रा करते चले आ रहे थे। इन यात्राओं के दौरान बैरन ने हिमालय की विराटता, महानता और सुन्दरता को बेहद नजदीक से देखा और अनुभव किया था। पीटर बैरन हमेशा की तरह 1841
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