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दिल्ली
सस्टेनेबिलिटी सम्मेलन एशिया-2009 नई दिल्ली में 25-26 नवंबर को
Posted on 13 Nov, 2009 06:55 AMचौथा सस्टेनेबिलिटी सम्मेलन एशिया 2009 नई दिल्ली में 25-26 नवंबर को आयोजित किया जा रहा है। यह दो दिवसीय आयोजन कान्फेडेरेशन आफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) एवं सीआईआई-आईटीसी सेंटर आफ एक्सीलेंस फार सस्टेनेबेल डेव्लपमेंट के संयुक्त तत्वावधान में इंडिया हैबीटेट सेंटर में होगा। सम्मेलन का विषय है-चौथा सस्टेनेबिलिटी सम्मेलन एशिया 2009 विनिंग स्ट्रेटैजी फार अ सस्टेनेबेल वर्ल्ड।दूषित पानी की बीमारियों से बचिए
Posted on 12 Nov, 2009 09:34 AMआपके स्वास्थ्य का पानी से सीधा रिश्ता है। पीने के पानी की स्वच्छता के मामले में यदि कोई असावधानी होती है तो कई तरह के रोग शरीर को घेरने में देर नहीं लगाते। ज्यादातर चिकित्सकों का भी यही कहना है कि आज के भागदौड़ भरे जीवन में यदि नियमित स्वच्छ पानी ही पिया जाए, तो कई तरह की बीमारियों से बचा जा सकता है।क्या करें उपाय
गूगल अर्थ बनाएगा नदियों की विलुप्त सीमाओं का नक्शा
Posted on 12 Nov, 2009 06:46 AMगूगल अर्थ उन वैज्ञानिकों के लिये सुविधाजनक हो गया है जो नदियों की हजारों मील लंबी विलुप्त सीमा को मापने के लिये इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। यह भविष्य में कई अंतरराष्ट्रीय विवादों का निबटारा करने में मदद पहुंचायेगा।
सूखा साल सुलगते सवाल
Posted on 30 Oct, 2009 05:59 PMपहले कई हिस्सों में भारी बारिश, फिर बिन बरसात लंबा दौर और अब लगभग पूरे देश में सूखा। मानसून के छल ने कई सवाल सुलगा दिए हैं। भीषण महंगाई से जूझते लोग चौपट फ़सल और पेयजल संकट की मार में कैसे बचे रह पाएंगे? इस चौतरफ़ा संकट में सवाल उबरने और बचे रहने का है..
दिल्ली के पोखरे नहीं रहे मछलियों के रहने लायक
Posted on 16 Oct, 2009 10:04 AMराष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के जलाशय इतने प्रदूषित हो चुके हैं कि ये जलचर जीवों के जीवन जीने लायक नहीं रह गए हैं। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 96 जलाशयों में से तकरीबन 70 फीसदी में जलचर जीवों का बच पाना मुश्किल है। डीपीसीसी द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार यह पाया गया कि 42 जलाशय सूख गए थे। अन्य 24 जलाशयों में सीवेज के कारण से जाम हो गया था और उसमें
हम पी रहे है मीठा जहर
Posted on 08 Oct, 2009 10:26 AMगंगा के मैदानी इलाकों में बसा गंगाजल को अमृत मानने बाला समाज जल मेंव्याप्त इन हानिकारक तत्वों को लेकर बेहद हताश और चिंतित है। गंगा बेसिनके भूगर्भ में 60 से 200 मीटर तक आर्सेनिक की मात्रा थोडी कम है और 220मीटर के बाद आर्सेनिक की मात्रा सबसे कम पायी जा रही है। विशेषज्ञों केअनुसार गंगा के किनारे बसे पटना के हल्दीछपरा गांव में आर्सेनिक की मात्रा1.8 एमजी/एल है। वैशाली के बिदुपूर में विशेषज्ञों ने पानी की जांच की तोनदी से पांच किमी के दायरे के गांवों में पेयजल में आर्सेनिक की मात्रादेखकर वे दंग रह गये। हैंडपंप से प्राप्त जल में आर्सेनिक की मात्रा 7.5एमजी/एल थी ।
तटवर्तीय मैदानी इलाकों में बसे लोगों के लिए गंगा जीवनरेखा रही है। गंगा ने इलाकों की मिट्टी को सींचकर उपजाऊ बनाया। इन इलाकों में कृषक बस्तियां बसीं। धान की खेती आरंभ हुई। गंगा घाटी और छोटानागपुर पठार के पूर्वी किनारे पर धान उत्पादक गांव बसे। बिहार के 85 प्रतिशत हिस्सों को गंगा दो (1.उत्तरी एवं 2. दक्षिणी) हिस्सों में बांटती है। बिहार के चौसा,(बक्सर) में प्रवेश करने वाली गंगा 12 जिलों के 52 प्रखंडों के गांवो से होकर चार सौ किमी की दूरी तय करती है। गंगा के दोनों किनारों पर बसे गांवों के लोग पेयजल एवं कृषि कार्यों में भूमिगत जल का उपयोग करते है।
गंगा बेसिन में 60 मीटर गहराई तक जल आर्सेनिक से पूरी तरह प्रदूषित हो चुका है। गांव के लोग इसी जल को खेती के काम में भी लाते है जिससे उनके शरीर में भोजन के द्वारा आर्सेनिक की मात्रा शरीर में प्रवेश कर जाती है।