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साठी में साठी करै
Posted on 23 Mar, 2010 12:43 PM
साठी में साठी करै, बाड़ी में बाड़ी।
ईख में जो धान बौवै, फूँको वाकी दाढ़ी।।


भावार्थ- जो साठी धान के खेत में फिर धान बोता है और कपास के खेत में कपास और ईख के खेत में धान बोता है तो अच्छा नहीं करता। इससे पैदावार कम हो जाती है।

सन घना बन बेगरा
Posted on 23 Mar, 2010 12:41 PM
सन घना बन बेगरा, मेढक फन्दे ज्वार।
पैर पैर से बाजरा, करै दरिद्रै पार।।


शब्दार्थ- बन-कपास।

भावार्थ- सनई को घनी, कपास को बीड़र अर्थात् दूर-दूर, ज्वार को मेढक की कुदान के फासले पर और बाजरा एक-एक कदम की दूरी पर बोना चाहिए। अगर ऐसी बोवाई हुई तो वह दरिद्रता को दूर कर देती है।

सावन सावाँ अगहन जवा
Posted on 23 Mar, 2010 12:39 PM
सावन सावाँ अगहन जवा।
जितना बौवें उतना लवा।।


शब्दार्थ- उतना लवा- उतना ही लेना।

भावार्थ- सावन में सावाँ और अगहन में जौ, तौल में जितना बोया जायेगा, उतना ही काटा जायेगा अर्थात् इस समय बोवाई करने से फसल अच्छी नहीं होती है।

रोहिनी खाट मृगसिरा छउनी
Posted on 23 Mar, 2010 12:37 PM
रोहिनी खाट मृगसिरा छउनी।
अद्रा आये धान की बोउनी।।


शब्दार्थ- खाट-खटिया, चारपाई। छउनी-छप्पर।

भावार्थ- रोहिणी नक्षत्र में चारपाई बिनना और मृगशिरा नक्षत्र में छप्पर छाना उत्तम माना गया है क्योंकि आर्द्रा नक्षत्र आते ही धान की बोउनी (बुवाई) शुरू करनी पड़ती है।

रोहिनि मृगसिरा बोये मका
Posted on 23 Mar, 2010 12:32 PM
रोहिनि मृगसिरा बोये मका। उरद मडुवा दे नहीं टका।।
मृगसिरा में जो बोये चना। जमींदार को कुछ नहीं देना।।
बोये बाजरा आये पुख। फिर मन में मत भोगो सुख।।

या तो बोओ कपास औ ईख
Posted on 23 Mar, 2010 12:30 PM
या तो बोओ कपास औ ईख।
ना तो माँग के खाओ भीख।।


भावार्थ- घाघ का मानना है कि किसान को कपास और ईख की खेती अवश्य करनी चाहिए, जो ऐसा नहीं करते वे भीख मांगकर ही काम चलायेंगे।

मघा मारै पुरवा सँवारै
Posted on 23 Mar, 2010 12:28 PM
मघा मारै पुरवा सँवारै।
उत्तरा भर खेत निहारे।।


भावार्थ- यदि किसान मघा में जड़हन की बोवाई कर दे और पूर्वा भर देखभाल करे तो उत्तरा में उसका खेत हरा-भरा रहता है।

मकड़ी घासा पूरा जाला
Posted on 23 Mar, 2010 12:27 PM
मकड़ी घासा पूरा जाला।
बीज चने का भरि-भरि डाला।।


भावार्थ- जब मकड़ी घास पर जाला लगाने लगे तब चना बोना चाहिए।

मक्का जोन्हरी औ बजरी
Posted on 23 Mar, 2010 12:25 PM
मक्का जोन्हरी औ बजरी।
इनको बोवे कुछ बिड़री।।


भावार्थ- मक्का, जोन्हरी (ज्वार) और बाजरा को कुछ बीड़र अर्थात् कुछ दूर-दूर पर ही बोना चाहिए।

मारूँ हरनी तोडूँ कास
Posted on 23 Mar, 2010 12:22 PM
मारूँ हरनी तोडूँ कास।
बोऊँ उर्द हथिया की आस।।


भावार्थ- घाघ कहते हैं कि अगस्त नामक तारे के उदय की और कास में फूल लगने की चिन्ता छोड़कर हस्त नक्षत्र लगते ही उर्द बो देनी चाहिए।

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