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बेतरतीब दोहन से संकट में है औषधीय वनस्पतियां
Posted on 12 Sep, 2011 02:27 PM

श्रीनगर (गढ़वाल): विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में लगभग चार अरब लोग औषधीय वनस्पतियों पर विश्वास करते हैं और प्रयोग में लाई जाने वाली कुल दवाइयों में से 25 प्रतिशत वनस्पतियों से प्राप्त रसायनों से तैयार की जाती हैं। हिमालय में ऐसी जड़ी-बूटियों की प्रचुरता के मद्देनजर उनके सावधानीपूर्वक दोहन से क्षेत्र के विकास की प्रबल संभावनाएं हैं। पहले ये जड़ी-बूटी केवल स्थानीय स्तर पर

औषधीय वनस्पतियां अब संकट में
ताकि प्यासे न रह जाएं भारत के शहर
Posted on 10 Sep, 2011 03:37 PM

धरती पर पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन यही वह चीज है, जिसके बारे में हम सबसे कम चिंता करते हैं। ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन होल, कॉर्बन डाइऑक्साइड और घटती हुई हरियाली जैसे विषयों ने पानी को नेपथ्य में धकेल दिया है लेकिन दूसरी तरफ पानी के संकट ने खतरे की घंटी भी बजानी शुरू कर दी है। जैसे-जैसे पृथ्वी पर लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता घटती ज

पानी का बढ़ता संकट
खाने की प्लेट में ई-कोलाई बेक्टीरिया
Posted on 10 Sep, 2011 02:58 PM

बेहतर सेहत के लिए भोजन की थाली में सलाद, हरी सब्ज़ियाँ और फलों का होना जरूरी है पर अब यह थाली भी हर तरह से सुरक्षित नहीं रही। पिछले दिनों दुनिया के 16 देशों के लगभग 3100 लोगों को इसी वजह से बीमार होना पड़ा, उनमें से 31 लोगों की मौत भी हो गई। इसके लिए जिम्मेदार था ई-कोलाई नाम का एक खतरनाक बेक्टीरिया, जिसकी भूमिका यहां किसी जासूसी कहानी के खलनायक की तरह रही। कच्ची सब्जियां, जो ई-कोलाई (ईस्चेरिचिय

ई-कोलाई बैक्टीरिया से बढ़ता खतरा
जल, थल और मल
Posted on 08 Sep, 2011 03:35 PM

आज तो केवल एक तिहाई आबादी के पास ही शौचालय की सुविधा है। इनमें से जितना मैला पानी गटर में जाता है, उसे साफ करने की व्यवस्था हमारे पास नहीं है। परिणाम आप किसी भी नदी में देख सकते हैं। जितना बड़ा शहर, उतने ही ज्यादा शौचालय और उतनी ही ज्यादा दूषित नदियां।

अक्सर व्यंग में कहा जाता है और शायद आपने पढ़ा भी हो कि हमारे देश में आज संडास से ज्यादा मोबाइल फोन हैं। अगर यहां हर व्यक्ति के पास मल त्यागने के लिए संडास हो तो कैसा रहे? लाखों लोग शहर और कस्बों में शौच की जगह तलाशते हैं और मल के साथ उन्हें अपनी गरिमा भी त्यागनी पड़ती है। महिलाएं जो कठिनाई झेलती हैं उसे बतलाना बहुत ही कठिन है। शर्मसार वो भी होते हैं, जिन्हें दूसरों को खुले में शौच जाते हुए देखना पड़ता है, तो कितना अच्छा हो कि हर किसी को एक संडास मिल जाए और ऐसा करने के लिए कई लोगों ने भरसक कोशिश की भी है। जैसे गुजरात में ईश्वरभाई पटेल का बनाया सफाई विद्यालय और बिंदेश्वरी पाठक के सुलभ शौचालय।
बाढ़-नियंत्रण व राहत पर गंभीर विमर्श जरूरी
Posted on 07 Sep, 2011 02:27 PM

साफ पेयजल उपलब्धि निश्चय ही एक उच्च प्राथमिकता है व इस दृष्टि से ऊंचे हैंडपंप लगाने, समय पर ब्

बैरी हुए बदरवा
Posted on 07 Sep, 2011 01:10 PM

जब बुनियादी आंकड़े भी न हों तो विज्ञान भला किस आधार पर पूर्वानुमान लगाए। मॉनसून पर निर्भरता को

पीने के पानी और धुलाई की अलग लाइनों का प्लान
Posted on 07 Sep, 2011 09:39 AM

प्रेस ॥ नई दिल्ली : पानी की सप्लाई और डिमांड के बढ़ते अंतर को पाटने के लिए दिल्ली सरकार ट्रीटेड वेस्ट वॉटर के लिए अलग पाइप लाइन बिछाने पर विचार कर रही है। इस पानी का इस्तेमाल टॉयलेट, वाहन धोने जैसे कामों में किया जा सकेगा। इसके बाद पीने के पानी की लाइन अलग और दूसरे कामों के लिए इस्तेमाल होने वाले पानी की लाइन अलग होगी।

वनाधिकार कानून और महिलाएं
Posted on 07 Sep, 2011 09:32 AM

पर्यावरण मंत्रालय वन भूमि को अपने नियंत्रण में रखने के लिए वृक्षारोपण और उद्योगों के नाम पर विभ

मानसून के दिनों में घर को बनाएं रेन प्रूफ
Posted on 06 Sep, 2011 05:13 PM

आमतौर पर कई जगहों में ऐसा देखा जाता है कि लगातार बारिश होने के कारण, पूरी देखरेख के बावजूद, छतो

पारा बनता आबो हवा का जहर
Posted on 06 Sep, 2011 04:15 PM

आम आदमी के साथ एक समस्या यह भी है कि वह जीवनशैली में तमाम आधुनिक उपकरणों और उत्पादों का तो इस्त

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