सियारामशरण गुप्त

सियारामशरण गुप्त
बाढ़
Posted on 27 Jul, 2013 12:36 PM
(1)
पेय पय अंतर के स्नेह का पिलाती हुई,
खेल-सा खिलाती हुई,
नन्हीं उन लहरों को लेके निज गोद में,
मग्न थी अभी तो तू प्रमोद में;
जैसे कुल-लक्ष्मी निज अंतःपुर-चारिणी,
वैसे ही तटों के बीच भीतर विहारिणी,
तू थी महा शोभामयी
नित्य नई;
यमुने हे! तेरा वह शांत रूप सौम्याकार,
जान पड़ता था नहीं अंथःस्तल का विकार;
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