सुनीता नारायण

सुनीता नारायण
अच्छी शुरूआत और अड़ंगों का अम्बार
Posted on 01 Feb, 2013 03:36 PM

शायद यह सरकार का नया मूलमंत्र है- जो टूट गया उसे भूल जाओ। मरम्मत से बेहतर है, नया बना लो। बाकी विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है। मैं उस क्षेत्र के बारे में बात कर रही हूं, जिसे सरकार भविष्य की रीढ़ मानती है।

सीएनजी
इक्कीसवीं सदी के डायनासोर की कथा
Posted on 01 Feb, 2013 11:58 AM
भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग भी अमेरिकी उद्योगों की तरह सरकार के सामने
pollution by vehicle
अब बस! इस यातायात को बदलना होगा
Posted on 31 Jan, 2013 11:06 AM

अगर हम बस चाहते हैं तो वे हमें मिलेंगी नहीं क्योंकि हमारी ऑटोमोबाइल कंपनियां भीड़ भरे शहरों के लिए कारें बनाने म

कोष से जरूरी डीजल पर रोक
Posted on 31 Jan, 2013 11:02 AM
पर्यावरण सुधार के प्रति हमारी प्रतिबद्धता तभी साबित होगी, जब हम प्
नदी जल प्रदूषण की किसानों पर मार
Posted on 30 Jan, 2013 03:52 PM
किसान नहीं चाहते कि पाली के उद्योग अपना कचरा नदी में बहाएं। उनकी मांग है कि उद्योगों को खुद प्रदूषित
यमुना को चाहिए रिवाइवल एक्शन प्लॉन
Posted on 30 Jan, 2013 03:44 PM
1993 में सरकार ने यमुना एक्शन प्लान की शुरुआत की। आंकड़े बताते हैं
क्षमा करें मगर सीवर तक में हैं सियासत
Posted on 25 Jan, 2013 12:32 PM
हर समाज को यह समझना होगा कि उसके द्वारा छोड़े जा रहे कचरे का प्रबंधन उसे कैसे करना है। इससे हमें कई अहम चीजों और विषयों के बारे में सीखने को मिलता है। कचरा प्रबंधन की शिक्षा मुझे संयोग से ही मिली थी। चंद वर्षों पहले जिस कमेटी के साथ मैं काम कर रही थी उसे सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि वह नदियों में गंदगी छोड़कर उन्हें नारकीय हालात में पहुंचाने वाले शहर के नालों की सफाई इंतजामों पर राज्य सरकारों की कोशिशों की निगरानी करे। सरकार ने एक कार्ययोजना पेश की। इसमें उन्हें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों को बनाने, मौजूदा प्लांट बेहतर करने, आवासीय कॉलोनियों में नाले-नालियों का निर्माण और कचरे को सीवेज प्लांट तक पहुंचाने वाली व्यवस्था की मरम्मत का काम करना था।

भरपूर पानी का भ्रम
Posted on 25 Jan, 2013 10:59 AM
भारत की जनसंख्या बढ़ रही है, उद्योगों में बढ़ोत्तरी है और कृषि उत्पादन बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप ग्रामीण और शहरी, दोनों ही इलाकों में पानी की मांग भी बढ़ रही है। जो नहीं बढ़ रही है, वह है पानी की प्राकृतिक आपूर्ति। मौसम में हो रहे परिवर्तनों से भविष्य में पानी और भी कम हो जायेगा, इसलिए यही समय है कि कोई कारगर नीति बनायी जाए। अभी तक की सरकारी योजनाओं से बहुत ही कम मदद हो पायी है। इसकी एक वजह है कि ह
संकट में भारत का भूमिगत जल
Posted on 25 Jan, 2013 10:17 AM
इसे भारत की कुछ अनजानी विडंबनाओं में से एक कह सकते हैं। पिछले कुछ सालों में भारतीय राज्य ने सार्वजनिक सिंचाई एजेंसियों के माध्यम से सतही जल प्रणाली का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया है। इसने सिंचाई प्रणालियों-बांध, तालाब, नहर आदि क
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