रवीन्द्र भ्रमर

रवीन्द्र भ्रमर
गोमती से प्यार
Posted on 30 Sep, 2013 04:41 PM
मुझको गोमती से प्यार।
चूमती मन-पुलिन उसकी दूधिया रस-धार।।
गोमती की कोख से पैदा हुआ,
साँवली माटी उसी की, रचा जिससे तन,
शिराओं में रक्त बनकर बह रहा
गोमती का नीर माँ के दूध-सा पावन,
मैं कहूँ कैसे कि वह केवल नदी है
एक ममता-मूर्ति मुझमें हो रही साकार।
मुझको गोमती से प्यार।।
हिंडोले-सी गोमती की मृदु लहर,
झूलते जिसमें गए दिन बीत बचपन के,
मेरी गंगा
Posted on 30 Sep, 2013 04:38 PM
गंगा मेरे मन की सोना-घाटी में बहती है।

अपनी गंगा के उद्गम का उन्नत शिखर हिमालय मैं हूँ,
मैं ही उसका महादेव हूँ, कंचन-कलश शिवालय मैं हूँ,
मेरी प्रज्ञा के सागर में उसका सुंदर नील-निलय है-
मेरी भावसाधना में वह भागीरथी मगन रहती है।।

श्वासों में उसकी लय-धारा, प्राणों में उसका स्पंदन है,
रक्त-शिराओं में उसकी चंचल लहरों का आवर्तन है,
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