पानी-पर्यावरण के मुद्दों पर इन-डेप्थ रिपोर्टिंग के लिये अनुदान यानी ‘रिपोर्टिंग ग्रांट’ क्यों?
120 करोड़ से भी ज्यादा आबादी के विशाल देश में पीने का पानी दुर्लभ वस्तु बनता चला जा रहा है। एक आँकड़े के मुताबिक देश की बीस फीसदी आबादी को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं है। पीने के पानी का संकट गाँव और शहर दोनों में फैल चुका है। कहीं पेयजल में फ्लोराइड है, तो कहीं आर्सेनिक, आयरन, लेड (सीसा) और कहीं-कहीं तो पीने के पानी में यूरेनियम तक भी है। इन रासायनिक तत्वों की वजह से देश की बड़ी आबादी पेट के संक्रमण से लेकर कैंसर जैसी गम्भीर बीमारियों के चपेट में है।
देश में कहीं भी पेयजल और भूजल की गुणवत्ता, अब ठीक नहीं रह गई है। एक से अधिक घुलनशील रसायनों (फ्लोराइड, लौहतत्व, आर्सेनिक, यूरेनियम या नाइट्रेट) के साथ ही टीडीएस की अधिकता के कारण पेयजल की भयानक समस्या सामने है।
Posted on 22 Feb, 2016 10:00 AM पिछली यूपीए सरकार का यह महत्त्वाकांक्षी विचार था कि गाँवों के खेतिहर मजदूरों के पास रोजगार पहुँचाया जाये। इसके जरिए उनकी माली हालत में सुधार कर उन्हें और गरीब होते जाने से रोकना मकसद था। आय बढ़ाकर उनकी क्रय शक्ति बढ़ाते हुए प्रकारान्तर से ग्रामीण क्षेत्र को भी अर्थव्यवस्था के विकास से जोड़ना था। इसके गुणात्मक परिणाम दिखे भी हैं। गाँवों में मजदूरों का जीवन-स्तर बदला है और उनकी क्रयशक्ति बढ
Posted on 21 Feb, 2016 10:23 AM स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - छठा कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :
वर्ष 2010 में हरिद्वार का कुम्भ अपेक्षित था। शंकराचार्य जी वगैरह सब सोच रहे थे कि कुम्भ में कोई निर्णय हो जाएगा। कई बैठकें हुईं। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ज्ञानदास जी ने घोषणा की कि यदि परियोजनाएँ बन्द नहीं हुई, तो शाही स्नान नहीं होगा। लेकिन सरकार ने उन्हें मना लिया और कुम्भ में शाही स्नान हुआ। कुम्भ के दौरान ही शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के मण्डप में एक बड़ी बैठक हुई। मेरे अनुरोध पर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी भी आये। अन्ततः यही हुआ कि आन्दोलन होना चाहिए।
भीख माँगकर, परियोजना नुकसान भरपाई की घोषणा
...फिर तीन मूर्ति भवन में मधु किश्वर (मानुषी पत्रिका की सम्पादक) व राजेन्द्र सिंह जी ने एक बैठक की। उसमें जयराम रमेश (तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री) भी थे और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी (शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी के शिष्य प्रतिनिधि) भी थे।
Posted on 15 Feb, 2016 03:55 PM ‘‘मैं गंदगी को दूर करके भारत माता की सेवा करूँगा। मैं शपथ लेता हूँ कि मैं स्वयं स्वच्छता के प्रति सजग रहूँगा और उसके लिये समय दूँगा। हर वर्ष सौ घंटे यानी हर सप्ताह दो घंटे श्रमदान करके स्वच्छता के इस संकल्प को चरितार्थ करूँगा। मैं न गंदगी करूँगा, न किसी और को करने दूँगा। सबसे पहले मैं स्वयं से, मेरे परिवार से, मेरे मोहल्ले से, मेरे गाँव से और मेरे