Posted on 23 Feb, 2013 11:47 AMनीर फ़ाउंडेशन को वर्ष 2012-2013 का वाटर डाइजेस्ट अवार्ड मिला है। यह पुरस्कार वाटर डाइजेस्ट व यूनेस्को द्वारा दिया गया है।
Posted on 16 Feb, 2013 10:31 AM आने वाले दस साल में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार को बनाए रखने के लिए देश की बिजली उत्पादन की क्षमता 300,000 मेगावाट हो जानी चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि जल-विद्युत परियोजनाओं की तादाद ज्यादा बढ़े। ज्यादातर बांध जैव-विविधता वाले क्षेत्रों में बनेंगे, इसलिए विशेषज्ञों का अनुमान है कि इलाके में जैव-विविधता घटकर एक तिहाई रह जाएगी और वनों के आकार में तकरीबन 1700 वर्ग किलोमीटर की कमी आएगी। लोगों की जीविका या संस्कृति के नाश या फिर विस्थापन की बात तो खैर है ही। वन और पर्यावरण मंत्रालय के बारे में उद्योग-जगत की आम धारणा है कि वह पर्यावरण पर होने वाले नुकसान के आकलन की आड़ में परियोजनाओं की मंजूरी में अड़ंगे लगाता है। उद्योग-जगत की इस राय से प्रधानमंत्री भी सहमत हैं। बीते नवंबर महीने में मंत्रिमंडल में नए चेहरे शामिल हुए तो उसके आगे प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की प्राथमिकताओं को दोहराते हुए कहा था कि वित्तीय घाटा देशी और विदेशी निवेश की राह रोक रहा है और निवेश की राह में खड़ी बाधाओं में एक नाम उन्होंने 'एन्वायरनमेंटल क्लियरेंस' का भी गिनाया था। ऐसा कहते समय निश्चित ही प्रधानमंत्री की नजर में वन और पर्यावरण मंत्रालय से जुड़ीं वे समितियां रही होंगी, जिनका गठन मंत्रालय ने 2006 की एक अधिसूचना के बाद किया था। यह अधिसूचना पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986 के तहत जारी की गई। अधिसूचना के केंद्र में पर्यावरण की सुरक्षा की चिंता तो थी ही, एक कोशिश 'विकास' की धारणा को समग्रता में देखने की भी थी और इसी के अनुकूल जारी अधिसूचना के उद्देश्य बड़े महत्वाकांक्षी थे।
Posted on 12 Feb, 2013 12:16 PMसीएसई द्वारा पेस्टीसाइड्स और जहरीले रसायनों के ऊपर जो अध्ययन जारी है उससे पेस्टीसाइड्स कंपनियों को बहुत बड़ा झटका लगा है। सीएसई द्वारा अपने अध्ययन में पेस्टीसाइड के ज़हरीला साबित होने से पेस्टीसाइड्स कंपनियां सीएसई के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस से लेकर एनजीओ स्तर के विरोध का सहारा ले रही हैं। पेस्टीसाइड्स से न केवल हमारे शरीर को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि इससे हवा, पानी और ज़मीन भी ज़हरीली होती जा र
Posted on 12 Feb, 2013 11:20 AMचूल्हे से निकलने वाला काला कार्बन अब पर्यावरणवादियों की चिंता में आ चुका है। तरह-तरह के नये चूल्हे बनाये जा रहे हैं जिनसे कम कार्बन निकले और खाना बनाने वाले की सेहत भी ठीक रहे। एक समय था जब यह धारणा फैलाई गई कि गरीब लोग खाना बनाने के लिए लकड़ी जलाते हैं और इसी से जंगलों का नुकसान हो रहा है। साथ ही चूल्हे से जो धुआँ और कालिख उठती है उससे महिलाओं में कैंसर का खतरा बढ़ता है। अमीर लोगों द्वारा किया