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पौधों के साथ जिंदगी और रोजगार
Posted on 11 Nov, 2010 09:11 AM

करिअर/प्लांट पैथालोजिस्ट

पेड़-पौधे हमें भोजन के अलावा प्राणवायु यानी आक्सीजन भी देते हैं। आदिकाल से ही हम इनका उपभोग करते आए हैं। यह भी बिना कुछ बोले चुपचाप सिर्फ हमें देते ही रहे हैं। लेकिन परोपकार में लगे रहने वाले पेड़-पौधे कभी-कभी बीमार भी हो जाते हैं। इनकी बीमारी का पता लगाना व इसका उचित इलाज करने के लिए विज्ञान की एक शाखा निर्धारित की गई है। इस शाखा को पादप रोग विज्ञान कहते हैं।

कुछ कर गुज़रने का जजबा है तो आपदा प्रबंधन में जाएं
Posted on 10 Nov, 2010 11:47 AM यह सही है कि आपदा प्राकृतिक हो या मानवजनित, विनाश ही करती है। भूकंप, बाढ़ के अलावा आतंकवादी हमले और दंगों से होने वाली क्षति को पूरी तरह टाला तो नहीं जा सकता लेकिन इनसे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। आपदा प्रबंधन के जानकारों की जरूरत सरकारी संस्थानों से लेकर निजी या स्वयंसेवी संस्थाओं तक होती है। दुनिया भर में जिस आंधी रफ्तार से विकास हो रहा है उससे आपदाओं की संभावना भी बढ़ गई है। किसी भ
खूब घूमिए ढेर सारा कमाइए
Posted on 10 Nov, 2010 11:32 AM
वह छात्र जिसे धरती के बारे में जानने की ललक हो, जमीनी सतह की खोजबीन करना उसे अच्छा लगता हो और तरह-तरह की मिट्टियों व चट्टानों को तलाशकर उनकी खूबियों में रुचि लेता हो तो उसके लिए भूगोल विषय को लेकर करिअर की राह पर आगे बढऩा अपनी रुचियों के साथ न्याय करना होगा।
रहस्य का विषय है सरौढ़ नाला
Posted on 10 Nov, 2010 10:40 AM
देवभूमि कुल्लू घाटी में दर्जनों ऐसे सरोवर, झीलें और तालाब हैं जो चर्चा में रहते हैं और जहां लोग अवसरानुकूल पुण्य स्नान भी करते हैं, परन्तु कितने ही ऐसे अनाम सर-सरोवर हैं जिनका स्थानीय लोगों के जीवन में बहुत महत्व है। शताब्दियों से अस्तित्व में आए ये सरोवर और झीलें उन अनाम अज्ञात पर्वत शृंखलाओं की ओट में हैं जहां पहुंचने के लिए बड़े कलेजे की आवश्यकता रहती है। कुल्लुवी लोकभाषा में इन ‘सर’ या स
जीव-जन्तुओं की अनोखी दुनिया
Posted on 10 Nov, 2010 10:25 AM

शिकार को पीट-पीटकर मार डालता है ‘स्माल ब्लू किंगफिशर’

चल उड़ जा रे पंछी… परिवेश हुआ बेगाना
Posted on 10 Nov, 2010 10:21 AM
विश्व में तकरीबन दस हजार पंछियों की प्रजातियां हैं। प्रख्यात पक्षी विज्ञानी डॉ.
तेरा पानी, मेरा पानी!
Posted on 10 Nov, 2010 10:07 AM

सागर में गागर

खबर है कि भविष्य में पानी पेट्रोल के भाव बिकेगा। आज भी पानी की बोतल दस से बीस रुपए लिटर के बीच बिक ही रही है। बस अड्डों और स्टेशनों पर एकाध नल को छोड़कर बाकी खराब रहते हैं या खराब कर दिए जाते हैं। इधर गाड़ी या बस आती है, उधर प्यासों का लम्बी क्यू लग जाता है। लम्बा क्यू और गाड़ी छूटने के भय से लोगों को मजबूरन बच्चों की प्यास बुझाने के लिए हॉकर से पानी की बोतल खरीदनी ही पड़ती ह
मनरेगा- कहीं नरम , कहीं गरम
Posted on 10 Nov, 2010 09:48 AM महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(मनरेगा) के बारे में ज्यादातर खबरें या तो उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार की होती हैं या फिर योजना की कारआमली में हो रही ढिलाई की। सरकार ने इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा पर कुल 40 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं लेकिन शहराती मध्यवर्ग का एक बड़ा तबका और जनमत-निर्माता इसी पसोपेस में हैं कि आखिर इन रुपयों से कुछ सार्थक हो भी रहा है या नहीं। नुक्ताचीनी की बातों क
जल में घुली राजनीति
Posted on 10 Nov, 2010 09:06 AM

पानी हवा जितनी मयस्सर नहीं, इसका प्रयोग तो नियमों के अधीन ही होगा


पानी का असमान वितरण, बाँधों के लिये विस्थापितों को अपर्याप्त मुआवज़ा, आर्थिक रूप से संपन्न और विपन्न उपभोक्ताओं में भेद-भाव। यह भारत में जल से जुड़ी आम बातें हैं। पत्रकार दिलीप डिसूजा इस पर गौर कर रहे हैं और सुझाव दे रहे हैं कि राजनीति के द्वारा ही स्थिति में बदलाव लाया जा सकता है।

इस लेख की शुरुआत होती है मुम्बई पूना राजमार्ग पर, कामशेत के निकट बने पावना बाँध के नेपथ्य में उभरी झील के किनारे बसे गाँव, ठाकुर शाही में। गाँव का एक युवक राजू बताता है की उसका परिवार बाँध कि वजह से विस्थापित हुआ। उनकी उपजाऊ कृषि भूमि इस झील ने लील ली।

क्या आप बेस्ट वाटर एनजीओ हैं
Posted on 09 Nov, 2010 06:24 PM

जल संरक्षण के लिए विभिन्न कंपनियों द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्य के सम्मान के लिए वाटर डाइजेस्ट वाटर पुरस्कार, 2006 में स्थापित किए गए थे। यह पुरस्कार यूनेस्को और भारत के जल संसाधन मंत्रालय द्वारा समर्थित है। पुरस्कार का मुख्य फोकस लोग, नवीनता और वह प्रक्रिया है जिसका जल संसाधनों के स्थायित्व या अविरलता के लिये महत्वपूर्ण योगदान है, इसका मुख्य फोकस वें गैर सरकारी संगठन और कॉर्पोरेट भी हैं जो लोग

वाटर डाइजेस्ट वाटर अवार्ड
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