उमेश कुमार राय

उमेश कुमार राय
गायब हो रहे गया के तालाब
Posted on 19 Sep, 2017 01:08 PM


ऐतिहासिक व धार्मिकों मान्यताओं से भरपूर गया शहर जितना पुराना है, उतने ही पुराने यहाँ के तालाब भी हैं। कभी गया को तालाबों का शहर भी कहा जाता था, लेकिन बीते छह से सात दशकों में गया के आधा दर्जन से अधिक तालाबों का अस्तित्व पूरी तरह खत्म हो चुका है।

जहाँ कभी तालाब थे, वहाँ आज कंक्रीट के जंगल गुलजार हैं। इन्हीं में से एक नूतन नगर भी है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ पहले विशाल तालाब हुआ करता था।

रामसागर तालाब में पसरी गन्दगी
बाढ़ से निहत्थे लड़ रहे लोग
Posted on 24 Aug, 2017 11:10 AM

पानी में घिरे हुए लोग प्रार्थना नहीं करते
वे पूरे विश्वास से देखते हैं पानी को
और एक दिन
बिना किसी सूचना के
खच्चर या भैंस की पीठ पर
घर-असबाब लादकर
चल देते हैं कहीं और

टॉयलेट, एक प्रेम कथा - Toilet, Ek Prem Katha
Posted on 12 Aug, 2017 10:39 AM

शौच और सोच के बीच एक व्यंग्यकथा


डायरेक्टर :श्री नारायण सिंह
लेखक: सिद्धार्थ-गरिमा
कलाकार : अक्षय कुमार, भूमि पेडणेकर, सुधीर पांडेय और अनुपम खेर
मूवी टाइप : ड्रामा
अवधि : 2 घंटा 35 मिनट

.आज भी खुले में शौच बड़ा मुद्दा है, अभी भी देश में साठ फीसदी से ज्यादा लोग खुले में शौच के आदी हैं। ‘खुले में शौच’ एक आदत है, साथ ही एक सोच है, जिसने भारत को गंदगी का नाबदान बना रखा है। फिल्म खेतों और खुले में शौच करने की आदत पर करारा व्यंग्य है।

कहानी की शुरुआत


मथुरा का नंदगाँव अभी पूरी तरह नींद की आगोश में है। रात का अंतिम पहर खत्म होने में कुछेक घंटे बाकी हैं। महिलाएँ हाथों में लोटा और लालटेन लेकर निकल पड़ी हैं। रास्ते में वे एक-दूसरे से खूब हँसी-मजाक करती हैं। यह वक्त उनके लिये आजादी का वक्त है।

राष्ट्रीय झील को बचाने के लिये अन्तरराष्ट्रीय मुहिम
Posted on 27 Jul, 2017 12:30 PM

सन 1920 में शहर को विकसित व व्यवस्थित करने के लिये 20 वर्षीय योजना शुरू की गई और इसी के तहत सन 1920 में जंगलों से भरी 192 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया। अधिग्रहण का उद्देश्य क्षेत्र को रिहाइशी इलाके में तब्दील करना था। 192 एकड़ में से 73 एकड़ भूखण्ड में झील के निर्माण की योजना बनाई गई। झील के लिये खुदाई से निकली मिट्टी से आसपास के क्षेत्रों को भरा गया और इस तरह झील बनकर तैयार हो गई। उस वक्त इसे ढाकुरिया लेक कहा जाता था। वर्ष 1958 में रवींद्र नाथ टैगोर को श्रद्धांजलि देते हुए इसे रवींद्र सरोवर नाम दिया गया। दक्षिण कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में करीब 73 एकड़ में फैली एक राष्ट्रीय झील को बचाने के लिये पर्यावरणविदों व झील प्रेमियों ने अन्तरराष्ट्रीय मुहिम शुरू कर दी है।

झील के आसपास कंक्रीट के जंगल बोये जाने के खिलाफ पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेंज डॉट ओआरजी पर याचिका दी है और इसे बचाने की गुहार लगाई है। देश-विदेश के लोगों ने इस मुहिम से खुद को जोड़ते हुए झील को बचाने की माँग की है।

याचिका देने वाले संगठन लेक लवर्स फोरम से जुड़े पर्यावरण विशेषज्ञ सौमेंद्र मोहन घोष कहते हैं, ‘24 जून को हमने इस प्लेटफॉर्म पर याचिका दायर की थी और अब तक देश-विदेश के 1 हजार से अधिक लोगों ने इस पर हस्ताक्षर कर दिये हैं। इससे जाहिर होता है कि वे झील को लेकर कितने चिन्तित हैं। चेंज डॉट ओआरजी के अलावा हम फेसबुक पर भी मुहिम चला रहे हैं, ताकि सरकार पर चौतरफा दबाव बनाया जा सके।’
बिहार के वनों पर चल रही कुल्हाड़ी
Posted on 15 Jul, 2017 04:44 PM


बिहार देश के उन गिने चुने राज्यों में है जहाँ वन क्षेत्र बहुत कम है। सबसे कम वन क्षेत्र वाले 10 राज्यों की फेहरिस्त बनाई जाये, तो बिहार उनमें शामिल होगा।

इसके बावजूद बिहार सरकार बचे हुए वन क्षेत्र को सुरक्षित-संरक्षित रख नहीं पा रही है।

संकट में बिहार के वन
खेती व पानी के दोहन ने वेटलैंड्स की खोदी कब्र
Posted on 24 Jun, 2017 01:27 PM

वेटलैंड यानी आर्द्रभूमि न केवल विभिन्न प्रकार के जलीय जंतुओं व प्रवासी पक्षियों का निवास स्थल होता है, बल्कि यह ईको सिस्टम को भी बनाये रखता है।
अनिल प्रकाश : जो गंगा को जमींदारी से मुक्त कराने के आंदोलन में घी बने
Posted on 24 Jun, 2017 12:45 PM


बागमती नदी पर बाँध बनाने के खिलाफ हाल ही में हजारों लोग सड़कों पर उतर आये थे। इसके विरोध में बड़ा आंदोलन हुआ और बिहार सरकार को मजबूर होकर विशेषज्ञों की एक कमेटी बनानी पड़ी, जो बाँध बनने से होने वाले नफा-नुकसान का आकलन करेगी।

Anil prakash
पानी व पर्यावरण की फिक्रमंद फिल्मकारों की नयी फसल
Posted on 17 Jun, 2017 10:26 AM

मार्च में झारखंड का मौसम खुशगवार रहता है, लेकिन मार्च 2014 का मौसम झारखंड में कुछ अलग ही था। कैमरा व फिल्म की शूटिंग का अन्य साज-ओ-सामान लेकर भटक रहे क्रू के सदस्य दृश्य फिल्माने के लिये पलामू, हरिहरगंज, लातेहार, नेतारहाट व महुआडांड़ तक की खाक छान आये। इन जगहों पर शूटिंग करते हुए क्रू के सदस्यों व फिल्म निर्देशक श्रीराम डाल्टन व उनकी पत्नी मेघा श्रीराम डाल्टन ने महसूस किया कि इन क्षेत्रों में पानी की घोर किल्लत है। पानी के साथ ही इन इलाकों से जंगल भी गायब हो रहे थे और उनकी जगह कंक्रीट उग रहे थे।

मूलरूप से झारखंड के रहने वाले श्रीराम डाल्टन की पहचान फिल्म डायरेक्टर व प्रोड्यूसर के रूप में है। फिल्म ‘द लॉस्ट बहुरूपिया’ के लिये 61वें राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड में उन्हें पुरस्कार भी मिल चुका है।

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