सत्यपाल सहगल
सत्यपाल सहगल
सूखी नदियों के पाट
Posted on 05 Dec, 2013 10:48 AMसूखी नदियों के पाटों का रंगचलो दिखाऊं गर हिम्मत है तो
आकार केवल आकार
नदियों का नाम उन्हें फिर भी मिला हुआ
रेत हमारे सीने तक आ जाती है
यह है नदी का रास्ता
यह सूखापन भी जाता है आरंभ तक अंत तक
पंछी उन्हें पार करता है और मन में
हूक उठती है
एक कल्पना जो अतृप्त रहेगी की चले चलें
इसके साथ-साथ
और ध्यान देने पर यह बात उभरती आती है
नदी नहीं था मैं
Posted on 05 Dec, 2013 10:46 AMमैं धूप था मैं बारिशनदी नहीं था मैं
मुझे बुहत दुःख था
पहाड़ था मैं
पहाड़ का पेड़ था
पहाड़ के चरागाह
रेवड़
निर्भ्रांत आकाश
नदी नहीं था पर
दुःख था बहुत दुःख था
गड़रिया था
पत्ते चरती बकरी था
मधु ढूंढता भ्रमर था
तिनके से उलझा पंछी था
पहाड़ का ढहा कगार था
पहाड़ का प्यार था
बहुत कुछ था