वीरेन्द्र मिश्र

वीरेन्द्र मिश्र
धरोहर
Posted on 19 Feb, 2014 09:35 PM
नदी वो अपने अश्रु में आकाश को डुबोएगी
नदी के अंग कटेंगे तो नदी रोएगी
नदी को हंसने दो
नदी को बहने दो

छुरी के हाथ ही होते हैं, आँख कब होती
नदी में धुल गई होती तो बहुत रोती
मिलेगा उसको क्या, जो भी मिलेगा खोएगी
नदी के अंग कटेंगे रो नदी रोएगी
नदी को बहने दो

तुम्हारे काँपते चुल्लू में खून है जिसका
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