दिल्ली

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स्वास्थ्य एवं समृद्धि हेतु जैविक खेती
Posted on 10 Jul, 2015 10:35 PM असंतुलित कृषि गतिविधियों के परिणामस्वरूप पर्यावरण विघटन का खतरा पैद
बढ़ती आबादी का पर्यावरण पर विस्फोट
Posted on 10 Jul, 2015 11:03 AM

विश्व जनसंख्या दिवस पर विशेष

Population growth
गाँवों के विकास की कीमत पर बचेंगे शहर
Posted on 09 Jul, 2015 06:32 PM देश में जहाँ 1971 में 3126 शहर थे वहीं 1981 में 4029 तथा 1991 में 4
स्वास्थ्य और पर्यावरण (Health and Environment)
Posted on 08 Jul, 2015 12:03 PM बढ़ते औद्योगीकरण और उन्नत औद्योगिकी के कारण पृथ्वी के प्राकृतिक वा
सभी खाद्य-पेय पदार्थ निरापद क्यों न हों
Posted on 06 Jul, 2015 10:27 AM जैसे-जैसे आर्थिक विकास की दौड़ तेज होती जाती है वैसे-वैसे उपयोगी व
कार्बन व्यापार और भारत (Carbon trading and India)
Posted on 06 Jul, 2015 10:18 AM
एक मोटे अनुमान के मुताबिक सन 2012 तक कार्बन ट्रेडिंग से कम स
वर्मीकल्चर से पर्यावरण-मित्र खाद
Posted on 04 Jul, 2015 04:34 PM वर्मीकल्चर विधि से खाद बनाने के लिए केंचुओं का प्रयोग किया जाता है
कीटनाशियों के जैविक विकल्प
Posted on 04 Jul, 2015 04:23 PM करीब चार दशक पूर्व प्रसिद्ध विज्ञान लेखिका रसेल कार्सन ने एक पुस्त
राष्ट्रीय जल ग्रिड कितना आवश्यक
Posted on 03 Jul, 2015 08:34 PM भारत में वर्तमान में सुर्खियों में आई ‘राष्ट्रीय जल ग्रिड’ की संकल
सूखे को कैसे पछाड़ा बागलकोट ने
Posted on 02 Jul, 2015 11:19 AM ड्राउट प्रूफिंग (सूखा रोधन) हमारे शब्दकोष में हाल में आई नई अवधारणा है। लेकिन यह कौशल बागलकोट जिले के लिये नया नहीं है। स्थानीय किसानों ने जल संरक्षण के लिये ऐसे तमाम तरीके खोजे थे जो कि विशेषज्ञों की जानकारी में भी नहीं थे। यहाँ उनके अपनाए गए तरीकों पर पैनी नजर डाली जा रही है।

जिस सूखे के कारण पूरे राज्य के अन्य जिलों में प्रतिकूल स्थितियाँ बनीं उनसे निपटने के लिये इन गाँवों ने कौन सी प्रणाली अपनाई? दुर्भाग्य से इस बारे में बहुत ही कम जानकारियाँ उपलब्ध हैं। फिर भी अनुभव बताता है कि बागलकोट के गुमनाम से दिखने वाले इन गाँवों में पारम्परिक विवेक मौजूद है जिसके कारण कम वर्षा का भी उन्होंने अधिकतम उपयोग किया और सूखे के असर को नियन्त्रित कर लिया।

कर्नाटक में बागलकोट जिला राज्य में सबसे कम वर्षा यानी 543 मिलीमीटर औसत के रूप में पहचाना जाता है। सरकारी अनुमान के अनुसार 2002-04 के बीच इस जिले में सूखे की स्थितियों और पानी की कमी के कारण 1500 करोड़ रुपए की फसल का नुकसान हुआ।

हालांकि जिले के कुछ गाँव ऐसे हैं जिन्होंने कम वर्षा और सूखे की स्थितियों के विरुद्ध अपने को बचा लिया। हुनागुंडा और बेनाकट्टी तालुका में स्थित इन गाँवों के नाम हैं-बड़वाडागी, चित्तरागी, , रामवाडागी, कराडी, कोडीहाला, इस्लामपुर, नंदवाडागी, केसरभावी।

लेकिन जिस सूखे के कारण पूरे राज्य के अन्य जिलों में प्रतिकूल स्थितियाँ बनीं उनसे निपटने के लिये इन गाँवों ने कौन सी प्रणाली अपनाई?
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